नई दिल्ली, एजेंसी। सरकार ने सोमवार को घोषणा की कि 2025-26 मार्केटिंग वर्ष में शुगर मिलों और डिस्टिलरी को एथेनॉल उत्पादन के लिए किसी भी प्रकार की मात्रात्मक सीमा नहीं होगी। यह मार्केटिंग वर्ष नवंबर से अक्टूबर तक चलेगा। इस फैसले का उद्देश्य देश में एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना और पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम को गति देना है।
फूड मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, शुगर मिलों और डिस्टिलरी को इस दौरान गन्ने के रस, शुगर सिरप, बी-हेवी और सी -हेवी मोलासेस से एथेनॉल बनाने की अनुमति दी गई है। मंत्रालय ने यह भी बताया कि पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ मिलकर शुगर के एथेनॉल उत्पादन में उपयोग को नियमित रूप से समीक्षा की जाएगी, ताकि घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति में कोई बाधा न आए।
सन्दर्भ के तौर पर, चालू ईएसवाई 2024-25 में सरकार ने 40 लाख टन चीनी को एथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्ट करने की अनुमति दी थी। इस बार की नीति से उम्मीद है कि एथेनॉल उत्पादन और मिश्रण में वृद्धि होगी, जिससे देश के ईंधन सुरक्षा लक्ष्यों को भी बल मिलेगा। ईंधन में एथेनॉल मिश्रण को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की ऑयल मार्केटिंग कंपनियां (ओएमसी) पेट्रोल के साथ एथेनॉल का मिश्रण बेचती हैं। वर्तमान ईएसवाई 2024-25 में ओएमसी ने 31 जुलाई 2025 तक औसत 19।05 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण हासिल किया है।
राष्ट्रीय बायोफ्यूल नीति 2018, जिसे 2022 में संशोधित किया गया था, ने एथेनॉल मिश्रण का 20 प्रतिशत लक्ष्य 2030 से आगे बढ़ाकर ईएसवाई 2025-26 कर दिया। इस लक्ष्य को हासिल करने में इस फैसले से बड़ी मदद मिलने की उम्मीद है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मात्रात्मक प्रतिबंध हटने से शुगर मिलों और डिस्टिलरी में निवेश बढ़ सकता है, उत्पादन क्षमता में सुधार होगा और किसानों को अतिरिक्त आय के अवसर मिलेंगे। साथ ही, यह नीति भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और आयातित ईंधन पर निर्भरता कम करने में सहायक होगी। ईएसवाई 2025-26 के शुरू होने के साथ ही उद्योग के स्टेकहोल्डर्स एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए तैयार हैं। यह नीति न केवल ऊर्जा और कृषि क्षेत्र को लाभ पहुंचाएगी, बल्कि देश में स्थायी ईंधन पहल को भी मजबूती प्रदान करेगी।