जापान, एजेंसी। एशियाप्रशांत क्षेत्र में तनाव एक बार फिर बढ़ गया है। वजह है जापान की नई प्रधानमंत्री साने ताकाइची का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि अगर ताइवान पर हमला होता है, तो जापान सैन्य हस्तक्षेप पर विचार कर सकता है। यह बयान बीजिंग को नागवार गुजरा और चीन ने इसे उकसाने वाली टिप्पणी बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी।
लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने दोनों देशों के बीच तनाव को और हवा दे दी। जापान ने अपने सबसे पश्चिमी द्वीप योनागुनी में नई मिसाइलें तैनात करने की योजना को तेजी से आगे बढ़ा दिया। यह कदम चीन के गुस्से को और बढ़ाने वाला साबित हुआ, क्योंकि योनागुनी की लोकेशन खुद जियोपॉलिटिकल रूप से बेहद संवेदनशील है।
चीन की आलोचना का जवाब देते हुए जापान के रक्षा मंत्री शिंजिरो कोइज़ुमी ने कहा कि योनागुनी में तैनात की जा रही मिसाइलें पूरी तरह रक्षात्मक हैं। उनका दावा है कि यह कदम किसी भी देश पर हमला करने के लिए नहीं, बल्कि जापान की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया गया है। उन्होंने साफ कहा कि यह कदम क्षेत्रीय तनाव नहीं बढ़ाता, यह सिर्फ जापान की रक्षा क्षमता बढ़ाता है। दिलचस्प बात यह है कि ताइवान ने जापान की इस मिसाइल तैनाती योजना का स्वागत किया। ताइवान सरकार का कहना है कि योनागुनी की सुरक्षा बढ़ने से ताइवान स्ट्रेट में स्थिरता आएगी, जो पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए जरूरी है। योनागुनी एक छोटा सा द्वीप है, लेकिन इसकी जियोपॉलिटिकल अहमियत बेहद बड़ी है। यह जापान का सबसे पश्चिमी द्वीप है। ताइवान से मात्र 110 किलोमीटर दूर। 2016 से यहाँ जापानी सेना का बेस मौजूद है। जापान अब यहाँ Type-03 मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें तैनात करने की तैयारी में है। इन मिसाइलों का मकसद किसी भी दुश्मन विमान या मिसाइल को इलाके में प्रवेश करने से पहले ही रोक लेना है। यानी, जापान इस जगह को चीनताइवान संघर्ष की स्थिति में अपनी पहली रक्षा लाइन बनाना चाहता है।
चीन ताइवान को शुरू से ही अपना हिस्सा मानता आया है और वह ज़रूरत पड़ने पर बल प्रयोग की धमकी भी दे चुका है। ऐसे में ताइवान के समर्थन में जापान की कोई भी सैन्य गतिविधि उसे सीधी चुनौती लगती है। चीन का कहना है कि जापान की मिसाइल तैनाती तनाव बढ़ाने की कोशिश है, जबकि बीजिंग बार-बार जापान को सैन्यिकरण कम करने की नसीहत देता रहा है। जापान के बयान, चीन की प्रतिक्रिया, ताइवान का समर्थन, ये सारे कदम एक बड़ा संकेत दे रहे हैं। एशियाप्रशांत क्षेत्र धीरे-धीरे नए भू-राजनीतिक टकराव की तरफ बढ़ रहा है।

