नई दिल्ली, एजेंसी। बिहार में एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया। सोमवार को चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव अधिकारियों द्वारा आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में माना जाएगा। आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की जांच करने का अधिकार अधिकारियों को रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। चुनाव आयोग इस आदेश की जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे।
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आधार पहचान का प्रमाण हो सकता है, नागरिकता का नहीं। वहीं, सिब्बल ने जोर दिया कि यह 12वां दस्तावेज होगा, जिसे उन्हें स्वीकार करना होगा। गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि वे इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? जस्टिस कांत ने कहा कि अगर इसे 12वां दस्तावेज माना जाता है, तो इसमें क्या समस्या है?
द्विवेदी ने कहा कि इसे पासपोर्ट की तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से अगर कोई आवेदन करता है और अगर आपको संदेह है तो जांच करा लें। शीर्ष अदालत ने कहा कि विधायी स्थितियों में आधार है तो आप उस परिधि को लांघ नहीं सकते। चुनाव आयोग ने कहा कि हम पासपोर्ट की तरह आधार को नहीं स्वीकार कर सकते। बिहार में सभी 11 दस्तावेजों को पेश करने में सक्षम हैं।
जस्टिस कांत ने कहा कि लोगों ने हर तरह के दस्तावेज जाली बनाए हैं, लेकिन चुनाव आयोग उनकी पुष्टि कर सकता है। एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि अगर किसी के पास 11 दस्तावेज नहीं हैं, तो उसके पास आधार कार्ड कैसे है? वकील ग्रोवर ने कहा कि गरीबों के पास यही एकमात्र दस्तावेज है। द्विवेदी ने कहा कि हम जानते हैं कि कौन गरीबों को हटाना चाहता है। सिब्बल ने कहा कि मैं सिर्फ पहचान की बात कर रहा हूं। मेरी पहचान स्वीकार करें। एक वकील ने कहा कि गलत व्यक्ति को भी शामिल करना प्रतिकूल होगा। जस्टिस कांत ने कहा जो इस देश के असली नागरिक हैं, उन्हें वोट देने का अधिकार है। जो लोग जाली दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता का दावा कर रहे हैं, उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है।
आधार पर कानून बिल्कुल स्पष्ट- सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस कांत ने कहा कि आधार पर कानून बिल्कुल स्पष्ट है। आधार आधिकारिक दस्तावेजों में से एक है। चुनाव आयोग इसे लेंगे और इसकी जांच करेंगे। द्विवेदी ने कहा कि आधार निवास के लिए दिया जा सकता है। जस्टिस बागची ने कहा कि अधिनियम के एक प्रावधान में आधार को निवास के दस्तावेज़ के रूप में विशेष रूप से संदर्भित किया गया है। जस्टिस कांत ने कहा कि जरूर कहीं कोई भ्रम हो रहा है। द्विवेदी ने कहा कि आधार को डिजिटल रूप से अपलोड किया जा सकता है। कानूनी अधिकारियों को भी अपलोड करने की अनुमति है। हम इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं मान रहे हैं। हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन के लिए यह निर्धारित करने का अधिकार नहीं है कि कोई व्यक्ति नागरिक है या नहीं। मतदाता सूची के संदर्भ में हमें इसकी जांच करने का अधिकार है।
आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं पर एक दस्तावेज तो है- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मानते हैं कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन एक दस्तावेज है जो राशन कार्ड या ईपीआईसी की तरह हैं। द्विवेदी ने कहा कि हम आधार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक और कानून के मुताबिक स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन उसे नागरिकता का प्रमाण नहीं मान रहे हैं, लेकिन हम नागरिकता नहीं जांच रहे हैं। सिब्बल ने कहा कि इस न्यायालय के तीन आदेश हैं, जिनमें कहा गया है कि आधार स्वीकार किया जाए। खुद बीएलओ के बयान हैं, जिनमें कहा गया है कि आधार स्वीकार नहीं किया जा सकता। सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार को स्वीकार किया जाए। बीएलओ अवमानना कर रहे हैं, उन्होंने बीएलए को सूचित किया है कि उन्हें 11 में से एक दस्तावेज की आवश्यकता होगी, मैं सबूत दिखाऊंगा। चुनाव आयोग 11 दस्तावेजों के अलावा अन्य दस्तावेज स्वीकार करने वाले अधिकारियों को दंडित कर रहा है। बीएलओ को 11 दस्तावेजों के अलावा अन्य दस्तावेज स्वीकार करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। बीएलओ ने हस्ताक्षरित बयान दिए हैं। जस्टिस कांत ने कहा कि हमें कारण बताओ नोटिस दिखाएं।