लेटेस्ट न्यूज़
2 Aug 2025, Sat

होली खेलें सुरक्षा के साथ

होली रंगों का त्यौहार है। मेल-जोल, खाना-पीना और मस्ती हुड़दंग पूरे माहौल को जीवंत बना देते हैं। खुशगवार मौसम में एक दूसरे को रंगों में सराबोर करते लोग, गुझिया की मिठास से आपसी संबंधों में एक नई निकटता और गर्मजोशी भर लेते हैं। कई बार रंगों के खेल-खिलवाड़ और खान-पान के दौरान सेहत को नुकसान पहुंचा जाते हैं।

कुछ दशकों पहले तक होली के रंग पूरी तरह से प्राकृतिक होते थे। फूलों के रंगों से खेली जाने वाली होली त्वचा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होती थी। रासायनिक रंगों ने होली को एक खतरनाक त्यौहारों में तब्दील कर दिया है। अमूमन हर रासायनिक रंग में कोई न कोई घातक रसायन मिश्रित होता है जो आंखों, त्वचा, नाक और कई बार लिवर और गुर्दे तक को नुकसान पहुंचा सकता है। कुछ एक रंग कैंसर कारक भी होते हैं। रासायनिक रंगों के कारण त्वचा पर जलन को समस्या पैदा हो सकती है और इस पर निशान पड़ सकते हैं। गुलाल और अबीर में मिला हुआ सीसा त्वचा में द्दोरे, लाली और गंभीर खुजली पैदा कर सकता है। इसके अलावा त्वचा से या नाक या मुंह की म्यूकोजल सतह से शरीर के भीतर जाकर यह जहरीले तत्व शरीर को दूरगामी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसी तरह यदि रंगों को देर तक साफ न किया जाए तो बाल बेहद सूखे हो जाते हैं और टूटने लगते हैं। ऐसा रंगों में मौजूद रसायनों और बाहर मौजूद धूल के कारण होता है। गीले रासायनिक रंगों में भी ग्रीन कॉपर सल्फेट, मरकरी सल्फेट, क्रोमियम जैसे अकार्बनिक और बेंजीन जैसे घातक एरोमैटिक कंपाउंड होते हैं, जो त्वचा पर एलर्जी, डर्मेटाइटिस और खारिश पैदा कर सकते हैं।

सिंथेटिक रंगों से त्वचा का बदरंग होना, त्वचा की एलर्जी, त्वचा का छिल जाना, त्वचा में या आंखों में जलन या असहज महसूस करना, खुजली होना, त्वचा या नेत्रों में सूखापन महसूस होना और फटी हुई त्वचा सरीखी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। जब आप रंग उतारने के लिए त्वचा को मलते हैं तो बेंजीन नामक रसायन त्वचा के ऊपरी भाग को नुकसान पहुंचाता है। ग्रीन रंग में कॉपर सल्फेट शामिल हो सकता है, जिससे आंखों में एलर्जी की समस्या पैदा हो सकती है। पर्पल रंग में क्रोमियम आयोडाइड हो सकता है, जिससे ब्रोन्कियल अस्थमा और एलर्जी की समस्या पैदा हो सकती है। अतः एलर्जी और सांस के रोगियों को होली से दूर रहना चाहिए, केवल प्राकृतिक गुलाल का ही प्रयोग करना चाहिए। होली के दौरान उड़ता हुआ अबीर गुलाल और रंग वतावरण में कैमिकल्स युक्त छोटे-छोटे न दिखने वाले कण पैदा करता है, जो सांस के रोगियों की सांस नली में चले जाते है और फिर सांस की नली में सूजन व सिकुड़न पैदा करते हैं जिससे रोगी को खांसी आने लगती है व सांस फूल जाती हैं। यही प्रतिक्रिया नाक में भी होती है और नाक से छींके आना, पानी आना, नाक बंद हो जाना और गले में खराश हो जाना आदि परेशानियां हो जाती है। सिल्वर रंग में एलुमिनियम ब्रोमाइड शामिल हो सकता है जो त्वचा संबंधी रोग पैदा कर सकता है।

होली के मिलने-मिलाने के दौर में खान-पान की अति हो जाती है जिससे एसिडिटी, अपच, गैस्ट्राइटिस और उल्टी-दस्त जैसी दिक्कतें हो सकती है। ऐसे में खाते समय सेहत का ध्यान रखें। कोशिश करें कि हल्के और सुपाच्य खाने का सेवन करें। तैलीय, तीखी, गरिष्ठ और मसालेदार चीजों के सेवन से बचें। इस समय बाजार में मिलने वाली अधिकांश खाने-पीने की चीजों में मिलावट की आशंका रहती है, इसीलिए अच्छा हो कि खाने में घर में बनी चीजों को हो प्राथमिकता दें।

रंगों से सुरक्षा के ये तरीके अपनाइए- प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करें। होली खेलने से पहले अपने बालों में अच्छी तरह से तेल लगाएं। शरीर को ठीक से ढंककर ही होली खेलें। पूरे शरीर की त्वचा पर अच्छी क्वालिटी की क्रीम या तेल लगाएं। त्वचा में कहीं जलन महसूस हो तो रंग को तुरंत धो डालें। यदि त्वचा पर गंभीर लाली या सूजन हो तो धूप में जाने से बचें।

होली खेलने के बाद जल्द से जल्द त्वचा और बालों से सारा रंग धो डालना सबसे जरूरी होता है। त्वचा पर साबुन लगाकर उसे जोर से न मलें नहीं बल्कि प्राकृतिक उबटन और कच्चे दूध की सहायता से रंग को निकालने की कोशिश करें बाद में किसी अच्छे साबुन या शैंपू से त्वचा और बालों को धुल सकते हैं। बच्चें, बुजुर्ग और लम्बी बीमारी वाले रोगी होली के समय पर अपना खास ख्याल रखें।

डा0 सूर्यकान्त
विभागाध्यक्ष,
रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग,
के.जी.एम.यू., लखनऊ

By Aryavartkranti Bureau

आर्यावर्तक्रांति दैनिक हिंदी समाचार निष्पक्ष पत्रकारिता, सामाजिक सेवा, शिक्षा और कल्याण के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाने की प्रेरणा और सकारात्मकता का प्रतीक हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *