उप्र विस चुनाव : फिर एक रिकार्ड तोड़ सकती है भाजपा



  • अभी तक 39.7 प्रतिशत मत हासिल करने का रिकार्ड भी है भाजपा के नाम

लखनऊ -  चुनावी तिथि की घोषणा होने के साथ ही चुनावी रैलियों पर रोक लग गयी। इससे सोशल मीडिया ही राजनीतिक दलों के लिए सहारा रह गया है। अभी सत्ता का ताज किस पर बंधेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव की स्थिति को देखें तो सर्वाधिक मत पाने का रिकार्ड कायम कर चुकी भाजपा सोशल मीडिया में आगे बढ़ती दिख रही है।

यदि इतिहास के आइने में झांक कर देखें तो सबसे तो मायावती ने कई चुनावों के बाद पहली बार 2007 में मायावती को प्रचंड बहुमत मिला था। उस समय मायावती को 30.43 प्रतिशत मत मिला था। वहीं समाजवादी पार्टी का अधिकतम मत 2012 में 29.5 प्रतिशत रहा है। वहीं भाजपा का मत प्रतिशत देखा जाय तो 1991, 1993 और 1996 में 34 से 36 प्रतिशत के बीच रहा। उस समय भी भाजपा ने मत प्रतिशत में दोनों पार्टियों के अब तक के रिकार्ड को तोड़े थे। पिछले चुनाव में तो भाजपा ने अपने ही पुराने रिकार्ड को तोड़ते हुए 39.7 प्रतिशत मत हासिल कर लिया।

ये परिस्थितियां तब थी, जब न तो राम मंदिर आंदोलन जैसा कोई मुद्दा रहा, न ही किसी को विश्वास था कि 2012 के विधानसभा चुनाव में 47 सीट पाने वाली भाजपा के मत प्रतिशत में 24.7 प्रतिशत मत का उछाल आ जाएगा और भाजपा तथा सहयोगी पार्टियां मिलकर 325 सीटें हासिल कर लेंगी। चुनाव पूर्व सर्वे भी कभी भाजपा को इतना बड़ा बहुमत नहीं दे रहे थे।

इस बार भाजपा खुलकर हिन्दुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। वह विकास के साथ ही अपने सांस्कृतिक धरोहरों के लिए किये गये कार्य को जनता के सामने जोर-शोर से उठा रही है। बसपा जहां कमजोर होती जा रही है। उसके वोट बैंक भाजपा की ओर खिसकते हुए दिख रहा है। ऐसे में पहले से ही सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रही भाजपा को चुनावी रैली पर रोक के बाद ज्यादा बढ़त दिखने लगी है। हालांकि चुनाव में ऊंट कब किस करवट बैठेगा। यह कहा नहीं जा सकता लेकिन अभी यह भाजपा के पक्ष में ही जाता हुआ दिख रहा है।

इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि राजनीति में भी क्रिकेट की तरह अनिश्चितता बनी रहती है लेकिन इसमें भी उसी तरह लोग पहले से अनुमान लगाते रहते हैं। उन अनुमानों को देखें तो भाजपा अभी बढ़त की ओर है। चुनावी रैली पर रोक के बाद सर्वाधिक घाटा सपा को होता दिख रहा है।