नई दिल्ली, एजेंसी। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने गुरुवार को साफ किया कि जीएसटी दरों में संशोधन के बाद निर्माताओं, पैकर्स और आयातकों को 22 सितंबर से पहले बने बिना बिके सामानों पर संशोधित मूल्य का स्टिकर लगाने की जरूरत नहीं होगी। सरकार ने यह बात उद्योग निकायों और व्यापार संघों से मिले ज्ञापनों के बाद कही है। उद्योग निकायों ने विभाग के दिशानिर्देशों के कारण अनुपालन में आने वाली चुनौतियों पर चिंता जाहिर की थी। विभाग ने 9 सितम्बर को जारी अपने सुझाव में बदलाव करते हुए कहा है कि कंपनियां यदि चाहें तो 22 सितम्बर से पहले बने बिना पैकेट्स पर संशोधित मूल्य का स्टीकर लगा सकती है।
मंत्रालय ने कहा, ‘मौजूदा नियमों के अनुसार, निर्माता/पैकर/आयातकर्ता/उनके प्रतिनिधियों द्वारा 22 सितंबर, 2025 से पहले निर्मित और उनके पास पड़े बिना बिके पैकेजों पर संशोधित मूल्य का स्टिकर लगाना अनिवार्य नहीं है।’ सरकार ने विधिक माप विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियम, 2011 के नियम 18(3) में भी ढील दी है, जिसके तहत पहले कंपनियों को संशोधित कीमतों की घोषणा करते हुए दो अखबारों में विज्ञापन देना होता था।
निर्माताओं और आयातकों को अब केवल थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को मूल्य परिवर्तन की सूचना देनी होगी। इसकी प्रतियां केंद्र में विधिक माप विज्ञान निदेशक और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में विधिक माप विज्ञान नियंत्रकों को भेजी जाएंगी।
विभाग ने कंपनियों को यह भी कहा है कि वे इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया सहित सभी उपलब्ध संचार माध्यमों से डीलरों, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को संशोधित जीएसटी के बाद कीमतों के बारे में सूचित करने के लिए तत्काल कदम उठाएं। सरकार ने आगे स्पष्ट किया कि पुराने एमआरपी वाले किसी भी अप्रयुक्त पैकेजिंग सामग्री या रैपर का उपयोग 31 मार्च, 2026 तक या स्टॉक समाप्त होने तक, जो भी पहले हो, किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए शर्त है कि खुदरा बिक्री मूल्य में स्टैम्पिंग, स्टिकर या ऑनलाइन प्रिंटिंग का उपयोग करके सुधार किया जाए। इसके अलावे विभाग ने साफ किया कि पहले पैक हुई बिना बिकी वस्तुओं और अप्रयुक्त पैकेजिंग सामग्री पर संशोधित यूनिट प्राइस घोषित करना अनिवार्य नहीं है। कंपनियां चाहें तो स्वेच्छा से ऐसा कर सकती हैं।
22 सितंबर से पहले बने सामानों पर कीमतों में बदलाव का स्टिकर लगाना जरूरी नहीं, सरकार ने किया साफ
