भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) गगनयान मिशन की तैयारियों में जुटा है। देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्हें अंतरिक्ष यात्रा के दौरान आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार किया जा रहा है। इसरो ने गगनयान के अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग का एक वीडियो जारी किया है। सभी अंतरिक्ष यात्रियों को सिमुलेटेड माहौल में गगनयान मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है। इसरो ने वीडियो को 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक्स पर शेयर किया गया है।
इस वीडियो में गगनयान मिशन के लिए चुने गए चारों अंतरिक्ष यात्रियों को ट्रेनिंग लेते दिखाया गया है। सभी अंतरिक्ष यात्री तय मॉड्यूल के भीतर नियमित रूप से योग करते हैं। फिर उन्हें स्पेसफ्लाइट, जीरो ग्रेविटी और दूसरी चुनौतियों के हिसाब से ट्रेनिंग दी जाती है। वीडियो में देखा जा सकता है कि अंतरिक्ष यात्री कितनी कठिन ट्रेनिंग कर रहे हैं। अब अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में जानते हैं, जो भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट हैं। सभी ने वायुसेना के लगभग सभी फाइटर जेट्स उड़ाए हैं।
ये एस्ट्रोनॉट्स यान के अंदर जैसी परिस्थितियों और अंतरिक्ष में आने वाली चुनौतियों की प्रैक्टिस एक ज़ीरो ग्रैविटी वाले कैप्सूल में रहकर कर रहे हैं। अंतरिक्ष जाने वाले सभी लोगों को इस तरह की कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक जीने और समस्याओं को खुद सुलझाने की सख्त ट्रेनिंग दी जाती है। यही वजह है कि अपने साथी के साथ पिछले दो महीनों से स्पेस स्टेशन में फंसीं सुनीता हालात का सामना शांति से कर पा रही है। जिस स्टारलाइनर यान में वे गए थे उसमें खराबी के कारण उनकी वापसी टलती जा रही है। 2003 में भारतीय मूल की कल्पना चावला सहित सात एस्ट्रोनॉट्स को लेकर लौट रहे कोलंबिया यान हादसे के बाद नासा किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता, इसलिए आठ दिन का मिशन आठ महीनों में तब्दील होता लग रहा है।
ब्रह्मांड आज भी मनुष्य के लिए एक बहुत बड़ी गुत्थी है। इसमें करीब 10 हज़ार करोड़ आकाशगंगाएं हैं और सबके करीब 20 हज़ार करोड़ तारे। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई और इसकी नियति क्या है, इसे जानने की जिज्ञासा में इंसान पूरी ताकत से जुटा हुआ है। लेकिन हम इस धरती को बचाने के लिए हम कितने जागरूक है, यहां पर जो जीव-जंतु है उनको बचाने के लिए क्या कर रहे हैं? हम मंगल ग्रह पर तो जीवन जरूर तलाश रहे हैं, पर क्या इस धरती को- कुदरत के खूबसूरत ग्रह पृथ्वी को अपनी और आने वाली पीढियां के जीवन को बचाने के लिए कितने सार्थक प्रयास कर रहे हैं।
अक्सर यह कहा जाता है या सुनने मिलता है कि दुनिया खत्म होने वाली है हमें इसके खत्म होने से पहले एक नए ग्रह पर जीवन को तलाशना होगा। इस पर रिसर्च करने के लिए अर्बन खराब रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन इस धरती को बचाने के लिए अरबों-खरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। हर साल दुनिया अंतरिक्ष में अरबों डॉलर खर्च कर दिए जाते हैं। जबकि पर्यावरणविद की मानें तो इससे बेहतर होगा कि धरती की समस्याओं के लिए इस पैसे का प्रयोग किया जाए। हर बार की तरह एक बार फिर अंतरिक्ष पर रिसर्च हुई है और इसमें फिर से ये बात कही गई है कि अंतरिक्ष पर पैसा खर्च करना व्यर्थ है।
एक तरफ दुनिया जलवायु परिवर्तन के कारण बर्बादी की ओर जा रही है, तो वहीं दूसरी और चंद्रमा और मंगल पर बस्तियां बसाने की तैयारी के साथ अंतरिक्ष अन्वेषणों में खरबों डॉलर खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे में नैतिक सवाल यह भी उठाया जा रहा है क्या हमें गहरे अंतरिक्ष में अनुसंधान की जगह पहले पृथ्वी को ‘ठीक’ नहीं करना चाहिए। जहां पर्यावरणविद अंतरिक्ष अनुसंधान को गैर जरूरी समझते हैं, वहां खगोलवैज्ञानिक अंतरिक्ष अनुसंधान संबंधी शोधों को बहुत जरूरी मानते हुए दलील देते हैं कि इसक पृथ्वी बचाने से कोई लेना देना नहीं हैं।
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भले ही अनुचित बहस ना हो लेकिन क्या इस बहस को करने वालों के इरादे नेक लगते हैं। यह दलील दी जाती है कि जब हमारे आसपास भूख, गरीबी, बेघर लोग, युद्ध, शरणार्थी समस्या, सामाजिक अन्याय, और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं हैं तो अंतरिक्ष पर अरबों डॉलर का खर्चा क्यों। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम इस पैसे का उपयोग दुनिया की इन समस्याओं सुलझाने में लगाएं।
दुनिया के पास वक्त कम है। धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। अमीर देशों ने जवाबदेही पूरी नहीं की। कई दशक बहस और रिपोर्ट जमा करने में ही निकल गए। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि ग्लासगो सम्मेल की नाकामी तय है, दुनिया के देश साफ साफ वादा नहीं कर रहे हैं कि धरती का तापमान 1।5 डिग्री सेल्सियस तक रोका जाए।
IPCC की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि बीस साल के भीतर ही तामपान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगा। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज IPCC की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि जब 1990 में इसकी पहली रिपोर्ट आई थी तब से लेकर अब इन कारणों को समझने का विज्ञान बहुत विकसित हो चुका है। इस समय यूपी और दिल्ली में डेंगू फैला है। इस बारे में भी कहा गया है कि अगर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा तो मलेरिया और डेंगू के केस बढ़ेंगे। उन जगहों पर भी होंगे जहां इनके मामले कम देखे गए है।
जलवायु परिवर्तन के निपटने के लिए अमीर देशों ने गरीब देशों की मदद करने का वादा किया था उसे पूरा करने में वे नाकाम रहे हैं। साल 2009 में विकसित देशों ने वादा किया था कि 2020 तक वे उन देशों को सौ अरब डॉलर प्रतिवर्ष देंगे जो गंभीर जलवायु संबंधी बढ़ते प्रभावों और आपदाओं के शिकार होते हैं। क्या राजनीतिक मजबूरियों और कोरपोरेट के दबाव से मुक्त होकर धरती को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाएंगे या फिर टालने और दिखावटी कदम उठाने के कोई नए रास्ते निकाल लिए जाएंगे।
क्या हमें अंतरिक्ष अनुसंधान पर लगे पैसे को पृथ्वी को बचाने में लगाना चाहिए? इस सवाल का जवाब देना तो थोड़ा मुश्किल है क्योंकि अंतरिक्ष की खोज भी हमारी पृथ्वी के लिए बहुत जरूरी है लेकिन पृथ्वी को बचाने के लिए और आने वाली पीढियां आने वाली पीढ़ी अच्छी हवा में सांस ले सके इसके लिए हमें प्रयास करने होंगे। सिर्फ सम्मेलन या गोष्ठी ही नहीं करनी होगी बल्कि बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे।
यूरोपीयन ग्रीन डील के कार्यकारी वाइस प्रेसिडेंट फ्रांस टिमरमान्स ने ‘‘हम इससे निपट सकते हैं, लेकिन सिर्फ जब सभी साथ मिलकर निकटता से काम करें। क्योंकि ग्रह पर आए संकट से निपटने के लिए दुनिया भर के प्रयास की जरूरत है।’’ सबको समझना होगा जब धरती ही नहीं बचेगी तो न कंपनी बचेगी न अमीर देश। ये और बात है सौ पचास लोग अपना अपना रॉकेट लेकर कुछ दिनों के लिए अंतरिक्ष चले जाएंगे, लेकिन उससे कोई हल तो नहीं निकलने वाला है।