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UN की नई रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, पृथ्वी पर तेजी से गहरा रहा तिहरा संकट

वैश्विक स्तर पर मौजूदा दौर में ऐसे आठ महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं, जिनसे पृथ्वी पर मंडराते तिहरे संकटों (जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण व कचरा) के गहराने की गति तेज हो रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और अंतरराष्ट्रीय विज्ञान परिषद (आईएससी) की एक नई रिपोर्ट में यह निष्कर्ष साझा किया गया है।

कोई भी देश रास्ते से आसानी से भटक सकता

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इंगेर ऐंडरसन ने कहा कि हम भूराजनैतिक उथलपुथल की पृष्ठभूमि में जिस तरह से बदलाव की तेज रफ़्तार, अनिश्चितता और टेक्नोलॉजी के विकास को देख रहे हैं, इसका अर्थ है कि कोई भी देश रास्ते से आसानी से भटक सकता है।

मानव गतिविधियों की वजह से नुकसान

मानव गतिविधियों की वजह से प्राकृतिक जगत का नुकसान हो रहा है। यही नहीं, कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) जैसी टैक्नॉलॉजी को इस्तेमाल में लाया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के लिए स्पर्धाएं और विषमताएं बढ़ती जा रही हैं और संस्थाओं में भरोसा खत्म होता जा रहा है। वैश्विक अग्रदृष्टि रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी चुनौतियां आने वाले समय के लिए एक ऐसे संकट को तैयार कर रही हैं, जिसका मानवता और पृथ्वी पर खतरनाक प्रभाव पड़ सकता है।

18 संकेतकों की पहचान

इन आठ बड़े बदलावों के साथ-साथ इस रिपोर्ट में बदलाव के 18 संकेतकों की पहचान की गई है, जिन्हें वैश्विक विशेषज्ञों ने क्षेत्रीय व हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद चिह्नित किया है। ये संकेतक भविष्य में संभावित व्यवधानों के प्रति सचेत करते हैं, ताकि दुनिया इनसे निपटने के लिए पहले से तैयार कर सके। इनमें अति-महत्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी तत्वों, खनिजों व धातुओं के लिए बढ़ती मांग, गहरे समुद्र और स्ट्रैटोस्फ़ेयर से परे अंतरिक्ष में खनन की योजनाएं हैं। मगर, इन सभी गतिविधियों से प्रकृति व जैवविविधता के लिए खतरा उत्पन्न होने की आशंका है। प्रदूषण व कचरा बढ़ सकता है।

पर्माफ्रोस्ट पिघल रही

गर्माती जलवायु के कारण ‘पर्माफ्रोस्ट’, कम से कम दो वर्ष तक जमी रहने वाली भूमि की सतह, पिघल रही है, जिसका बड़े पैमाने पर पर्यावरण, पशुओं व मनुष्यों पर असर हुआ है। इस प्रक्रिया से पुरातन काल से जमे हुए ऐसे जीव बाहर आ रहे हैं, जोकि रोगजनक हो सकते हैं।

एक बार पहले ही यह रूस के विशाल साइबेरिया क्षेत्र में एंथ्रैक्स के प्रकोप की वजह बन चुका है। यह बैक्टीरिया से होने वाली एक गंभीर संक्रामक बीमारी है। सशस्त्र टकरावों व हिंसा के उभरने, मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर असर के अलावा जबरन विस्थापन मामलों को बदलाव के अहम संकेतम के रूप में चिह्नित किया गया है।

इन उभरते हुए संकटों के बावजूद, रिपोर्ट बताती है कि बेहतर समाधानों व उपकरणों को साथ लेकर चलना, भावी व्यवधानों को समझने और उनसे निपटने की तैयारी करने का सर्वोत्तम तरीक़ा है।

अंतरराष्ट्रीय विज्ञान परिषद के प्रमुख पीटर ग्लुकमैन ने कहा, ‘अग्रदष्टि (foresight) औजारों के एक उपयोगी पुलिन्दे को प्रदान करती है, ताकि अल्पकालिक समझ से बाहर निकल, भावी अवसरों व जोखिमों को चिह्नित किया जा सके और इसे वास्तव में बहुलतापूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए।’

उपायों पर फिर से सोचना जरूरी

इन बहुलवादी तौर-तरीकों को सुनिश्चित करने के लिए अनेक सिफरिशों को पेश किया गया है, जिनमें एक नए सामाजिक अनुबंध को अपनाया जाना भी है, ताकि विविध हितधारकों के साथ संपर्क व बातचीत को बढ़ावा दिया जा सके। इनमें आदिवासी जन को शामिल करना, युवजन को अपनी आवाज बुलंद करने का अवसर प्रदान करना और सकल घरेलू उत्पाद से आगे बढ़ करके प्रगति के लिए उपायों को फिर से सोचना भी हैं।

यूनेप प्रमुख ऐंडरसन ने कहा कि बदलाव के इन संकेतकों की निगरानी और अग्रदृष्टि तौर-तरीकों के इस्तेमाल के जरिये, दुनिया अतीत की गलतियों को दोहराने से बच सकती है। साथ ही, ऐसे समाधानों पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है, जिनसे भावी व्यवधानों का पुख्ता ढंग से सामना किया जा सके।

(नोट: यह लेख संयुक्त राष्ट्र हिंदी समाचार सेवा से लिया गया है।)

Aryavart Kranti
Author: Aryavart Kranti

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