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1 Aug 2025, Fri

UN में इजराइल और फिलिस्तीन के समाधान पर हुई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस, जानिए भारत समेत अन्य बड़े देशों ने क्या कहा?

वॉशिंगटन, एजेंसी। संयुक्त राष्ट्र में इजराइल-फिलिस्तीन संकट का स्थायी समाधान निकालने के लिए एक हाई लेवल इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस हुई। इसमें दुनिया के कई देशों ने दो राज्य सिद्धांत पर एकजुट होकर आवाज उठाई। हालांकि अमेरिका और इजराइल ने इस कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार किया लेकिन फ्रांस और सऊदी अरब की अध्यक्षता में हुए इस सम्मेलन में 193 सदस्य देशों में से ज्यादातर प्रतिनिधि शामिल हुए।
सम्मेलन के दौरान न्यूयॉर्क डिक्लरेशन नामक एक योजना पेश की गई, जिसमें गाजा में जारी युद्ध को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने, और भविष्य में एक स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य की स्थापना की बात कही गई। ये प्रस्ताव इस बात पर भी जोर देता है कि इजराइल की सुरक्षा भी उतनी ही अहम है। आइए जानते हैं भारत समेत दूसरे देशों ने इस पर क्या कहा है?
यूएन महासचिव ने दी चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि ये सम्मेलन सिर्फ अच्छी नीयत वाला एक और भाषण मंच बनकर नहीं रह जाना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन फिलिस्तीन-इजराइल मसले पर कोई ठोस दिशा तय करने वाला मोड़ साबित होगा।
भारत का रुख: बातचीत और कूटनीति का रास्ता
भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि हरिश पारी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए दो-राज्य समाधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा तत्काल युद्धविराम, मानवीय मदद की आपूर्ति और बंधकों की सुरक्षित रिहाई की मांग की है। भारत मानता है कि संवाद और कूटनीति ही इस जटिल मसले का हल निकाल सकती है।
रूस: इजराइल और फिलिस्तीन दोनों का समर्थन
रूसी उपविदेश मंत्री सर्गेई वर्शिनिन ने सम्मेलन में पुराने इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने सबसे पहले इजराइल को मान्यता दी थी, लेकिन साथ ही वो फिलिस्तीन को भी राज्य का दर्जा देकर दो-राज्य समाधान का मजबूत पक्षधर रहा है। रूस ने फिलिस्तीन के लिए 1990 से ही मॉस्को में दूतावास खोल रखा है।
UAE: ज़मीनी और हवाई राहत अभियान
गाजा में जारी मानवीय संकट को लेकर यूएई के विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री खलीफा शाहीन अल मरार ने कहा कि उनका देश फिलिस्तीनी लोगों तक जरूरी मदद पहुंचाने में सबसे आगे रहा है। उन्होंने कहा कि सिर्फ राहत पहुंचाने से बात नहीं बनेगी। जरूरी है कि तुरंत युद्धविराम हो, बंधक और कैदियों को रिहा किया जाए, और पूरी दुनिया मिलकर गाजा में जारी जंग को रोके। इसके लिए उन्होंने एक स्पष्ट रोडमैप की मांग की, जो एक आजाद और संप्रभु फिलिस्तीन राज्य की ओर ले जाए।
ब्रिटेन: ऐतिहासिक जिम्मेदारी का एहसास
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने कहा कि उनका देश दो-राज्य समाधान का समर्थक है और ब्रिटेन की ऐतिहासिक भूमिका के चलते उस पर खास ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाए। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में ब्रिटिश सरकार ने कई अहम कदम उठाए हैं जैसे कि UNRWA (जो फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद करता है) की फंडिंग फिर से शुरू करना, हथियारों का निर्यात रोकना, मानवीय मदद के लिए बड़ी रकम देना और फिलिस्तीनी अथॉरिटी के साथ एक अहम समझौता करना।
बांग्लादेश और पाकिस्तान की तीखी टिप्पणियां
बांग्लादेश ने अपने ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र करते हुए फिलिस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया। वहीं पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री इशाक डार ने कहा कि गाजा आज अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवता के सिद्धांतों का कब्रिस्तान बन गया है। उन्होंने इजराइल पर आम लोगों और नागरिक ढांचे को निशाना बनाने का आरोप लगाया।
अरब देशों की नई पहल: हमास की आलोचना
सम्मेलन में सबसे अहम बात यह रही कि ‘न्यूयॉर्क डिक्लरेशन’ में 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजराइली नागरिकों पर हुए हमले की निंदा की गई। ये पहला मौका है जब कई अरब देशों ने हमास की खुलकर आलोचना की है। इस सम्मेलन से एक बात तो साफ हो गई कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब इस पुराने विवाद का स्थायी समाधान चाहता है। लेकिन अमेरिका और इजराइल के न शामिल होने से यह रास्ता आसान नहीं लगता। अब देखना होगा कि सितंबर में जब संयुक्त राष्ट्र महासभा की 80वीं बैठक होगी, तब तक इस डिक्लरेशन को कितने देशों का समर्थन मिल पाता है और क्या वास्तव में कोई ठोस कार्रवाई की शुरुआत होती है।

By Aryavartkranti Bureau

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