प्रभात पांडेय
भारत में युवाओं की बड़ी संख्या आज नशे की गिरफ्त में है। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जो चिंता का विषय है। कुछ राज्यों में यह समस्या गंभीर बन गई है। हालांकि, सरकारें नशे के कारोबार को खत्म करने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं। हाल ही में ड्रग वॉर डिस्टॉर्शन और वर्डोमीटर की चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। जिसके मुताबिक, देश में अवैध दवाओं का कारोबार करीब 30 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है। नेशनल ड्रग डिपेंडेंट ट्रीटमेंट रिपोर्ट के अनुसार, देश की आबादी के 10 से 75 साल तक करीब 20 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह के नशे के आदी हैं। इनमें महिलाओं की संख्या भी अच्छी खासी है। आजकल कम उम्र के बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।
नशे की आदत से न सिर्फ शारीरिक, मानसिक, सामाजिक संरचना कमजोर होती है, बल्कि परिवार, समाज और देश के आर्थिक तंत्र पर बड़ी चोट लगती है। वैश्विक स्तर पर माना जाता है कि विश्व का हर चौथा युवा नशे की गिरफ्त में है। भारत युवा शक्ति का देश है और भारत को नशे की गिरफ्त से बचा कर एक ऊर्जावान युवा शक्ति का बड़ा केंद्र बनाना ही हमारी सार्थकता होगी। NDPS यानी Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985 का नियम कहता है कि भारत में नशीली दवाओं का सेवन और उन्हें बचेना दोनों ही कानूनी तौर पर सही नहीं है। इस नियम के अनुसार, इस तरह के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए। जहां ऐसा करते पाए जाने वाले दोषियों को कम से कम तीन साल की सजा का प्रावधान भी किया गया है। हालांकि, इस नियम कहता है कि अपराध के मुताबिक सजा तय की जाएगी। देश ही नहीं इससे पहले नशे की व्यापकता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा ने 7 दिसम्बर, 1987 को एक प्रस्ताव पारित कर हर वर्ष 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा एवं मादक पदार्थ निषेध दिवस मनाने का निर्णय लिया था। यह एक तरफ लोगों को नशे के प्रति चेतना फैलाता है, वहीं नशे की गिरफ्त में आए लोगों के उपचार की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाता है।
कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र औषधि और नियंत्रण कार्यालय ने एक रिपोर्ट जारी की थी। तब पूरी दुनिया में सालभर में 300 टन गाजे की सप्लाई होती थी। जिसमें करीब 6 प्रतिशत अकेले भारत में खपत होती थी। 2017 में गांजे की सप्लाई 353 टन हो गई, जिसमें से भारत में करीब 10 प्रतिशत सप्लाई हुई। कई आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 तक भारत का अवैध दवा बाजार करीब 10 लाख करोड़ का था। साल 2020 में आई ग्लोबल ड्रग रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में जब्त की गई अफीर में भारत चौथे नंबर पर है। यहां मॉर्फीन की तीसरी सबसे बड़ी खेप होने का अनुमान है।
यह किसी से छिपा नहीं कि मादक पदार्थ विदेश से तस्करी करके देश में लाए जा रहे हैं। वे हर संभव रास्ते से लाए जा रहे हैं। सबसे अधिक नशा समुद्री रास्ते से आ रहा है। मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी ने सतर्कता बढ़ाने के साथ अपनी कार्यप्रणाली बदली है। इसके अलावा इस एजेंसी ने अन्य एजेंसियों के साथ अपना तालमेल बढ़ाने के साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया है। चूंकि एनसीबी का सहयोग राष्ट्रीय जांच यानी एनआइए भी कर रही है, इसलिए नशे के कारोबार का जो अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है, उस पर भी निगाह रखने में आसानी हो रही है।
भारत सरकार नशे की तस्करी रोकने के लिए दूसरे देशों से सहयोग ले भी रही है और दे भी रही है। इसी का नतीजा है कि नशे की बरामदगी बढ़ने के साथ नशीले पदार्थों की तस्करी करने वालों की धरपकड़ तेज हुई है। जहां संप्रग सरकार के कार्यकाल में 2006 से लेकर 2013 तक साढ़े 22 लाख किलो ड्रग्स बरामद की गई थी, वहीं 2014 से लेकर अभी तक 62 लाख किलो से अधिक ड्रग्स पकड़ी गई। इसी अनुपात में नशा तस्करों की गिरफ्तारी भी बढ़ी है। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार नशा तस्करी के खिलाफ कहीं अधिक सक्रिय दिख रही है। चूंकि सीमांत राज्यों से बड़ी मात्रा में नशे की तस्करी हो रही है, इसलिए सीमा की सुरक्षा करने वाले बलों को अधिक अधिकार दिए गए हैं। उन्हें नशा तस्करों की गिरफ्तारी के साथ मामला दर्ज करने का भी अधिकार दिया गया है। यह इसलिए उचित फैसला है, क्योंकि यदि यह काम एनसीबी या फिर किसी अन्य एजेंसी को सौंपा जाता तो यह एक खर्चीला उपाय होता। राज्य सरकारों को नशे की तस्करी रोकने के लिए वैसी ही प्रतिबद्धता दिखानी होगी, जैसी केंद्र सरकार दिखा रही है। केंद्र सरकार राज्यों से लेकर जिला स्तर पर ड्रग्स के खिलाफ ढांचा तैयार करने के लिए नारकोटिक्स कोआर्डिनेशन कमेटी बना रही है। ये कमेटियां मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक लगाने में मददगार साबित होंगी। इसके अतिरिक्त इनसे लोगों और खासकर युवाओं को नशे के खिलाफ जागरूक करने में भी मदद मिलेगी। नकली शराब का कारोबार कमोबेश हर राज्य की समस्या है। चोरी-छिपे शराब बनाने और बेचने वाले हर कहीं मौजूद हैं।
मादक पदार्थों की तस्करी से जो पैसा अर्जित किया जाता है, उसे अधिकांशतः गैर कानूनी और खासकर आतंकी गतिविधियों को संचालित करने में किया जाता है। आम तौर पर पाकिस्तान से बहुत कम दाम में या फिर लगभग मुफ्त ड्रग्स भेजी जा रही है ताकि अधिक से अधिक युवा नशे के आदी हों और उनका भविष्य बर्बाद हो। स्पष्ट है कि पाकिस्तान नशे के जरिये पंजाब को कमजोर करना चाहता है। बेहतर होगा कि पंजाब के साथ अन्य राज्य और खासकर सीमावर्ती राज्य नशे की तस्करी रोकने के लिए अपनी जिम्मेदारी सजगता के साथ निभाएं, क्योंकि जो लोग स्थानीय स्तर पर नशे की तस्करी करते हैं, उन पर लगाम लगाने का काम राज्यों की सरकारों का ही है।
शहर के साथ-साथ गांवों में भी युवा नशे की लत में पड़ अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। गांजा, अफीम व ब्राउन शुगर का सेवन कर रहे हैं। नशे की लत में पड़ कर युवाओं की मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। इनकी स्थिति देख अभिभावक भी परेशान हैं और ये लोग नशे का कारोबार करने वालों को कोस रहे हैं।
रातो रात अमीर बनने की चाहत युवाओं को नशे के कारोबार की ओर धकेल रही है। तस्कर युवाओं को मोटी रकम का लालच देकर इस अवैध कारोबार में जोड़ रहे हैं। कई लोग अफीम का कारोबार कर अर्श से फर्श तक पहुंच चुके हैं। कल तक जो व्यक्ति साइकिल पर चलते थे, वे आज आलिशान मकान व वाहनों के मालिक बन गये हैं। यह करिश्मा उनकी मेहनत की कमाई से नहीं हो पाया है, बल्कि नशा के कारोबार से हुआ है। अफीम, ब्राउन शुगर समेत अन्य मादक पदार्थों का अवैध कारोबार कर कई लोग करोड़ों के मालिक बन बैठे हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो अवैध कारोबार के पैसे के दम पर क्षेत्र में समाजसेवी बने हुए हैं।
युवा वर्ग की कमजोर सोच का फायदा उठाते हुए नशे के व्यापार में लगे हुए लोग उन्हें नशे के लिए प्रेरित करने लग जाते हैं। इसके लिए जरूरी है कि युवा अपने आपको मजबूत बनाएं और गलत संगति से बचें और माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को हालात से लडऩा सिखाएं और उन्हें मजबूत बनाएं। दूसरा बड़ा कारण ये है कि आजकल नशा फैशन बनता चला जा रहा है। गलत संगत में पड़कर नशे को फैशन मान लेना युवा वर्ग की सबसे बड़ी कमजोरी है। दूसरों की देखा-देखी भी लोग नशा करने लग जाते हैं। अपने आपको आधुनिक बनाने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं, जो कि गलत है।