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बच्चों के दिमाग को कंट्रोल कर रहा मोबाइल फोन

डिजिटल तकनीकें किसी दोधारी तलवारों से कम नहीं, जिनका यदि सही उपयोग न किया जाए तो वो उपयोग करने वालों को ही नुकसान पहुंचा सकती हैं। ऐसा ही कुछ शिक्षा के क्षेत्र में स्मार्ट फोन जैसी डिजिटल तकनीकों की वजह से हो रहा है। फायदों के बावजूद स्मार्टफोन जैसी डिजिटल तकनीकों का बढ़ता दुरुपयोग बच्चों को शिक्षा से दूर ले जा रहा है। किसी नशे की तरह बच्चे इसकी लत का शिकार बनते जा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाने से क्लास में अनुशासन बना रहेगा और बच्चों को ऑनलाइन डिस्टर्ब होने से बचाया जा सकेगा। यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल एक टूल की तरह ही किया जाए।

ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (जीईएम) की रिपोर्ट से मिली है। यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन (यूनेस्को) द्वारा प्रकाशित ‘टेक्नोलॉजी इन एजुकेशन’ रिपोर्ट ने इसका उल्लेख किया है कि मूल्यांकन डेटा से पता चला है कि मोबाइल के नजदीक होने से स्टूडेंट्स का ध्यान भटकता है और सीखने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

यूनेस्को ने इस बात पर चिंता जताई है कि छात्रों द्वारा डिवाइस का एक सीमा से ज्यादा इस्तेमाल करने से शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि स्मार्टफोन और कंप्यूटर का उपयोग कक्षा और घर पर सीखने की गतिविधि को बाधित करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘चौदह देशों में प्री-प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक के स्टूडेंट्स को कवर करने वाले छात्रों के मोबाइल-फोन के उपयोग और शैक्षिक परिणामों के बीच संबंधों पर शोध के मेटा-विश्लेषण में एक छोटा नकारात्मक प्रभाव पाया गया, जो यूनिवर्सिटी लेवल पर बड़ा था।यह गिरावट मुख्य रूप से सीखने के घंटे के दौरान नॉन एजुकेशनल एक्टिविटीज पर लगाए गए समय और ज्यादा ध्यान भटकने से जुड़ी है।’

कई क्लासेज में, कागज की जगह स्क्रीन ने ले ली है और पेन की जगह कीबोर्ड ने ले ली है। कोविड-19 को एक स्वाभाविक प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है, जहां रातों-रात पूरे एजुकेशन सिस्टम के लिए सीखना ऑनलाइन हो गया।’ इसमें कहा गया है, ‘व्यापक अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन डेटा, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (पीआईएसए) द्वारा प्रदान किया गया, अत्यधिक आईसीटी (इनफार्मेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी) के इस्तेमाल और स्टूडेंट्स के प्रदर्शन के बीच एक नकारात्मक संबंध का संकेत देता है। 14 देशों में पाया गया कि मोबाइल के पास होने मात्र से स्टूडेंट्स का ध्यान भटकता है और सीखने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, फिर भी चार में से एक से भी कम देश ने स्कूल में स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है।’

इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र ने स्कूलों में स्मार्टफोन रखने के खतरों के बारे में चेतावनी दी है। इन दिनों कई गतिविधियां ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं क्योंकि यह बहुत सुविधाजनक है। इसमें शिक्षा भी शामिल है। इसी कारण से छात्रों के लिए मोबाइल फोन उनकी शिक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। जो बातें पहले व्यक्तिगत कक्षाओं के दौरान कक्षा में बताई जाती थीं, उन्हें फोन पर पाठ के माध्यम से आसानी से व्यक्त किया जा सकता है। बच्चों के लिए मोबाइल फोन का सबसे आम नुकसान यह है कि उन्हें फोन की लत लग जाती है। हमें यह याद रखना होगा कि स्कूली छात्र आखिरकार बच्चे ही होते हैं और वे लगभग हमेशा पढ़ाई और पाठ्येतर गतिविधियों को लेकर तनावग्रस्त रहते हैं। यही कारण है कि जब उनके हाथ में कोई फोन आता है तो वे उसमें डूब जाते हैं। यह आदत कभी-कभी इतनी खराब हो जाती है कि छात्र जल्द से जल्द अपने फोन पर वापस जाने के लिए पढ़ाई को नजरअंदाज करने लगते हैं। आज के दौर में मोबाइल हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। हमारी आदतों का असर धीरे-धीरे हमारे बच्चों पर भी पड़ने लगा है। बच्चे स्कूल जाने से पहले और आने के बाद मोबाइल फोन को इस्तेमाल करने के आदी हो गए हैं और घंटों मोबाइल पर गेम्स खेलते हैं। भले ही इस आदत के लिए अभिभावक खुद जिम्मेदार क्यों न हों, लेकिन इसके नुकसान तो बच्चों को ही झेलने पड़ते हैं। छोटी आयु में बच्चों को मोबाइल देने से उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।

स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य उपकरणों के व्यापक उपयोग के साथ इंटरनेट, सोशल मीडिया का प्रयोग हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। इंटरनेट ने जहां लोगों को काफी लाभ पहुंचाया है, इसके साथ ही इसने नई चुनौतियाँ भी पैदा की हैं। डिजिटल क्रांति ने एक तरफ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे लोगों के बीच की दूरियों को कम कर दिया है, वहीं वास्तविक सामाजिक-सम्बन्धो से दूर भी किया है। इसके अलावा इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

इंटरनेट की लत बच्चों और किशोरों के बीच एक बढ़ती हुई समस्या है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जिन बच्चों को इंटरनेट की लत होती है, उनके शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट, नींद में गड़बड़ी, चिंता और यहां तक कि डिप्रेशन की भी समस्या हो सकती है। विशेष परिस्थिति में दोस्त बनने-बनाने या दूसरों के साथ संवाद करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही उन्हें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में कठिनाई हो सकती है।

इसके अलावा, जो बच्चे अत्यधिक मात्रा में ऑनलाइन समय बिताते हैं, उन्हें अनुचित सामग्री, साइबरबुलिंग और ऑनलाइन धोखाधड़ी करने वालो के संपर्क में आने का खतरा होता है। इंटरनेट पर अपने आप को छुपाना बहुत आसान होता है जिसकी वजह से बच्चे नकारात्मक और खरतनाक व्यवहारों के लिए आकर्षित होते हैं, जिसका बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। वे अपना अधिकांश समय बाहर खेलने और शारीरिक रूप से सक्रिय होने के बजाय अपना अधिकांश समय ऑनलाइन व्यतीत करते हैं। कई बच्चे ऑनलाइन गेमिंग के भी आदी हैं, और कभी-कभी यह लत गंभीर वित्तीय नुकसान का कारण भी बन सकती है। हमें बच्चों को तकनीकों के साथ और उसके बिना भी रहना सिखाना चाहिए। तकनीकों की मदद से जरूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए लेकिन साथ ही जो जरूरी न हो उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए।

Aryavart Kranti
Author: Aryavart Kranti

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