प्रभात पांडेय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि खादी ग्रामोद्योग का कारोबार पहली बार डेढ़ लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है तथा खादी एवं हथकरघा की बढ़ती बिक्री बड़ी संख्या में रोजगार के नए अवसर पैदा कर रही है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 112वीं कड़ी में मोदी ने कहा कि जो पहले कभी खादी के उत्पादों का उपयोग नहीं करते थे, वे भी आज बड़े गर्व से खादी पहनते हैं। उन्होंने देशवासियों से खादी के कपड़े खरीदने का आग्रह भी किया।
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह बताते हुए आनंद महसूस हो रहा है कि खादी ग्रामोद्योग का कारोबार पहली बार डेढ़ लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है। सोचिए, डेढ़ लाख करोड़ रुपये! और जानते हैं, खादी की बिक्री कितनी बढ़ी है? 400 प्रतिशत।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि खादी एवं हैंडलूम उत्पादों की बढ़ती ब्रिक्री देश में रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रही है और चूंकि, इससे महिलाएं सबसे ज्यादा जुड़ी हैं तो सबसे ज्यादा फायदा भी उन्हीं को हो रहा है। अगस्त के महीने को आजादी का महीना करार देते हुए मोदी ने कहा कि लोगों के पास भांति-भांति के वस्त्र होंगे, लेकिन अभी तक उन्होंने यदि खादी के वस्त्र नहीं खरीदे हैं, तो वे इस साल से ही इनकी खरीदारी शुरू कर दें। उन्होंने कहा, ‘अगस्त का महीना आ गया है। यह आजादी मिलने का महीना है, क्रांति का महीना है। इससे बढ़िया अवसर और क्या होगा खादी खरीदने के लिए।’ कभी सादगी की पहचान मानी जाने वाली खादी अब आधुनिकता संग कदमताल कर रही है। यही कारण है कि बाजारों से लेकर मॉल तक खादी के उत्पाद लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। मॉर्डन युग और पहनावे के लिहाज से मन-मस्तिष्क पर हावी हो चुकी ब्रांडेड पश्चिमी सभ्यता के बीचोंबीच लोगों का खादी को अपनाना चमत्कार से कम नहीं है।
खादी’ शब्द महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन की एक तसवीर को जोड़ता है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि खादी लंबे समय तक देश के स्वतंत्रता संग्राम और राजनीति से जुड़ी रही है। खादी एक कपड़ा है जो हाथ से काता जाता है और हाथ से बुना जाता है, यह आमतौर पर सूती फाइबर से बुना जाता है। हालांकि खादी को रेशम और ऊन से भी बनाया जाता है, जिसे खादी रेशम या ऊनी खादी से भी जाना जाता है। खादी कपड़े को इसकी बनावट, आरामदायक एहसास और गर्मियों में लोगों को ठंडा रखने की क्षमता के लिए जाना जाता है। आधुनिक दौर में भी भारतीयों के बीच खादी वस्त्रों का चलन कम नहीं हुआ है। खादी कपड़े का इतिहास न सिर्फ महात्मा गांधी से जुड़ा है, बल्कि सिंधु घाटी सभ्यता में भी इसके प्रमाण मिलते हैं।
अध्ययनों के अनुसार, लगभग 2800 ईसा पूर्व सिंधु सभ्यता में कपड़ों का विकास होने की अच्छी परंपरा थी। सूत की कताई के लिए टेराकोटा स्पिंडल व्होरल, बुनाई के लिए हड्डी से बने उपकरण, कपड़ों के डिजाइन के साथ टेराकोटा मोती और बुने हुए कपड़े पहनने वाली मूर्तियां इन सभी बातों के सही होने का सबूत देती हैं। सबसे मशहूर और पुरानी मूर्ति मोहनजोदड़ो के राजा की मूर्ति है। इसे सिंध, गुजरात और राजस्थान में आज भी इस्तेमाल में आने वाले पैटर्न के साथ पहने हुए दिखाया गया है। इतना ही नहीं मुगल शासकों ने भी किया खादी का इस्तेमाल किया। मुगल शासक भी खादी के इस्तेमाल से अछूते नहीं रहे थे, उन्होंने अपनी कारीगरी और कढ़ाई के साथ खादी का नया निर्माण किया। आज इस कढ़ाई के गिट्टी, जंगीरा पाश्नी, बखिया, खताओ जैसे कई रूप देखने को मिलते हैं।
आज भारत के खादी को दुनियाभर में पसंद किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में खादी ब्रांड बन कर उभरा है और इसकी खरीदारी भी देश विदेश में हाथों हाथ हो रही है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-14 में खादी और ग्रामोद्योगी उत्पादों का उत्पादन जहां 26,109.08 करोड़ रुपये था, वहीं वित्त वर्ष 2023-24 में यह 314.79 प्रतिशत के उछाल के साथ 108297.68 करोड़ रुपये पहुंच गया है। जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में उत्पादन 95956.67 करोड़ रुपये था। पिछले 10 वित्त वर्षों में खादी और ग्रामोद्योगी उत्पादों ने बिक्री के मामले में हर वर्ष नये रिकॉर्ड बनाये हैं. वित्त वर्ष 2013-14 में बिक्री जहां 31154.20 करोड़ रुपये थी, वहीं 399.69 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ यह वित्त वर्ष 2023-24 में 1,55,673.12 करोड़ रुपये पहुंच गई, जो कि अब तक की बेहतरीन बिक्री रही है। खादी के नये कीर्तिमान स्थापित करने का मतलब है, स्वदेशी अभियान और आत्मनिर्भरता की अपील का असर दिखाना।
खादी का कपड़ा खास है जो किसी धर्म-समुदाय से वास्ता नहीं रखता। सच्चे देशभक्त का अपना देशी कपड़ा है। चाहे अल्पसंख्यक हों, सिख हों, साधु-संत हों, या फिर मॉर्डन जमाने के शिक्षित युवा-युवती। सभी ने खादी को अपनाना आरंभ कर दिया है। खादी का आंदोलन, एक सामाजिक-सांस्कृतिक आख्यान, गांधी जी द्वारा मई, 1915 में सत्याग्रह आश्रम से शुरू किया गया था, जो गुजरात के अहमदाबाद जिले में साबरमती आश्रम के नाम से लोकप्रिय है। गांधी युग में खादी के कपड़े लोगों के सिर चढ़कर बोलते थे।
खादी में ट्रेंडी कपड़ों पर विशेष जोर दिया जा रहा है। पहले जहां सिर्फ खादी के कुर्ते व पायजामे ही मिलते थे। वहीं अब ट्राउजर्स, स्वेट शर्ट और हाइनेक जैसे ट्रेंडी कपड़े भी तैयार किए जा रहे हैं। इसके लिए निफ्ट जैसी संस्थाओं से डिजायनरों को हायर किया जा रहा है। चेक वाली शर्टों से लेकर ट्रेंडी कपड़ों की डिजाइनिंग पर विशेष फोकस किया जा रहा है। यही वजह है कि युवाओं की पसंद कॉटन और लिनन है तो लड़कियों को सिल्क खादी भा रही है। मन को भाने वाले रंगों के साथ शाही और कूल लुक के साथ अब खादी डिजाइनर आउटफिट्स की तरह छाई है। इससे खादी के कारोबार बाजार में नई जान आई है। बदलते ट्रेंड के साथ खादी के कपड़ों में आए बदलाव के साथ ही प्रधानमंत्री के आह्वान का युवाओं पर जबरदस्त असर देखने को मिल रहा है।