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16 Jul 2025, Wed

पत्नी की बातचीत को रिकॉर्ड करना प्राइवेसी का है उल्लंघन? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस निर्णय को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था कि पत्नी की टेलीफोन पर की गई बातचीत को उसकी सहमति या जानकारी के बिना रिकॉर्ड करना उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा, और इस तरह की रिकॉर्डिंग को पारिवारिक अदालत में साक्ष्य के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती. न्यायमूर्ति बी।वी। नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई टेलीफोन पर हुई बातचीत को वैवाहिक विवादों में सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले में निजता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 इस प्रकार के किसी निजता अधिकार को मान्यता नहीं देती; बल्कि, यह प्रावधान पति-पत्नी के बीच गोपनीयता के अधिकार को अपवाद के रूप में देखता है। और इसलिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। पीठ ने यह भी बताया कि यह अनुच्छेद 21 के अंदर निजता के अधिकार को नहीं छूती है। ऐसे किसी अधिकार का कोई हनन नही हुआ। यह व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई, प्रासंगिक सबूत सामने लाने, पति या पत्नी के विरुद्ध अपना पक्ष प्रभावी रूप से रखने और आवश्यक राहत प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है
कोर्ट ने तर्क दिया कि ऐसे सबूतों को अगर अनुमति दे दी तो घरेलू सौहार्द पर संकट खड़ा हो जाएगा। इससे पति और पत्नी के बीच जासूसी को भी बढ़ावा मिल सकता है। जिसकी वजह से साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 का उद्देश्य फेल हो जाएगा, और अगर पति-पत्नी का रिश्ता इस कगार पर पहुंच गया है जहां वो एक दूसरे की जासूसी कर रहें हैं, तो यह अपने आप में ही एक टूटे हुए रिश्ते का संकेत है। यह एक दूसरे के प्रति कमजोर पड़ते विश्वास को दिखाता है। यह मामला एक विशेष अनुमति याचिका जो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती देती है, जिसमें यह माना गया कि पत्नी की बिना जानकारी के उसकी टेलीफोन पर हुई बातचीत को रिकॉर्ड करना उसके मौलिक अधिकार विशेष रूप से उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि, इस प्रकार जुटाई गई बातचीत को पारिवारिक न्यायालय में साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक से संबंधित एक मामले में, न्यायमूर्ति लिसा गिल ने उच्च न्यायालय की ओर से यह निर्णय सुनाया।

By Aryavartkranti Bureau

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