भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भी देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खेती के जरिए ही अपना जीवन यापन करती है। भारत सरकार भी किसानों के हितों का काफी ध्यान रखती है। मोदी सरकार ने तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इसमें सरकार ने सभी वर्गों के लिए कई घोषणाएं की गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में कृषि क्षेत्र पर फोकस बढ़ाने की बात कही है। सरकार का जोर खासतौर पर नेचुरल फार्मिंग पर होगा। खेती में रिसर्च को ट्रांसफॉर्म करना, एक्सपर्ट की निगरानी, जलवायु के मुताबिक नई वेरायटी को बढ़ावा देने की बात कही गई है। कृषि क्षेत्र के लिए भी सरकार ने कई ऐलान किए। इस वर्ग के लिए सरकार ने बजट में 1.52 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। बजट में सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, प्राकृतिक खेती को बढ़ाया जाएगा। दो साल में एक करोड़ किसानों को इसमें शामिल किया जाएगा और उन्हें सहायता उपलब्ध करवाई जाएगी। वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को सर्टिफिकेट दिया जाएगा और इसके लिए ब्रांडिंग की सुविधा भी देगी। इसका कार्यान्वयन वैज्ञानिक संस्थाओं और इच्छुक ग्राम पंचायतों के माध्यम से किया जाएगा। साथ ही 10 हजार बायो इनपुट सेंटर बनाए जाएंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि खरीफ फसलों के लिए देश के 400 जिलों में डिजिटल क्रॉप सर्वे किया जाएगा। जिसमें 6 करोड़ किसानों की खेती और उनकी जानकारी ‘किसान और खेती रजिस्ट्रेशन’ में शामिल की जाएगी।
बजट में इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि देश कैसे दलहन और तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो। निर्मला सीतारमण ने कहा, दलहन-तिलहन में आत्मनिर्भर होने पर फोकस किया जाएगा। सप्लाई चेन बेहतर करने के लिए क्लस्टर बनाए जाएंगे। सरकार सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने पर भी जोर देगी।किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), सहकारिता, स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जाएगा। किसानों और जमीन की बेहतर कवरेज के लिए अगले तीन साल में डिजिटल पब्लिक इंफ्रा का इस्तेमाल किया जाएगा। खरीफ फसलों के लिए देश के 400 जिलों में डिजिटल क्रॉप सर्वे किया जाएगा। जिसमें 6 करोड़ किसानों की खेती और उनकी जानकारी ‘किसान और खेती रजिस्ट्रेशन’ में शामिल की जाएगी।
आपको ‘राष्ट्रीय मिशन प्राकृतिक खेती प्रबंधन एवं ज्ञान पोर्टल’ पर इससे संबंधित जानकारियाँ मिल जाएँगी। अब जानते हैं कि नेचुरल फार्मिंग है क्या। ये एक खेती की ऐसी व्यवस्था है, जिसमें केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। प्राकृतिक खेती यानी नेचुरल फॉर्मिंग कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह पद्धति भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। नेचुरल फॉर्मिंग में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है। बल्कि, प्राकृतिक तत्वों तथा जीवाणुओं के उपयोग से खेती की जाती है। यह खेती पर्यावरण को अनुकूल रखने के साथ ही फसलों की लागत कम करने में भी कारगर है। प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्निअस्त्र, सोठास्त्र, नीम पेस्ट, गोमूत्र, गोबर का इस्तेमाल होता है। ये खेती भारतीय परंपरा के हिसाब से की जाती है, लेकिन इसमें इकोलॉजी की आधुनिक समझ, तकनीक व न्यूनतम संसाधनों का इस्तेमाल और रिसाइक्लिंग पर ज़ोर दिया जाता है। इस प्रकार इसमें लागत भी कम आती है।
प्राकृतिक खेती, किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। इस विधि में कम खर्च में किसान भाई मोटा मुनाफा रहे हैं। नेचुरल फार्मिंग से जैव विविधता बढ़ती है, पशुओं के स्वास्थ्य एवं संरक्षण को बल मिलता है, जलीय परतंत्र में शैवालों की वृद्धि रूकती है, जल संरक्षण होता है, वातावरण पर केमिकल युक्त खादों और कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभाव से बचाव मिलता है, मिट्टी का कटाव कम होता है और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी ये सहायक है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और केरल नेचुरल फार्मिंग के मामले में अच्छा कर रहे हैं। हालाँकि, इसकी स्वीकार्यता फ़िलहाल शुरुआती चरण में है।
देश में 10 लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि पर नेचुरल फार्मिंग हो रही है। इसमें कई चीजों के लिए गाय के गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय स्तर पर जो पशु पाए जाते हैं, उनका इस्तेमाल होता है। भारत में ‘जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग’ लोकप्रिय है, जिससे ग्रीनहाउस गैस नहीं निकलता है और किसानों की आय भी बढ़ती है।
इससे ग्रामीण विकास होता है, रोजगार बढ़ता है। गायों पर आधारित प्राकृतिक खेती में तो पानी और बिजली की भी खपत 90% कम हो जाती है। सीधे शब्दों में समझें तो प्राकृतिक खेती एक रसायनमुक्त व्यवस्था है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है, जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है। प्राकृतिक खेती प्राकृतिक या पारिस्थितिक प्रक्रियाओं, जो खेतों में या उसके आसपास मौजूद होती हैं, पर आधारित होती है। आज प्रत्येक घर में कोई न कोई व्यक्ति रोग से ग्रस्त है। आय का एक बड़ा हिस्सा रोगों के इलाज में खर्च हो रहा है। ऐसे में अब प्राकृतिक खेती का महत्व काफी बढ़ गया है।