नई दिल्ली। वैश्विक आतंकवाद के वित्तीय जाल पर नज़र रखने वाली संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने एक बार फिर पाकिस्तान को सख़्त चेतावनी दी है कि अक्टूबर 2022 में “ग्रे लिस्ट” से हटाया जाना उसे जांच और निगरानी से मुक्त नहीं करता। दरअसल, पाकिस्तान ने कई वर्षों तक आतंक वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ़ दिखावटी सुधार किए हैं और अब जब फिर से उसके आतंकी नेटवर्क डिजिटल माध्यमों से सक्रिय हो रहे हैं। इसे देखते हुए FATF ने साफ़ संकेत दे दिया है कि उसकी छूट अस्थायी है और किसी भी समय फिर से शिकंजा कसा जा सकता है।
हम आपको बता दें कि FATF की अध्यक्ष एलिसा डे आंडा माद्राज़ो ने पेरिस में आयोजित सत्र में कहा, “कोई भी देश, चाहे वह ग्रे लिस्ट से बाहर आ चुका हो, अपराधियों या आतंकियों की गतिविधियों से सुरक्षित नहीं माना जा सकता। सभी देशों को अपनी वित्तीय प्रणाली को स्वच्छ रखने के लिए प्रयास जारी रखने होंगे।”
यह बयान पाकिस्तान के लिए किसी सख़्त फटकार से कम नहीं है। 2022 में ग्रे लिस्ट से हटने के बाद इस्लामाबाद ने इसे अपनी “कूटनीतिक जीत” बताया था, परंतु हक़ीक़त यह है कि पाकिस्तान अब भी एशिया-पैसिफिक ग्रुप (APG) के “फ़ॉलो-अप” निगरानी तंत्र के अधीन है। यानी FATF के मापदंडों पर उसकी निरंतर जांच जारी है।
FATF की रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन, जैसे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा, अब डिजिटल वॉलेट, क्रिप्टोकरेंसी और ऑनलाइन क्राउडफंडिंग जैसे माध्यमों से पैसा जुटा रहे हैं। ये संगठन सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिए अपने “समर्थकों” से धन एकत्र कर रहे हैं, ताकि ट्रेसिंग से बचा जा सके।
इसी क्रम में FATF ने खुलासा किया कि भारत में कई आतंकी घटनाओं— पुलवामा (2019), गोरखनाथ मंदिर हमला और पहलगाम हमले में इस्तेमाल हुए विस्फोटक उपकरणों की खरीद ई-कॉमर्स साइटों के माध्यम से की गई थी। इससे यह स्पष्ट हो गया कि आतंकवादी अब पारंपरिक बैंकिंग चैनलों की बजाय डिजिटल रास्तों से अपने नेटवर्क को संचालित कर रहे हैं।
हम आपको याद दिला दें कि पुलवामा हमले के पीछे पाकिस्तानी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की भूमिका FATF और भारतीय एजेंसियों, दोनों ने प्रमाणित की थी। इसके बावजूद पाकिस्तान ने अब तक उस हमले में शामिल व्यक्तियों और संगठनों के विरुद्ध कोई ठोस दंडात्मक कदम नहीं उठाया। देखा जाये तो यह विडंबना है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को आतंकवाद के खिलाफ सहयोगी बताता है, जबकि उसकी धरती पर आतंकी संगठनों को अब भी सरकारी संरक्षण प्राप्त है। FATF की ताज़ा चेतावनी इसीलिए अहम है क्योंकि यह दिखाती है कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता अब भी संदिग्ध बनी हुई है।
हम आपको बता दें कि भारत के राष्ट्रीय जोखिम आकलन (National Risk Assessment 2022) में पाकिस्तान को “उच्च जोखिम वाले देश” के रूप में चिन्हित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, FATF के नियमों का पालन करने के बावजूद, पाकिस्तान की नीति राज्य-प्रायोजित आतंकवाद (State-sponsored Terrorism) से अलग नहीं हुई है। FATF की एक अन्य रिपोर्ट ने तो पाकिस्तान के National Development Complex को दक्षिण एशिया में Proliferation Risk (हथियार निर्माण के प्रसार का खतरा) के रूप में भी चिन्हित किया है।
पाकिस्तान ने अगर आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद नहीं किया तो जल्द ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए इस्लामाबाद का समर्थन करना मुश्किल हो जायेगा क्योंकि इस बार FATF की चेतावनी काफी सख्त लहजे में आई है। साथ ही ट्रंप का वर्तमान वैश्विक एजेंडा “Peace through Strength” और “No Compromise on Security” के इर्द-गिर्द घूमता है। ऐसे में पाकिस्तान, जो अफ़ग़ानिस्तान और भारत के खिलाफ आतंकवाद का अड्डा बन चुका है, उसके लिए वॉशिंगटन से कोई सहानुभूति या आर्थिक राहत की उम्मीद करना मुश्किल हो सकता है।
यह पूरा प्रकरण भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। FATF की यह चेतावनी पाकिस्तान के आतंक नेटवर्क के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दबाव को फिर से सक्रिय कर सकती है। भारत को इस अवसर का उपयोग करते हुए अपने कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान न केवल निगरानी में रहे बल्कि उसके खिलाफ ठोस वित्तीय प्रतिबंध भी जारी रहें। वैसे तो भारत ने हमेशा FATF में पाकिस्तान की गतिविधियों के ठोस साक्ष्य रखे हैं, लेकिन अब यह समय है जब इन प्रमाणों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाए।
बहरहाल, पाकिस्तान की स्थिति आज एक ऐसे अपराधी की तरह है जिसे अदालत से “अस्थायी जमानत” तो मिल गई है, लेकिन हर दिन उस पर नई निगरानी बढ़ रही है। FATF की चेतावनी साफ़ है कि पाकिस्तान अपनी कथित “सुधार” की ढाल के पीछे ज्यादा देर नहीं छिप पाएगा और इस बार उसे उसका सबसे बड़ा आका भी नहीं बचा पाएगा।

