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हमारी थाली मिलावट वाली, यहां नमक और चीनी भी नहीं है शुद्ध…

इन दिनों तेजी से बदलती लाइफस्टाइल लोगों को कई समस्याओं का शिकार बनाने लगी है। खराब जीवनशैली की वजह से स्वस्थ रहना ही एक बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे लंबा जीवन तो बस ख्यालों की बात लगती है। कई लोगों को आज के दौर में 100 साल तक जीना बस एक सपना लगता है। पिछले सप्ताह एक एन.जी.ओ. द्वारा किए गए शोध से पता चला कि देश में अधिकतर नमक और चीनी निर्माता हमें प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण खिला रहे हैं। ‘टॉक्सिक्स लिंक’ नाम की एक एन.जी.ओ. के पर्यावरण अनुसंधान विभाग द्वारा किए गए एक शोध के बाद यह दावा किया गया। जब से यह खबर उजागर हुई तो उपभोक्ताओं के मन में कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। भारत में बढ़ते हुए कैंसर, दिल के रोगों, मोटापे और अन्य बीमारियों का कारण भी कहीं रोजमर्रा खाने वाले नमक और चीनी में मौजूद ये प्लास्टिक के कण तो नहीं? यदि ऐसा है तो यह एक गंभीर मामला है। घरेलू नमक और चीनी में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक के कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें आप अपनी आंख से देख भी नहीं सकते। चिंता की बात यह है कि प्लास्टिक के इतने सूक्ष्म कण आपके शरीर में कई सालों तक रह सकते हैं। इतने वर्ष तक यदि ऐसे कण आपके शरीर में रह जाएंगे तो इनका आपकी सेहत पर दुष्प्रभाव तो पड़ेगा ही। जब नमक और चीनी जैसी चीज में इतनी मिलावट है तो फिर अन्य खान-पान वाली चीजों क्या कुछ मिला रहे होंगे ये व्यपारी। अब चूंकि यह शोध सामने आया है तो इसे गंभीरता से लेते हुए इसकी विस्तृत जांच भी होनी चाहिए और साथ ही दोषियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई भी की जानी चाहिए।

आज के दौर में हम जितना भी सादा भोजन करें, हम किसी न किसी मात्रा में नमक और चीनी तो लेते ही होंगे यदि इन जरूरी तत्वों के सेवन से हमें कैंसर और दिल के रोग होने लग जाए तो इंसान कहां जाए। यदि मिलावटी मसालों की बात होती है तो हम अपनी दादी-नानी के घरेलू नुस्ख़े आज़मा कर रोज़मर्रा के मसालों को घर में ही कूट-पीस सकते हैं। यदि दूषित पानी और कीटनाशक से उगी सब्ज़ियों और फलों की शिकायत मिले तो हम जैविक खेती की मदद से शुद्ध सब्ज़ियों और फलों का सेवन कर लेते हैं। परंतु यदि हर घर में इस्तेमाल होने वाले नमक और चीनी में ही इस क़दर मिलावट होने लगे तो आपक्या करेंगे ? लालच इंसान को किस हद तक ले जाता है कि मुनाफ़े के चक्कर में कुछ चुनिंदा उद्योगपति आम जनता को ज़हर परोस रहे हैं।

इन दिनों शहर में रोजमर्रा की खाद्य सामग्रियों में मिलावट का व्यापार तेजी से चल रहा है। खाद्य पदार्थों में मिलावट, नकली ब्रांड और घटिया गुणवत्ता के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। मुनाफाखोरी और व्यापार की प्रतिस्पर्धा के कारण मिलावट का यह खेल बेधड़क चल रहा है। दाल, दूध, मावा, घी, मसाले, आटा, फल-सब्जियां सहित खाने-पीने की लगभग हर चीज में मिलावट की जा रही है। वहीं, कंपनियों के उत्पाद भी गुणवत्ता के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे हैं। मिलावट के धंधे को रोकने के लिए स्पेशल विग बनाई गई है, बावजूद इसके मिलावटखोरी पर लगाम कसने में नाकाम नजर आ रहे हैं। ऐसे हालातों में मिलावटखोर और घटिया सामग्री बेचने वाले लोग अपने धंधे को चमका रहे थे। ऐसा ही खुलासा जिला खाद्य एवं सुरक्षा विभाग को मिली सैंपल रिपोर्टो में हुआ, जिसमें न केवल खुली चाय पत्ती, दाल व ब्रांडेड देशी घी अनसेफ पाए गए। वहीं होटलों के शान कहे जाने वाला पनीर, कोल्ड ड्रिक, आइसक्रीम भी सबस्टैंर्डड के पाए गए हैं। मापदंडों पर खरे न उतरने वाले खाद्य पदार्थ बेचने वाले दुकानदारों के खिलाफ विभाग द्वारा कार्रवाई की सिफारिश की गई है।

शहर में अनेक स्थानों पर नकली रंग युक्त खाद्य मसाले खुले आम बिक रहे हैं। मिर्ची, हरा धना, हल्दी सहित अन्य मसालों में केमिकल युक्त रंगों का उपयोग किया जा रहा है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक है। वहीं मिलावटी दूध, नकली घी, तेल, बटरा मिक्स बेसन का कारोबार कम होने के बजाय दिनों दिन बढ़ रहा है। डिब्बाबंद प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, बोतलबंद कोल्ड ड्रिक और ब्रांडेड-नान ब्रांडेड फास्ट फूड भारत में लोकप्रिय होने के साथ-साथ हमेशा विवादों में रहा है। पिछले दशक में कोल्ड ड्रिक में पेस्टीसाइड्स पर विवाद रहा। साथ ही नूडल्स बनाने-बेचने वाली मल्टीनेशनल कंपनी के उत्पाद में जरूरत से ज्यादा शीशा और मोनोसोडियम ग्लूटामेट पाए जाने का मामला सामने आया था। इससे उपभोक्ताओं का विश्वास तैयार खाद्य आइटमों से उठ-सा गया। लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार धड़ल्ले से चल रहे इस मिलावट के कारोबार में नगर के अनेक बड़े व्यापारी भी संलग्न है। साथ ही भारत में मौजूद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता तय करने वाली व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा भी हर किसी को होने लगा।

बाजारों में बिक रहे अमानक स्तर के खाद्य पदार्थो की बिक्री को रोकने के लिए कभी कभार थोड़ी बहुत कार्रवाई होती है तो उसमें भी छोटे दुकानदारों पर ही कार्रवाई की जाती है। जो प्रतिदिन इसका व्यापार बड़े स्तर पर कर रहे हैं उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। भारत में तैयार एवं खुले बिक्री के लिए उपलब्ध खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता मापने के लिए पर्याप्त कानून तो है, लेकिन इसे लागू करने वाले हमेशा से पैसे के आगे बौने हो जाते हैं।

खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने पिछले तीन सालों में कुल 626 खाद्य पदार्थो के नमूने लिए. इनकी जांच की गई तो जांच में 308 नमूने फेल रहे। जबकि 230 केस डिसाईड किए जा चुके हैं। बावजूद इसके जिम्मेदार मिलावटखोरों पर नकेल कसने में नाकाम साबित हो रहे हैं। मसालों से लेकर दूध, दही और घी, तेल में सबसे ज्यादा मिलावट के मामले सामने आए हैं। वहीं मिलावटी दूध और उससे बने उत्पाद जान से खिलवाड़ कर रहे है।
मिलावटी खाद्य सामग्री का उपयोग करने से लगातार सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इसका असर स्वास्थ्य पर धीरे-धीरे पड़ता है और यह बीमारी जानलेवा साबित हो जाती है। डाक्टरों का मानना है कि मिलावटी खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल से पेट की विभिन्न बीमारियों का खतरा रहता है। रसायन युक्त मिलावट से किडनी, लीवर, त्वचा, आंत और पेट के आंतरिक हिस्सों को नुकसान हो सकता है। ज्यादा इस्तेमाल से किडनी फेल होने का खतरा भी रहता है। साथ ही अल्सर, संक्रमण का खतरा भी रहता है।

शहर में अनेक स्थानों पर नकली रंग युक्त खाद्य मसाले खुले आम बिक रहे हैं। मिर्ची, हरा धना, हल्दी सहित अन्य मसालों में केमिकल युक्त रंगों का उपयोग किया जा रहा है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक है। वहीं मिलावटी दूध, नकली घी, तेल, बटरा मिक्स बेसन का कारोबार कम होने के बजाय दिनों दिन बढ़ रहा है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार धड़ल्ले से चल रहे इस मिलावट के कारोबार में नगर के अनेक बड़े व्यापारी भी संलग्न है। डब्लूएचओ के मुताबिक दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से हर साल 10 में से एक व्यक्ति बीमार हो रहा है।

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है और इस धन को बचाये रखने के लिये आपको खाने में वें तमाम ज़रूरी पोषक तत्त्व शामिल करें जिनकी आपके शरीर को ज़रूरत है। अगर हम खान-पान को लेकर सचेत नहीं हुए तो हमारी थाली में लगातार मिलावटी खाद्य पदार्थों का सिलसिला जारी रहेगा। एफएसडीए विभाग का तो यही कहना है। एफएसडीए की रिपोर्ट बताती है कि 50 फीसदी से ज्यादा खाद्य पदार्थ मिलावटी पाए जा रहे हैं। ऐसे में विभाग के सामने उपभोक्ताओं को शुद्ध खाद्य पदार्थ पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं। एफएसडीए विभाग द्वारा लिए जा रहे खाद्य पदार्थों के नमूने जिस तरह से फेल हो रहे हैं, उससे खाद्य विभाग के सामने आमजन की थाली तक हेल्दी और मिलावट रहित भोजन पहुंचाना एक बड़ी चुनौती बन गई है। यही वजह है कि विभाग लगातार न केवल उपभोक्ताओं को जागरूक कर रहा है बल्कि मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई कर रहा है। विभाग की मंशा है कि हर कोई ‘ईट राइट’ अभियान से जुड़कर सही भोजन हासिल।

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Author: Aryavart Kranti

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