नई दिल्ली। कुछ हाईकोर्ट के जज अपना काम ठीक तरीके से नहीं कर पा रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि जजों के लिए भी परफार्मेंश इवैल्यवैल्यूएशन सिस्टम बनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत की तरफ से ये टिप्पणी की गई। जस्टिस सूर्यकांत ने ये बात 22 सितंबर 2025 को कोर्टरूम में कही। जस्टिस का मानना है कि ऐसे पैरामीटर और गाइडलाइन तय होनी चाहिए जिससे जजों के काम-काज को परखा जा सके। अब हाई कोर्ट के जजों को ऐसे में आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हाईकोर्ट को फटकार क्यों लगी है?
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ झारखंड हाई कोर्ट की उस देरी पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें लगभग तीन साल तक क्रिमिनल अपील का फैसला सुरक्षित रखा गया और उसके बाद इसे सुनाया गया। इस केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि हम हाई कोर्ट के जजों के लिए स्कूल प्रिंसिपल की तरह काम नहीं करना चाहती, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए एक स्व-प्रबंधन प्रणाली होनी चाहिए कि उनकी मेज पर फाइल की ढेर न लगे। उन्होंने कहा कि ऐसे भी न्यायाधीश हैं जो दिन-रात काम करते हैं और मामलों का शानदार निस्तारण कर रहे हैं, लेकिन साथ ही कुछ न्यायाधीश ऐसे भी हैं जो दुर्भाग्यवश काम पूरे कर पाने में असमर्थ हैं – कारण चाहे जो भी होष जस्टिस सूर्यकांत ने साफ किया कि हर केस को एक ही तराजू में नहीं तोला जा सकता। कारण चाहे अच्छे या बुरे, हम नहीं जानते और कुछ परिस्थितियां भी हो सकती हैं। मान लीजिए कि एक न्यायाधीश किसी आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रहा है, तो हम उससे एक दिन में 50 मामलों पर फैसला करने की उम्मीद नहीं करते हैं और एक दिन में एक आपराधिक अपील पर फैसला करना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। लेकिन जमानत के मामले में अगर कोई न्यायाधीश कहता है कि मैं एक दिन में केवल एक जमानत याचिका पर फैसला करूंगा, तो यह ऐसी बात है जिसके लिए आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है। आम जनता को न्यायपालिका से काफी उम्मीदें हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी याद दिलाया कि रति लाल जावेड़ भाई परमान वर्सेज स्टेट ऑफ गुजरात केस में साफ कहा गया कि अगर कोर्ट सिर्फ ऑपरेटिव पार्ट सुनाता है, तो 5 दिन के भीतर पूरा जजमेंट अपलोड होना चाहिए। हां, अगर प्रैक्टिकल दिक्कत है तो सुप्रीम कोर्ट इस टाइमलाइन को 10-15 दिन तक बढ़ा सकता है, लेकिन उससे ज़्यादा नहीं। उन्होंने ये भी चेताया की बार-बार के स्थगन के जरिए सुनवाई को टालना न तो समाधान है और न ही सेहतमंद तरीका है। इससे पेंडेंसी बढ़ती है। केस के पक्षकार हतोत्साहित होते हैं और कभी कभी हालात खतरनाक भी हो जाते हैं। यहां तक की उन्होंने ये भी तंज कसा की कुछ जजों के नाम तो स्थगन से ही पहचाने जाने लगे हैं।
विभिन्न हाई कोर्टों के फैसलों की स्टेटस रिपोर्ट पेश
पीठ ने यह टिप्पणी कुछ आपराधिक अपीलों पर की। आजीवन कारावास और मृत्युदंड की सजा सुनाये गए कुछ दोषियों ने यह आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि झारखंड हाई कोर्ट ने वर्षों तक फैसला सुरक्षित रखने के बावजूद, उनकी आपराधिक अपीलों पर फैसला नहीं सुनाया। हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने उनके मामले में फैसला सुनाया और कई दोषियों को बरी कर दिया। मामले में पेश हुईं वकील फौजिया शकील ने विभिन्न हाई कोर्टों द्वारा दिए गए फैसलों की स्थिति पर एक चार्ट पेश किया और इस बात पर जोर दिया कि कुछ उच्च न्यायालयों ने निर्धारित प्रारूप में आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं।