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आजादी के 77 साल: देश दिन दोगुनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है आगे

प्रभात पांडेय

देश की आजादी का दिन यानी राष्ट्रीय पर्व का मौका आ गया है। हर साल 15 अगस्त के दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। कई दशकों तक भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी व ब्रिटिश हुकूमत ने राज किया। भारतीय अपने ही देश में गुलामों की जिंदगी जी रहे थे। हालांकि भारतीयों ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ते हुए क्रांति और आंदोलन किए, जिससे हार मानकर अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा।

भारत को ब्रिटिश राज से आजाद हुए लगभग 77 साल हो गए हैं। लेकिन आज भी जब अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी सुनने को मिलती है, तो रूह कांप उठती है। 200 साल भारत तक भारत पर राज और यहां के लोगों पर अत्याचार करने के बाद आखिरकार 15 अगस्त, 1947 का वह दिन आया, जब भारतवासियों ने स्वतंत्रता का सूरज देखा और आज भारत में सांस लेने का अनुभव किया। लेकिन इस आजादी को पाने के लिए न जाने कितनी ही जानें गईं और अनगिनत लोग इस लड़ाई में शहीद हुए। आजादी की जंग का इतिहास शूरवीरों के किस्सों से भरा पड़ा है। कुछ के नाम तो हमें मुंह जुबानी याद हैं, लेकिन कुछ ऐसे वीर भी रहे हैं, जिनके बलिदान के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने के लिए, एक खुशहाल जिंदगी बिताने के लिए, देश की तरक्की के लिए और भारत को उसकी पहचान दिलाने के लिए जो सबसे ज्यादा जरूरी थी वह थी स्वतंत्रता। मनुष्य की प्रवृत्ति ही स्वतंत्र रहने की है। स्वतंत्रता सबको प्रिय है। इस स्वतंत्रता को पाने के लिए देश ने बहुत कुछ खोया है।

इस आजादी को पाने के लिए बहुत सी कुर्बानियां दी गई। हमारे आजादी के नायकों ने बहुत से जख्म सहे, उन पर हुए जुल्म की बहुत सारी कहानी हैं जो आज भी जब हम सुनते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सिसकियां हैं। रुदन है। अनगिनत अत्याचारों को सहन करने और जुल्म की पराकाष्ठा को झेलते हुए अपनी आजादी का सपना संजोए उसे हासिल करने के लिए एक के बाद एक छोटी-छोटी उम्र के क्रांतिवीरों और देशभक्तों ने देश के लिए अपना लहू बहाया और निष्ठुर-बेदर्द अंग्रेजों के जुल्मों को सहते हुए देश को आजाद कराया।

ये आजादी हमें बहुत बड़ी कीमत चुकाने के बाद मिली है। क्रांतिवीरों में छटपटाहट थी, भुजाओं में जोश और उन्होंने रात दिन यही सोच कि कैसे अपने देश को निरंकुश सत्ता से मुक्त करा सकें। आजादी की खुली हवा में सांस लें। हमारा अस्तित्व हो और अपना तिरंगा लहरा सकें। इसलिए उन्होंने लगातार जुल्मों को बर्दाश्त किया। अपने शरीर पर कोड़ों की मार सही। फांसी के फंदे को हंसते-हंसते गले लगया। जंजीरों में जकड़े गए। शहीद हुए पर हमें आजादी दिलाई। खुद जिंदगी नहीं जी पाए लेकिन हमें जीवन दे गए। आजादी की सुबह नहीं देख पाए लेकिन हमें आजाद कर गए। जिनका अपना परिचय गुमनामियों में खो गया वो हमें हमारे वजूद से मिला गए। उफ! न जाने कितनी परेशानियां झेलीं, हमें स्वतंत्र करवाने की खातिर। खुद खामोश हो गए, दुनिया में अमर हो गए।

भारत वीर सपूतों की धरती है और यहां आजादी की लड़ाई में कई वीरांगनाओं ने भी अपना बलिदान दिया था। इसकी मिट्टी से होनहार, बहादुर सुत भी पैदा हुए हैं और सुता भी। भारत तकरीबन एक सदी तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। इस गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए हिंदुस्तान की वीरांगनाओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी। 1857 के पहले स्वातंत्र्य समर से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक ये महिलाएं डटी रहीं और जब आजाद भारत की अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी उस वक्त भी नए भारत के नींव निर्माण में उन्होंने अपना शत प्रतिशत योगदान दिया। आज हम बात करेंगे उन्हीं वीरांगनाओं की, जिनके बलिदान और देश-निर्माण में योगदान के लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंग।

पूरी दुनिया को लोकतंत्र का संदेश देने वाला भारत देश इकलौता ऐसा देश है, जहां सभी धर्म और वर्गों को समान अधिकार है और यही वो बात है जो भारत देश को दुनिया से अलग बनाती है। आज हमने देश की आजादी के 77 सालों का सफर तय किया है और यह सफर निरंतर जारी रहेगा। हर देशवासी आजादी के उत्सव को हमेशा यूं ही मनाता रहेगा। आज हम देश की आजादी का महा उत्सव मना रहे हैं। हम अमृत महोत्सव अमृत काल को मना रहे हैं। आजादी से पहले हमारे पूर्वजों ने दूसरों के शासन में सांस ली। हमारे पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई लड़ी और हमें आजादी दिलाई और यही वजह है कि आज हम आजाद भारत के नागरिक कहलाते हैं। धीरे धीरे चीजें बदली हैं। आजादी के समय हमारे देश की हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी। कई सारी चीजें हमें बाहर से मंगानी पड़ती थी। पर धीरे धीरे देश की सभी सरकारों ने देश को मजबूत किया है।

आज हमारे पास बड़े बड़े मेडिकल कॉलेज, आईआईटी, आईटी सेक्टर, विश्वविद्यालय, नामी कंपनियां है, जिससे देश तरक्की करने लगा और आगे बढ़ता चला जा रहा है। देश विकसित होता चला रहा है और हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। आज हम विश्व पटल पर एक मजबूत स्थान पर हैं। मैं चाहता हूं कि शिक्षा के क्षेत्र में देश और मजबूत हो। हमारे विश्वविद्यालय में दूर दराज के जिलों के छात्र पढ़ने आते थे पर अब निजी विश्वविद्यालय ज्यादा है वो पुराने विश्व विद्यालय पर फर्क पड़ रहा है।

बीते 77 सालों में भारत ने विकास और आधुनिकीकरण के नवीन आयाम गढ़े हैं, पर भ्रष्टाचार, सियासी जंग, धनलोलुपता और अवसर वादिता ने अनेक प्रश्न भी खड़े किए हैं। दुख की बात तो यह है कि अब भी हम अच्छे और संगठित नागरिक नहीं बन पाए। इतने बलिदानों के बाद भी देश के लिए जो जज्बा हमारे भीतर होना चाहिए था वह कम ही दिखता है। हमारी युवा पीढ़ी क्रांतिकारियों की गौरव गाथाओं को नहीं जानती। लेकिन इसके लिए सिर्फ नई पीढ़ी को दोष देना उचित नहीं है। हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या जानकारियां देकर जा रहे हैं। लाखों मां ने अपने बेटे खोए तब ये आजादी आई है। लाखों बहनों ने अपने भाई खोए तब ये आजादी आई। अगर आज भारत को विश्वगुरु बनाना है तो देश के युवाओं को देश के लिए मरना नहीं होगा बल्कि आज के युवाओं को देश के लिए जीना होगा, तभी भारत पुन: विश्व गुरु बन पाएगा। युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद जी ने क्या खूब कहा है- “युवाओं उठो, जागो और उद्देश्य प्राप्ति के पहले मत रुको।”

Aryavart Kranti
Author: Aryavart Kranti

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