नई दिल्ली, एजेंसी। देश में रेवड़ी कल्चर बढ़ गया है। चुनाव जीतने के लिए पार्टियां मुफ्त की सौगातों की बौछार कर रही हैं। इस बीच रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट ने तंज कसा है। सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीबीज यानी रेवड़ी कल्चर पर कहा कि राज्य के पास मुफ्त की रेवड़यिां बांटने के लिए पैसे हैं, मगर जजों को सैलरी देने के लइए पैसे नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को फ्रीबीज मामले पर सुनवाई हुई। इसी दौरान जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने यह कड़ी टिप्पणी की।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा, राज्य के पास मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के लिए पैसे हैं, लेकिन जजों की सैलरी-पेंशन देने के लिए नहीं है। राज्य सरकारों के पास उन लोगों के लिए पूरा पैसा है, जो कुछ नहीं करते, लेकिन जब जजों की सैलरी की बात आती है तो वे वित्तीय संकट का बहाना बनाते हैं।’ जस्टिस बी।आर। गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी उस समय की, जब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दलील दी कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की?
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘राज्य के पास उन लोगों के लिए पैसा है जो कोई काम नहीं करते। चुनाव आते हैं, आप लाडली बहना और अन्य नयी योजनाएं घोषित करते हैं, जिसके तहत आप निश्चित राशि का भुगतान करते हैं। दिल्ली में अब आए दिन कोई न कोई पार्टी घोषणा कर रही है कि वे सत्ता में आने पर 2,500 रुपये देंगे।’ शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पेंशन के संबंध में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की ओर से 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
फ्रीबीज पर पहले भी अदालत की चिंता
इसके बाद अटार्नी जरनल आर वेंकटरमणि ने कहा कि वित्तीय बोझ की वास्तविक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि यह ‘दयनीय’ है कि उच्च न्यायालय के कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को 10,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच पेंशन मिल रही है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब दिल्ली चुनाव में फ्रीबीज की बहार है। आम आदमी पार्टी ने वादा किया है कि उसकी सरकार बनी तो महिलाओं को 2100 रुपए हर महीने मिलेंगे। कांग्रेस 2500 रुपए देने की बात कह रही है। भाजपा भी इसी तरह का ऐलान करने वाली है।