लेटेस्ट न्यूज़
23 Dec 2024, Mon

उकसाता है अमेरिका, जहर उगलते हैं ट्रूडो, कैसे तल्ख होते गए भारत-कनाडा के रिश्ते?

यरुशलम, एजेंसी। किसी शहर को आप दो तरीके से देखते हैं। एक तो महज इसलिए कि हम यहां घूमने आए हैं, बाकी यहां की दिनचर्या और सामाजिक जीवन से अपना कोई वास्ता नहीं है। दूसरा, इसलिए शहर सब सुंदर होते हैं, लेकिन सबसे सुंदर वह है जो अपना वैविध्य, अपनी सामाजिकता और अपनी खूबसूरती बचाए हुए हैं। इस मामले में कनाडा का टोरंटो शहर अव्वल है।
ऊपर से देखने पर इस शहर में भी भीड़ दिखेगी, रेल, ट्रामें और बसें दिखेंगी। ऊंची-ऊंची इमारतें, तड़क-भड़क और साज-सज्जा दिखेगी। लेकिन जो चीज सबसे अधिक आकर्षित करती है, वह यह कि इस शहर में आपको हर आदमी निर्भय और अपनी पहचान स्पष्ट करता मिलेगा। गोरे तो हैं ही पर नेटिव और आप्रवासी लोग भी हैं। हर एक अपनी भाषा बोलता है, अपनी धार्मिक पहचान जताने के लिए स्वतंत्र है। गरीब-अमीर सब के साथ एक जैसा भाव।

स्व-अनुशासन में कनाडा अव्वल
इसकी वज़ह है, यहां के लोगों का स्व-अनुशासन। सरकार की निंदा करने को आप स्वतंत्र हो, लेकिन किसी व्यक्ति या समुदाय को हीन भाव से देखा, तो आपकी ख़ैर नहीं। दूसरे की भावनाएं और दूसरे के चिंतन को यहां सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और कोई भी स्वयं को विश्व-ग़ुरु समझने का दुस्साहस नहीं कर सकता। मैं पिछले वर्ष छह महीने से कनाडा रहा। लेकिन मुझे दिलचस्पी वहां के शहरों की इमारतें देखने की बजाय शहर में रहने वाले विभिन्न समुदायों को समझने में रही।
लिबरल पार्टी के जस्टिन ट्रूडो की सरकार को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) का सहयोग था। दो महीने पहले NDP ने अपना समर्थन वापस ले लिया है। NDP के अध्यक्ष जगमीत सिंह हैं। वे भारतीय मूल के सिख हैं। यद्यपि वे अलग खालिस्तान की बात तो नहीं करते किंतु सिखों को आत्म निर्णय के अधिकार के पक्षधर हैं।

अल्ट्रा लेफ्ट पार्टी NDP का ट्रूडो को अंगूठा
NDP को अल्ट्रा लेफ़्ट कहा जा सकता है। यह पार्टी एलजीबीटी (LGBT) लोगों को समान अधिकार और स्वतंत्रता देने की मांग करती है। इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय शांति, पर्यावरण बचाने की पक्षधर है। कनाडा में हर नागरिक के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी सरकार की है, लेकिन दांत, आंख और कैंसर के रोगियों का इलाज़ की सुविधा सरकार नहीं देती। पर एनडीपी का कहना है, कि ये रोग भी फ्री इलाज के दायरे में लाए जाएं। इस कारण इसका अपना आधार सभी समुदायों में है।
कनाडा की लिबरल पार्टी को आप भारत की कांग्रेस कह सकते हैं। कनाडा में लंबे समय तक इसने राज किया है। और पिछले 9 वर्षों से तो जस्टिन ट्रूडो ही प्रधानमंत्री हैं। इनके पिता पियरे ट्रूडो भी दो टर्म प्रधानमंत्री रहे थे। पहले 1968 से 1979 तक तथा पुनः 1980 से 1984 तक। बीच के एक वर्ष वे नेता विरोधी दल रहे थे।

पियरे ट्रूडो अमेरिकी दबाव में नहीं आए
पियरे ट्रूडो कनाडा में बहुत प्रभावशाली प्रधानमंत्री माने गए हैं, वे कभी भी अमेरिका (USA) के दबाव में नहीं आए। जबकि अमेरिका सदैव कनाडा से बड़े भाई जैसा व्यवहार करता रहा है। क्योंकि कनाडा की पूरी दक्षिणी सीमा अमेरिका से सटी है और बाकी तीन तरफ समुद्र है। एक तरफ प्रशांत महासागर तो दूसरी तरफ एटलांटिक तथा उत्तर की तरफ़ आर्कटिक। इसलिए अमेरिका के अर्दब में रहना कनाडा की मजबूरी है।
कनाडा में कृषि उपज (खासकर गेहूं, मक्का, बाजरा) के अलावा बस सेब की फसल ही आती है। कनाडा का अपना प्रोडक्शन कुछ भी नहीं है। यहां कारें और भारी मशीनरी अमेरिका, जर्मनी और जापान, वस्त्र वियतनाम, चीन और बांग्लादेश से और इलेक्ट्रॉनिक सामान चीन से निर्यात होती हैं। इसके बावजूद कनाडा के प्रधानमंत्री की स्वतंत्र नीति चौंकाती रही है।

अमेरिका से कहीं अधिक खुशहाली
यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कनाडा में पेट्रो उत्पाद खूब हैं और ऊर्जा के मामले में कनाडा आत्म निर्भर है। यहां अनगिनत झीलें हैं, इनमें से पांच का क्षेत्रफल तो लाखों वर्ग किमी से अधिक है। विश्व के कुल पेयजल का 11 पर्सेंट अकेले कनाडा में है और रूस के बाद दुनिया का सबसे अधिक एरिया इसी के पास है। मगर आबादी लगभग पौने चार करोड़। प्रति किमी कुल चार आदमी का औसत है।
इसके बाद भी कनाडा विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। हर घर में चार-चार तो गाड़ियां हैं और सब की सब महंगी व लक्जरी कारें हैं। वहीं हर घर में एक गाड़ी पिकअप ट्रक (जैसी कि अपने यहां की इसूजी कार) भी है। हर वीकेंड में यहां के लोग नाव, साइकिल कारों में लादकर किसी झील या जंगल किनारे चले जाते हैं।

न ईर्ष्या न द्वेष
इसके बाद भी कोई किसी से ईर्ष्या नहीं करता न होड़ करता है। तुम अपने में खुश हम अपने में खुश। इसकी वजह है, यहां की विविधता, जो प्रकृति में भी है और सामाजिक समरसता में भी है। इस बहु संस्कृति वाले देश में परस्पर बैर-भाव न होना एक बड़ी उपलब्धि है। ऐसा नहीं कि लिबरल पार्टी का राज होने के कारण ऐसा हो, बल्कि जब कंजर्वेटिव पार्टियों का राज होता है, तब भी इस देश के मूल समावेशी संविधान से खिलवाड़ संभव नहीं क्योंकि प्रेस यहां बहुत ताकतवर रहा है।
सरकार जरा भी इधर-उधर हुई तो प्रेस हंगामा कर देता था। जब यहां कुछ देशों से आए अफ़ग़ान शरणार्थियों को मज़दूरी में लगाया गया और उनके साथ भेद-भाव हुआ तो फौरन प्रेस खड़ा हो गया। उसने ट्रूडो सरकार की छीछालेदर कर दी कि यह लेबर लॉ का उल्लंघन है। जब मजदूर लाए गए हैं तो उनको वही सुविधाएं दी जाएं जो कनाडा के नागरिकों को प्राप्त हैं।

जस्टिन ट्रूडो ने सब बिगाड़ा
आज भी वही कनाडा है, वही लोग हैं और वही जस्टिन ट्रूडो। मगर अब कनाडा की सामाजिकता में बदलाव आ रहा है। जब से भारत और कनाडा की सरकारों के बीच रिश्ते बिगड़े तो बिगड़ते ही चले गए। इस कड़वाहट को बढ़ाने में अकेले इन दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों का ही रोल नहीं है, बल्कि कई और देश भारत-कनाडा के मध्य खाई को चौड़ा करने में लगे हैं।
सबसे बड़ा खेल तो अमेरिका कर रहा है।
अमेरिका में अगले महीने नया राष्ट्रपति चुना जाना है। इस समय अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन राष्ट्रपति हैं। पर इस बार चुनाव में कमला हेरिस डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हैं। दूसरी तरफ़ डोनाल्ड ट्रम्प रिपब्लिकन उम्मीदवार हैं. सबको पता है, कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्रम्प से निकटता है। इसलिए भारत को परेशान की नीयत से अमेरिका अपने पिछलग्गू देश कनाडा को उकसाता है। जस्टिन ट्रूडो बिना कुछ सोचे, ऐसे बयान दे रहे हैं, जो भारत सरकार को भड़काते हैं।

अमेरिकी कूटनीति के चलते सबके सुर बदले
लेकिन मामला सिर्फ यहीं तक नहीं है। फ़ाइव आइज के बहाने ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका भी कनाडा के पाले में दिखते हैं। हालांकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड इस विवाद में कूदे नहीं है लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन भारत को संयम बरतने की सलाह दे रहे हैं। इन दोनों देशों ने कहा है, कि भारत हरजीत सिंह निज्जर की हत्या की चल रही जांच में कनाडा का सहयोग करे। हो सकता है, देर-सबेर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी इस विवाद में कूदें।

ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा वो पांच देश हैं, जहां भारतीय लोग बहुत अधिक हैं। उनकी संख्या यहां बढ़ती ही जा रही है। भारत और चीन से लगातार जा रहे प्रवासियों से इन देशों की सामाजिक संरचना भी प्रभावित हो रही है। इसलिए भी ये देश भारतीयों की आवा-जाही प्रतिबंधित करने के लिए परस्पर निकट आ रहे हैं।

रूस और चीन भी शीत युद्ध में कूदे
जिस तरह से जस्टिन ट्रूडो और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दूरियां बढ़ रही हैं, उससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। न भारत कोई छोटा देश है न कनाडा कमजोर। रूस और चीन भी अपने-अपने हिसाब से अपनी चिंताएं और अपनी पक्षधरिता स्पष्ट कर रहे हैं। रूस तो कनाडा से काफ़ी दूरी बना चुका है। रूसी मीडिया RT ने तो जस्टिन ट्रूडो पर भारत के विरुद्ध विष-वामन का आरोप लगाया है। उसने एक मीम शेयर किया है, जिसमें एक बच्चा डांस कर रहा है। इस मीम में म्युजिक पर डांस करते एक लड़के को जस्टिन ट्रूडो बताया गया है।

वहीं लड़के के डांस पर ख़ुशियां मनाते दो लोगों को खालिस्तानी अलगाववादी बताया गया है। मीम के साथ कैप्शन में लिखा गया कि भारत विरोधी ट्रूडो के घर के अंदर उसके पास मूव्स तो है लेकिन सबूत नहीं है। अब जाती हुई सत्ता के लिए बस जस्ट डांस! वहीं चीन मौजूदा कूटनीति में रूस के विरोध में तो जाने से रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *