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29 Apr 2025, Tue

भारत का गरीबी पर कड़ा प्रहार, गरीबों की संख्या घटकर 2.3प्रतिशत पर पहुंची, 17.1 करोड़ लोग बाहर आए

नई दिल्ली, एजेंसी। गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर भारत ने ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अत्यंत गरीबी की दर 2011-12 में 16त्न थी, जो अब घटकर मात्र 2.3त्न रह गई है। इस दौरान 17.1 करोड़ लोग अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं। विश्व बैंक ने 2.15 डॉलर प्रतिदिन क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर अत्यंत गरीबी का आकलन किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक दशक में भारत ने गरीबी घटाने में उल्लेखनीय प्रगति की है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण भारत में अत्यंत गरीबी 18.4त्न से गिरकर 2.8त्न रह गई है, जबकि शहरी भारत में यह 10.7त्न से घटकर 1.1त्न पर आ गई है। इससे ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच गरीबी का अंतर भी 7.7त्न से घटकर सिर्फ 1.7त्न रह गया है, जो कि वार्षिक आधार पर 16त्न की गिरावट दर्शाता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के 3.65 डॉलर प्रतिदिन के गरीबी मापदंड पर भारत ने और भी शानदार प्रदर्शन किया है। इस आधार पर गरीबी दर 61.8त्न से घटकर 28.1त्न हो गई है, जिससे 37.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के 3.65 डॉलर प्रतिदिन के गरीबी मापदंड पर भारत ने और भी शानदार प्रदर्शन किया है। इस आधार पर गरीबी दर 61.8त्न से घटकर 28.1त्न हो गई है, जिससे 37.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में एलएमआईसी गरीबी 69त्न से गिरकर 32.5त्न और शहरी क्षेत्रों में 43.5त्न से घटकर 17.2त्न रह गई है। ग्रामीण-शहरी अंतर भी 25त्न से घटकर 15त्न पर आ गया है। विश्व बैंक के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के अनुसार, भारत में गैर-मौद्रिक गरीबी 2005-06 में 53.8त्न थी, जो 2019-21 में 16.4त्न और 2022-23 में घटकर 15.5त्न रह गई है। पूर्व योजना आयोग सचिव एनसी सक्सेना ने कहा कि उपभोग आंकड़ों की तुलना अब कठिन हो गई है, क्योंकि गणना पद्धति में बदलाव हुआ है। उन्होंने स्वतंत्र स्रोतों जैसे जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। विश्व बैंक ने माना कि 2022-23 के पारिवारिक उपभोग सर्वेक्षण में प्रश्नावली निर्माण, सर्वेक्षण कार्यान्वयन और नमूनाकरण में सुधार हुए हैं, जिससे गुणवत्ता बढ़ी है, लेकिन समय के साथ तुलनात्मकता में चुनौतियां भी बनी हुई हैं।

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