भारी बारिश और आंधी अपना कहर किस तरह बरपाती है, इससे हम अंजान नहीं हैं। प्रकृति के इस भयावह रूप से हम बचने की लाख कोशिश करें, लेकिन यह हमें अपने चपेटे में ले ही लेती है। केरल के वायनाड में तेज बारिश के बाद हुए भूस्खलन के कारण मरने वालों की संख्या 165 तक पहुंच चुकी है। 220 लापता हैं तथा 131 घायल हुए हैं। मुंडक्कई, अय्यामाला, चूरलमाला और नूलपुझा गांव में देर रात को हुई इस दुर्घटना के बाद बचाव कार्य जारी है।
उत्तर पूर्वी केरल का अकेला पठारी जिला है वायनाड। पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ ये जिला कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर है। चायबागानों वाला ये इलाका लोकप्रिय हिल स्टेशन है। 30 जुलाई की रात जब यहां पर लोग चैन की नींद सोए हुए थे। तभी तेज आवाज आई। भारी बारिश के बीच जमीन सरकने लगी। लोग सुरक्षित जगहों की ओर भागे। सुबह 06 बजे तक यहां मुंडक्कई, मेप्पडी और चूरलमाला नूलपुझा कस्बे में जबरदस्त लैंडस्लाइड हो चुका था।
बारिश, बाढ़ और भूस्खलन इस समय देश के कई हिस्सों को प्रभावित करता हुआ दिखाई दे रहा है। हर साल देश के कहीं हिस्सों में इस तरह की तबाही देखी जाती है जिसमें कई लोगों की जान भी चली जाती है। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है। वह हमेशा के लिए लोगों के दिल दिमाग में बस जाती है। प्राकृतिक आपदा यह शब्द सुनकर हर किसी को वह मंजर याद आ जाता है जो उसने देखा है। आज हम आपको देश में घाटी कुछ प्राकृतिक आपदाओं के बारे में बताते हैं, जिन्होंने जमकर को हराम मचाया और हमेशा के लिए लोगों के जहन में बस गई।
प्राकृतिक आपदाओं के चलते प्रति वर्ष देश में हजारों लोग मारे जाते हैं, और हजारों लोग बेघर हो जाते हैं। देखने में आया है कि हाल के वर्षो में प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता में इजाफा हुआ है। बेशक, सरकार मदद करती है, मुआवजा भी देती है। मगर इससे पीड़ितों को न तो खास राहत नहीं मिलती है, न ही सबको मिल सकती है। सरकारी महकमे की धांधली से बचाव असंभव है। सेना के तीनों अंग और एनडीआरएफ ऐसे वक्त में आपदाग्रस्त देशवासियों के खासे मददगार साबित होते हैं।
नदी-नालों के किनारे बेहिसाब आबादी बस गई है। बहुमंजिला भवन खड़े किए गए हैं। क्षमता से अधिक घर बनाए जा रहे हैं। बिना जांच किए कच्ची मिट्टी पर निर्माण हो रहा है। सड़कों के लिए पहाड़ों की 90 डिग्री एंगल की वर्टिकल कटिंग तबाही का कारण बन रहा है। खड़ी कटाई से बचना हो तो इसके लिए ज्यादा जमीन जरूरी होती है। जितनी जमीन जरूरी होती है, उतना अधिग्रहण करना आसान नहीं है। बेतरतीब निर्माण से शहर तो कंक्रीट के जंगल बन चुके हैं। बड़ी कंपनियां छोटे-छोटे कार्य अनुभवहीन ठेकेदारों को देती हैं। अंधाधुंध पेड़ कटान भी इसका बड़ा कारण है। सड़कों और नदी-नालों के किनारे मलबा अवैध रूप से डंप किया जा रहा है। खड्डों और नालों में तय मानकों से अधिक अवैध खनन हो रहा है। बिजली प्रोजेक्ट लगाने के लिए पहाड़ों को छलनी किया जा रहा है और नदियों का पानी सुरंगों से गुजारा जा रहा है। कंक्रीट के जंगल तो बनाए गए, पर ड्रेनेज प्रणाली नहीं बनी है। ज्यादा बारिश होने पर पानी को जहां से रास्ता मिलता है, वहीं से बहाव तेज हो रहा है और मकान ढह जाते हैं। ग्लोबल वार्मिंग भी अत्यधिक बारिश की वजह है।
जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून पैटर्न में बदलाव आया है, जिसके परिणामस्वरूप कम अवधि में अधिक तेज और एकजगह पर केंद्रीत बारिश होनी लगी। बेशक मौसमी वर्षा में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ लेकिन उसका वितरण असमान हो गया है, कम दिनों में भारी बारिश हो रही है। पानी का अचानक तेज प्रवाह मिट्टी पर हावी हो जाता है, जिससे भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है। अरब सागर के गर्म होने से गहरे बादल प्रणालियों का बनना शुरू हुआ, जो ज्यादा बारिश लेकर चलते हैं और एक जगह ही बरस जाते हैं। वायुमंडलीय अस्थिरता तीव्र बारिश की घटनाओं की अनुमति देती है, ये भी वायनाड के विनाशकारी भूस्खलन से जुड़ी हुई है। केरल में, विशेष रूप से वायनाड में वन आवरण कम होने से भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता बढ़ी है। वनों की कटाई से मिट्टी की स्थिरता और पानी को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे भारी बारिश के दौरान भूभाग कटाव और ढहने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।
पिछले 30 से भी अधिक वर्षों से बहुत सारे वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारणों पर अलग-अलग तरह से अध्ययन कर, पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के क्या क्या कारण हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि लगभग हर रिपोर्ट में इसकी एक ही वजह निकलकर सामने आई है और वह है बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान। वैज्ञानिक अब और ज्यादा आश्वस्त होते जा रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इंसानी प्रभावों के कारण ही वायुमंडल, महासागर और पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। हमेशा से ही यह बहस का विषय का रहा है कि जलवायु परिवर्तन में मानव की कितनी भूमिका है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक गैब वेची कहते हैं कि गर्मी बढ़ने के लिए इंसान ही जिम्मेदार है।
प्रकृति का सौन्दर्य ऐसा है कि वह खुद को खुद से सजाती है तो वहीं जब विकराल रूप ले-ले तो सर्वनाश भी करती है। बंजर जमीन को फिरसे जिंदा कर सकती है तो किसी हरे-भरे जगह को भी प्रकृति फिरसे बंजर बना सकती है। हमने कई जंगल और नदियां देखी हैं जिन्हें किसी ने बनाया नहीं न ही किसी ने संवारा वो तो प्राकृतिक रूप से प्रकृति ने खुद ही इस पृथ्वी पर अपनी जगह बनाई। लेकिन बदलते वक्त के साथ सब बदलता है और उसी तरह बदला विश्व का प्राकृतिक परिवेश भी जिसमें मनुष्य का योगदान सबसे ज्यादा रहा है। परंतु आधुनिकता की चकाचौंध में इंसान इतना अंधा हो चुका है कि इन प्राकृतिक स्त्रोतों को अनजाने में स्वयं ही खत्म कर रहा है। जीव, जंतु, जंगल, नदियां व पहाड़ तेजी के साथ खत्म हो रही हैं तथा उसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ रहा है। नतीजा हम सबके सामने है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है और ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। यदि समय रहते इसे संजीदगी से नहीं लिया गया तो मानव जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।