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13 Nov 2025, Thu

ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत, ट्रांसजेंडर पर पलटा निचली अदालत का फैसला

वॉशिंगटन, एजेंसी। अमेरिका में अब पासपोर्ट में अब ट्रांसजेंडरों की आजादी को खत्म कर दिया गया है। देश में अब पासपोर्ट पर दो ही तरह के जेंडर लिखने की आजादी है, पुरुष या महिला। अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन को पासपोर्ट पर लिंग पहचान को सिर्फ पुरुष या महिला तक सीमित रखने की नीति लागू करने की अनुमति दे दी है। इस फैसले से निचली अदालतों के आदेश पलट गए हैं और देश में ट्रांसजेंडर अधिकारों और सुरक्षा को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है।
इस निर्णय के बाद ट्रंप प्रशासन अब इस नीति को लागू कर सकता है, जबकि इसके खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई जारी रहेगी। अदालत ने निचली अदालत के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी विदेश विभाग पासपोर्ट आवेदन में लोगों को अपनी लिंग पहचान के अनुसार M, F या X विकल्प चुनने की अनुमति दे।
कोर्ट ने दी ट्रंप की नीति लागू करने की इजाजत
एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के तीन उदारवादी न्यायाधीशों ने इस फैसले का विरोध किया। यह फैसला ट्रंप प्रशासन की एक और जीत की तरह देखा जा रहा है। अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से अब तक, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप सरकार के पक्ष में लगभग दो दर्जन अस्थायी आदेश जारी किए हैं, जो अलग-अलग नीतिगत विवादों से जुड़े थे। इनमें वो आदेश भी शामिल है, जिसने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अमेरिकी सेना में सेवा करने से रोक दिया था।
एक बिना हस्ताक्षर वाले आदेश में सुप्रीम कोर्ट के रूढ़िवादी बहुमत ने कहा कि यह नीति समान अधिकार के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करती। अदालत ने लिखा, पासपोर्ट पर व्यक्ति के जन्म के समय दर्ज लिंग को दिखाना उतना ही सामान्य है जितना उसके जन्मस्थान को दिखाना। दोनों ही मामलों में सरकार केवल एक ऐतिहासिक तथ्य का उल्लेख कर रही है, न कि किसी के साथ भेदभाव कर रही है।
नीति का हुआ विरोध
जस्टिस केतानजी ब्राउन जैक्सन ने अदालत के दो अन्य उदारवादी (liberal) न्यायाधीशों के साथ मिलकर इस फैसले का कड़ा विरोध किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यह निर्णय ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी अमेरिकियों को जोखिम में डाल देगा।
जैक्सन ने लिखा, अदालत ने एक बार फिर बिना किसी उचित — या सच कहें तो किसी भी — ठोस कारण के, लोगों को तुरंत नुकसान पहुंचाने का रास्ता खोल दिया है। उन्होंने तर्क दिया कि यह नीति ट्रंप के उस कार्यकारी आदेश से प्रेरित है, जिसमें ट्रांसजेंडर पहचान को झूठा और हानिकारक बताया गया था।
जैक्सन ने बताया कि कई वादियों ने एयरपोर्ट पर स्ट्रीप-सर्च, यौन शोषण या फर्जी दस्तावेज इस्तेमाल करने के आरोप झेले, क्योंकि उनके पासपोर्ट में दर्ज लिंग उनके बाहरी लिंग प्रदर्शन से मेल नहीं खाता था।
कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के बहुमत ने तर्क दिया कि इस नीति को रोकना सरकार की पासपोर्ट प्रबंधन क्षमता और राष्ट्रपति के विदेश नीति अधिकार को नुकसान पहुंचाएगा। विरोध करने वाले न्यायाधीशों ने कहा कि व्यक्तिगत पहचान दस्तावेज और विदेश नीति के बीच स्पष्ट संबंध नहीं है।
क्या है ट्रंप की नीति?
यह पासपोर्ट नीति ट्रंप के जनवरी कार्यकारी आदेश से शुरू हुई, जिसमें कहा गया कि अमेरिका सिर्फ दो लिंगों — पुरुष और महिला को ही मान्यता देगा और यह जन्म प्रमाणपत्र और जैविक वर्गीकरण पर आधारित होगी।
अमेरिका के पासपोर्ट में सेक्स मार्कर पहली बार 1970 के दशक में शामिल किए गए।
1990 के दशक की शुरुआत तक, आवेदक डॉक्टर के नोट के जरिए इसे बदल सकते थे।
राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में 2021 में, विदेश विभाग ने दस्तावेज संबंधी आवश्यकताओं को हटा दिया और नॉन-बाइनरी आवेदकों के लिए X विकल्प पेश किया, जो लंबे कानूनी संघर्ष के बाद संभव हुआ।
अटॉर्नी जनरल पैम बॉंडी ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह सच को पुष्ट करता है कि केवल दो लिंग होते हैं।
और उन्होंने प्रशासन की स्थिति का समर्थन जारी रखने का वचन दिया।

By Aryavartkranti Bureau

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