नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश में रिसर्च और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के विशेष फंड की शुरुआत की। इस आर्थिक सहायता से उच्च स्तर की तकनीकी और जोखिम वाले क्षेत्रों में रिसर्च को बढ़ावा दिया जाएगा। इस फंड को जारी करने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि रजिस्टर्ड पेटेंट के मामले में भारत में 17 गुना वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि स्टार्ट अप्स के काम करने के लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध कराने के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है। यह बताता है कि भारत अपने यहां नवाचार करने वालों और नए उद्यमियों के लिए बेहतर वातारण उपलब्ध करा रहा है। उन्होंने इमर्जिंग साइंस, टेक्नॉलोजी एंड इन्नोवेशन कांक्लेव (ESTIC) में यह बातें कही।
केंद्र सरकार की इस नई पहल से देश में रिसर्च के क्षेत्र में युवाओं को करियर बनाने में मदद मिलेगी। अमेरिका-चीन के साथ-साथ यूरोपीय देशों में युवाओं के लिए रिसर्च एक बड़ा करियर विकल्प होता है। रिसर्च करने के लिए उन्हें भारी धनराशि और एक सुरक्षित करियर उपलब्ध कराया जाता है। इसका परिणाम होता है कि ये देश वैज्ञानिक नवाचारों और नई तकनीक के विकास के मामले में दुनिया में शीर्ष पर हैं।
निजी कंपनियां रिसर्च में करती हैं भारी निवेश
विदेशों में कंपनियां अपनी कुल कमाई का एक हिस्सा केवल रिसर्च के लिए सुरक्षित रखती हैं। इसके लिए विशेष तकनीकी ज्ञान दक्ष युवाओं की भर्ती की जाती है और उनसे कंपनी के काम करने वाले क्षेत्र में नई तकनीक खोजने की अपेक्षा की जाती है। गूगल, फेसबुक, अमेजन से लेकर वाहन, ऊर्जा, मोबाइल तकनीकी, सौर उपकरणों के रिसर्च में जुटी कंपनियां अपने रिसर्च में भारी खर्च करती हैं। दवा निर्माता कंपनियां इस मामले में सबसे ऊपर हैं और वे नई बीमारियों के उपचार, दवाएं, टीके और पुरानी तकनीक को सुधार कर सस्ती दवा उत्पादन के लिए भारी रिसर्च करती हैं। इसका उन्हें लाभ होता है और नई तकनीक आने से कंपनियों की लागत घटती है, लाभ बढ़ता है और कंपनी को नए-नए उत्पाद पेश करने में मदद मिलती है। इससे कंपनी के संपूर्ण विकास में सहायता मिलती है।
कौन फाइल कर रहा रिसर्च पेपर
रिसर्च का किसी देश की अर्थव्यवस्था से सीधा संबंध देखा गया है। वर्ष 2020 के एक आंकड़े के अनुसार, चीन ने सबसे ज्यादा रिसर्च पेपर दाखिल किए। अमेरिका इस सूची में दूसरे नंबर पर है। इंग्लैंड के बाद भारत इस सूची में चौथे स्थान पर रहा। रिसर्च फाइल करने के मामले में आर्थिक तौर पर संपन्न देश सबसे आगे थे। जबकि आर्थिक तौर पर कमजोर देश रिसर्च पेपर फाइल करने और पेटेंट हासिल करने के मामले में सबसे पीछे थे। 90 प्रतिशत से अधिक रिसर्च पेपर उच्च और मध्यम आय वाले देशों ने फाइल किए।
भारत में क्या है परेशानी
भारत में युवाओं के लिए रिसर्च एक सुरक्षित करियर विकल्प नहीं है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में रिसर्च में करियर लंबा और बेहतर आय वाला नहीं होता। ऐसे वातावरण में जो रिसर्च होता है, वह भी कट-पेस्ट ज्यादा होता है, मौलिक रिसर्च के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर काफी पिछड़ा हुआ है। हमारे देश में नई कंपनियां भी नए रिसर्च को लेकर बहुत अधिक उत्सुक नहीं रहतीं। वे इसे पैसे की बर्बादी समझती हैं। इसका परिणाम होता है कि भारतीय कंपनियां निवेश में पैसा खर्च नहीं करतीं।
इससे भारत रिसर्च और नवाचार में पिछड़ जाता है। प्रधानमंत्री ने आज जिस एक लाख करोड़ रुपये का विशेष फंड जारी किया है, इसका उद्देश्य भारत में रिसर्च और नवाचार को बढ़ाना है। इसके माध्यम से भारत रिसर्च के क्षेत्र में बेहतर प्रगति करने के द्वार खोल रहा है। इसका उद्देश्य निजी कंपनियों को भी रिसर्च और नवाचार के लिए प्रेरित करना है।
चीन-अमेरिका आगे
रिसर्च के मामले में चीन इस समय सबसे तेजी से प्रगति कर रहा है। वार्षिक पेटेंट फाइल करने के मामले में भी वह बहुत आगे है। चीन ने अमेरिका की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने का मंत्र उसकी तकनीकी में होने की बात समझी है। अब वह अपने रिसर्च में बढ़ावा देकर अमेरिका का स्थान हासिल करना चाहता है। खुद अमेरिका रिसर्च के मामले में अभी भी बहुत आगे है, लेकिन वह भी चीन की तुलना में कमजोर स्थिति में है।
भारत चीन-अमेरिका से काफी पीछे है, लेकिन यहां भी रिसर्च में सुधार दिख रहा है। यदि केंद्र सरकार बेहतर वातावरण उपलब्ध कराती है तो आने वाले समय में इसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकता है। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को कंपनियों को अपनी कुल आय का एक हिस्सा रिसर्च में खर्च करना अनिवार्य करना चाहिए। इससे देश में रिसर्च और तकनीक नवाचार को बढ़ाने में सहायता मिलेगी।

