नई दिल्ली, एजेंसी। भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। हम आपको बता दें कि श्रीहरिकोटा से उड़े इसरो के सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान एलवीएम3 एम6 ने अमेरिका के संचार उपग्रह ब्लूबर्ड ब्लॉक 2 को पृथ्वी की निम्न कक्षा में सटीकता के साथ स्थापित कर दिया है। यह केवल एक सफल प्रक्षेपण नहीं था बल्कि भारत की तकनीकी क्षमता, रणनीतिक आत्मविश्वास और वैश्विक विश्वसनीयता का प्रदर्शन भी था।
हम आपको बता दें कि 43.5 मीटर ऊंचे और दो एस200 ठोस बूस्टरों से लैस इस भारी रॉकेट ने लगभग 15 से 16 मिनट की उड़ान के बाद 6100 किलोग्राम वजनी उपग्रह को करीब 520 किलोमीटर ऊंची कक्षा में स्थापित किया। यह एलवीएम3 के इतिहास का अब तक का सबसे भारी पेलोड है जिसे भारतीय धरती से अंतरिक्ष में पहुंचाया गया। इस मिशन के साथ एलवीएम3 ने अपनी छठी परिचालन उड़ान और तीसरी समर्पित वाणिज्यिक उड़ान पूरी की। यह प्रक्षेपण इसरो की वाणिज्यिक इकाई न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड और अमेरिका स्थित एएसटी स्पेसमोबाइल के बीच हुए समझौते के तहत किया गया। ब्लूबर्ड ब्लॉक 2 सीधे मोबाइल से जुड़ने वाली अगली पीढ़ी की उपग्रह संचार प्रणाली का हिस्सा है, जो बिना किसी विशेष उपकरण के 4जी और 5जी सेवाएं देने के लिए तैयार की गई है। इसका विशाल फेज्ड एरे एंटेना इसे निम्न कक्षा में तैनात सबसे बड़े वाणिज्यिक संचार उपग्रहों में शामिल करता है। इस मिशन की सफलता पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बताया कि नियोजित कक्षा के मुकाबले वास्तविक कक्षा में केवल मामूली अंतर रहा, जो प्रक्षेपण की उच्च सटीकता को दर्शाता है।
अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट भारत की धरती से लॉन्च
उन्होंने बताया कि इस मिशन में सैटेलाइट को बेहद सटीकता के साथ तय कक्षा में पहुंचाया गया। लक्ष्य 520 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा था, जबकि सैटेलाइट को 518.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया, जो अब तक भारतीय लॉन्चरों की सबसे बेहतरीन सटीकता मानी जा रही है। इस मिशन की एक और बड़ी उपलब्धि यह रही कि यह भारत की धरती से लॉन्च किया गया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट था। करीब 5,908 किलोग्राम वजनी इस सैटेलाइट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचाकर इसरो ने एक नया कीर्तिमान रचा। यह लॉन्चिंग आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह 8:55 बजे हुई। यह मिशन न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड और अमेरिका की AST स्पेसमोबाइल के बीच हुए कॉमर्शियल समझौते का हिस्सा है। नारायणन ने बताया कि एलवीएम3 रॉकेट ने इस मिशन में 100 प्रतिशत विश्वसनीयता का प्रदर्शन किया। साथ ही पहली बार एस200 सॉलिड मोटर कंट्रोल सिस्टम में एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया। पहले जहां इलेक्ट्रो-हाइड्रो एक्ट्यूएटर का उपयोग होता था, वहीं अब स्वदेशी रूप से विकसित शक्तिशाली इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्ट्यूएटर लगाया गया है, जिससे रॉकेट की पेलोड क्षमता लगभग 150 किलोग्राम तक बढ़ गई है।
इसरो प्रमुख ने इसे भारत के भारी प्रक्षेपण कार्यक्रम के लिए मील का पत्थर बताया। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस उपलब्धि पर वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बधाई देते हुए कहा कि यह मिशन न केवल गगनयान जैसे भविष्य के मानव अंतरिक्ष अभियानों की नींव मजबूत करता है बल्कि वैश्विक वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाजार में भारत की भूमिका को भी और धार देता है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भारी पेलोड उठाने की यह क्षमता आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का ठोस प्रमाण है। देखा जाये तो एलवीएम3 एम6 की यह उड़ान रणनीतिक स्तर पर एक सधी हुई चुनौती है।
आज के दौर में अंतरिक्ष केवल विज्ञान का क्षेत्र नहीं रहा, यह शक्ति संतुलन का नया मोर्चा बन चुका है। जिसने अंतरिक्ष पर पकड़ बनाई, उसने संचार, निगरानी, युद्ध और अर्थव्यवस्था सभी पर बढ़त बना ली। ऐसे में भारत का भारी उपग्रहों को भरोसेमंद ढंग से कक्षा में पहुंचाना सीधा संदेश है कि देश अब केवल उभरती शक्ति नहीं, बल्कि निर्णायक खिलाड़ी है। हम आपको बता दें कि ब्लूबर्ड ब्लॉक 2 जैसे उपग्रह सीधे मोबाइल से जुड़ने वाली वैश्विक संचार संरचना का हिस्सा हैं। इसका अर्थ है कि भविष्य में युद्ध, आपदा प्रबंधन और खुफिया गतिविधियों में संचार पर निर्भरता और भी बढ़ेगी। भारत द्वारा ऐसे उपग्रहों का प्रक्षेपण करना यह दिखाता है कि वह इस नई संचार व्यवस्था के केंद्र में अपनी जगह पक्की कर रहा है। यह केवल अमेरिका के साथ व्यावसायिक सहयोग नहीं, बल्कि रणनीतिक भरोसे की मुहर भी है। साथ ही एलवीएम3 की क्षमता भारत को उन गिने चुने देशों की कतार में खडा करती है जो भारी पेलोड को निम्न कक्षा में सटीकता से भेज सकते हैं। इसका सीधा असर यह है कि भारत अब विदेशी उपग्रह प्रक्षेपण के लिए एक सस्ता विकल्प ही नहीं, बल्कि भरोसेमंद और समयबद्ध भागीदार बन रहा है।
वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में यह बढ़त चीन और यूरोप जैसे प्रतिस्पर्धियों के लिए साफ चेतावनी है। सामरिक दृष्टि से देखें तो भारी प्रक्षेपण क्षमता का मतलब है भविष्य में भारत अपने सैन्य संचार, निगरानी और नेविगेशन उपग्रहों को भी अधिक सुरक्षित और तेजी से तैनात कर सकेगा। यह क्षमता संकट के समय आत्मनिर्भर प्रतिक्रिया की गारंटी देती है। गगनयान जैसे मानव मिशनों की तैयारी भी इसी कड़ी का हिस्सा है, जहां तकनीक, आत्मविश्वास और रणनीति एक साथ आगे बढ़ते हैं। कुल मिलाकर एलवीएम3 एम6 की सफलता यह साबित करती है कि भारत अब अंतरिक्ष में केवल झंडा गाड़ने नहीं, बल्कि नियम तय करने की तैयारी में है। यह मिशन दुनिया को साफ संदेश देता है कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम अब ठोस और आक्रामक क्षमता के युग में प्रवेश कर चुका है।

