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30 Jan 2025, Thu

बजट में कृषि, एमएसएमई, घरेलू खपत और रोजगार सृजन को प्राथमिकता की उम्मीद

आगामी बजट में वित्त मंत्री किस क्षेत्र के लिए क्या घोषणाएं करेगी और क्या आम आदमी को महंगाई से राहत मिलेगी या करों का भर बढ़ेगा। फिलहाल यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है। जानकारों ने अपनी मांगें भी सरकार के सामने रखी हैं। बाजार के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि बजट में भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ऐसे उपायों पर ध्यान दिया जाएगा जो समावेशी विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाते हैं। बजट में कृषि, एमएसएमई, घरेलू खपत और रोजगार सृजन को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है। जानकारों का अनुमान है कि घरेलू खर्च को बढ़ावा देने वाले उपायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
बाजार को विशेषज्ञों की बजट से उम्मीद
श्रीराम एएमसी के वरिष्ठ फंड मैनेजर दीपक रामाराजू का कहना है कि जीडीपी की वृद्धि हाल ही में वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में 7- तिमाही के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई है। उम्मीद है कि इसके लिए सरकार विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों को प्राथमिकता इस बजट में देगी। विशेषकर कम आय वाले लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकती है। वहीं बजट में फोकस के प्रमुख क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश, टिकाऊ ऊर्जा की पहल, विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा और रक्षा तथा रेलवे पर निरंतर खर्च शामिल होने की संभावना है। यह सभी क्षेत्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और एसएमई की मांग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार इस बजट में स्वास्थ्य सेवा और आवास जैसे सामाजिक क्षेत्रों पर भी व्यय में वृद्धि, प्रत्यक्ष कर स्लैब और सरलीकृत कर सरंचना पर ध्यान के साथ डिस्पोजेबल आय में बढ़ोतरी कर सकती है।
बाजार के नजरिए से देखे तो बजट में विकास केंद्रित खर्च और राजकोषिय के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। विकासोन्मुखी बजट जरूरी है, लेकिन सरकार को लोकलुभावन उपायों के मामले में सावधानी बरत सकती है, क्योंकि ऐसे फैसले राजकोषीय घाटे को बढ़ा सकते हैं और रुपये को और कमजोर कर सकते है, इससे दरों में कटौती को सीमित करके आर्थिक सुधार में देरी हो सकती है। राजकोष पर दबाव से विकास की गति कम होने के संकेत मिलते है जो बाजार में बिकवाली का कारण बन सकता है।
विकसित अर्थव्यवस्थाओं की विशेषताओं को अपनाने की जरुरत
सैमको सिक्योरिटीज के संस्थापक जिमीत मोदी कहते हैं, अगर भारत को 2047 तक सही मायने में “विकसित भारत ” बनने और बेहतरीन रक्षा क्षमताओं के अलावा विकसित अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं, तो देश को विकसित अर्थव्यवस्थाओं की विशेषताओं अपनाने की जरूरत है जैसे कुशल सार्वजनिक बाजारों के साथ साथ मुक्त मुद्रा का भी विकास किया जाना चाहिए। जहां तक सार्वजनिक बाजारों का सवाल है तो कुछ साल पहले भारत सभी मोर्चों पर बेहतरीन बाजार रहा। बाजार में अधिक लिक्विडिटी रही और उस आधार पर हमारे बाजार अन्य उभरते बाजारों की तुलना में अधिक प्रीमियम का लाभ उठा रहे थे। लेकिन पिछले दो सालें में बजट और उसके बाहर के कराधान के मोर्चे पर और विनियामक मोर्चे पर उठाए गए कदमों की वजहों से भारत के प्रीमियम को अन्य उभरते बाजारों की तुलना में झटका लगा है। इसने बाजार की लिक्विडिटी को प्रभावित किया है।
भारतीय पूंजी बाजार के इक्विटी डेरिवेटिव्स खंड पर विनियामक कार्रवाई की शृंखला और सभी क्षेत्रों में प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) में बढ़ोतरी ने बाजार में तरलता को पहले की अवधि की तुलना में 30-40 प्रतिशत तक कम कर दिया है। इसलिए मुद्रा व डेरिवेटिव बाजारों को खोला जाना चाहिए क्योंकि यह भारतीय अर्थव्यवस्था को विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लिए महत्वपूर्ण है। पूंजी बाजार में तरलता बनाए रखने के लिए, सरकार को वायदा, विकल्प और अन्य उपकरणों पर एसटीटी दरों को तर्कसंगत बनाना चाहिए। इससे सरकार को कुछ हद तक राजस्व का नुकसान हो सकता है, लेकिन बढ़ी हुई तरलता और बढ़ी हुई भागीदारी के माध्यम से आने वाले नए प्रवाह से इसकी भरपाई हो जाएगी।
पूंजी व्यय और खपत को बढ़ावा देने में संतुलन बनाने की बड़ी चुनौती
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के एमडी और सीईओ धीरज रेली ने कहा शहरी मांग और निवेश गतिविधियों में नरमी की बीच भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 23-24 में 8.2 प्रतिशत से वित्त वर्ष 24-25 में 6.4 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान है। केंद्र सरकार इस वित्त वर्ष में अपने पूंजीगत व्यय लक्ष्य से लगभग 1.4 ट्रिलियन रुपये कम रहने की संभावना जताई है, जिससे वित वर्ष 2025 में 4.8 प्रतिशत अपेक्षित राजकोषीय घाटा होने की संभावना है, जो बजट में निर्धारित 4.9 प्रतिशत से काफी कम है। इसलिए आगामी बजट में देश की विकास की गति को बनाए रखने के लिए लगातार पूंजी व्यय और खपत को प्रोत्साहित करने में संतुलन बनाने की बड़ी चुनौती वित्त मंत्री के सामने है। समावेशी विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को देखते हुए, बजट में कृषि, एमएसएमई, घरेलू खपत और रोजगार सृजन को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है। घरेलू खर्च को बढ़ावा देने वाले उपायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आधा से अधिक हिस्सा है। हम उम्मीद करते हैं कि बजट में विकास उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपभोग प्रोत्साहन और लक्षित बुनियादी ढांचे के खर्च के बीच एक सावधानीपूर्वक संतुलन बनाया जाएगा।
बाजार को उम्मीद है कि इस साल बजट में सरकार समावेशी विकास एजेंडे में कृषि, एमएसएमई, घरेलू उपभोग और रोजगार सृजन को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है। देश के सकल घरेलू उत्पादन यानी जीडीपी में घरेलू व्यय का हिस्सा आधे से अधिक है, इसलिए उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रस्तावित उपायों पर नजर रखी जाएगी। यदि बजट में निजी उपभोग के व्यय को बढ़ावा देने की पहल की जाती है, जो कि करोना महामारी से पहले के स्तर से नीचे बनी हुई है, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में उपभोक्ता खर्च को प्रभावित कर सकती है।

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