आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ बैंक ही नहीं, लोगों के पास भी भरपूर नकदी है। जनता के पास मौजूद 31,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 91,000 करोड़ रुपये की नकदी हो गई है। यह वृद्धि नीतिगत उपायों के प्रभाव के कारण हुई है। केंद्रीय बैंक ने नकदी को आसान बनाने के लिए उपाय किए थे। ग्रामीण गतिविधियों में तेजी मुख्य रूप से नकदी पर आधारित है। साथ ही कर में रियायत भी इस नकदी का एक प्रमुख कारण है।
नकदी की यह बहार ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बढ़ती गतिविधियों से ज्यादा जुड़ी है। यह ग्रामीण खपत में वृद्धि के साथ मेल खाती है। इससे पता चलता है कि गांवों में आर्थिक गतिविधियों में मजबूत सुधार हो रहा है। जमा में बढ़ोतरी आरबीआई की ओर से खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) खरीद के जरिये पर्याप्त तरलता प्रवाह को दर्शाती है। अप्रैल, 2025 के बाद से बैंकिंग प्रणाली की तरलता सकारात्मक हो गई है।
कई कारकों से नकदी में हो रही है वृद्धि
नकदी की इस वृद्धि को कई कारकों से बल मिला है। इनमें बेहतर कृषि उत्पादन, मनरेगा जैसी रोजगार योजनाओं से मिलने वाली उच्च मजदूरी और जन धन खातों में सीधे दी जाने वाली सरकारी सब्सिडी शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, जरूरी वस्तुओं की कीमतों में कमी से ग्रामीण खरीद शक्ति बढ़ी है। इससे नकदी प्रवाह और खपत में वृद्धि हुई है।
ग्रामीण भारत में नकदी का उपयोग अभी भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। हालांकि, यूपीआई जैसे डिजिटल भुगतान भी अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।
गांवो में मांग-खपत बेहतर
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के मुताबिक, उच्च आवृत्ति वाले आंकड़े दर्शाते हैं कि ग्रामीण मांग बेहतर है। शहरी मांग कमजोर है। ग्रामीण खपत, शहरी खपत की तुलना में कुल खपत का एक बड़ा हिस्सा है। पिछले कुछ वर्षों में कोविड के झटके से जरूर प्रभावित रही है लेकिन यह संभावना है कि खपत वृद्धि मजबूत बनी रहेगी।
गांवों की अर्थव्यवस्था अब कृषि से सेवा क्षेत्र की ओर
ग्रामीण भारत एक शांत क्रांति के दौर से गुजर रहा है। कभी कृषि पर अत्यधिक निर्भर रही ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब सेवा क्षेत्र का रूप ले रही है। एचडीएफसी सिक्योरिटीज की रिपोर्ट कहती है कि 29.1 करोड़ लोगों के घर, 112 ग्रामीण जिलों ने 2,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय की सीमा को पार कर लिया है। यह एक ऐसा मील का पत्थर है जो बढ़ती समृद्धि और उपभोक्ता क्षमता का संकेत देता है।
ग्रामीण क्षेत्र न केवल गति पकड़ रहे हैं, बल्कि वे भारत के खपत इंजन को भी गति दे रहे हैं। खासकर जब महंगाई के दबाव में शहरी मांग कम बनी हुई है। कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ इलाकों में प्रति व्यक्ति आय 5,000 डॉलर से अधिक हो गई है।
अनुकूल दक्षिण-पश्चिम मानसून, प्रमुख फसलों के लिए उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य और गांवों में विकास कार्यक्रमों पर सरकार के बढ़ते खर्च के कारण ट्रैक्टर की बिक्री चालू वित्त वर्ष में रिकॉर्ड हो सकती है। यह ग्रामीण बाजारों में आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख पैमाना है।
RBI के आंकड़े: बैंक जमा दोगुना बढ़कर हुआ 3.79 लाख करोड़; डिजिटल लेन-देन के बाद भी देश में नकदी की कमी नहीं
