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5 Feb 2025, Wed

कोरोना वायरस और HMPV कहीं जैविक हथियार तो नहीं

प्रभात पांडेय

चीन में खतरा बन चुके एचएमपीवी वायरस की भारत में एंट्री हो चुकी है। देश में में सोमवार को ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) संक्रमण के सात मामले सामने आए। इनमें से बेंगलुरु, नागपुर और तमिलनाडु में दो-दो और अहमदाबाद में एक मामला है। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि इस वायरस से अभी किसी तरह के खतरे की बात नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने चिंताओं को दूर करते हुए कहा कि मामलों में वृद्धि से कोविड जैसा प्रकोप नहीं होगा।
ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस या एचएमपीवी की खोज 2000 में हुई थी। उस समय डच वैज्ञानिकों के एक समूह ने मनुष्यों में तीव्र श्वसन संक्रमण के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया था। उन्हें एक अज्ञात पैथोजन मिला था। 2001 तक, डच वैज्ञानिकों ने स्पेशल कल्चर और आणविक तकनीकों के एक जटिल मिश्रण का उपयोग करके मेटान्यूमोवायरस की सिक्वेंसिंग की थी। हालांकि, बाद में, 28 बच्चों के सीरोलॉजिकल स्टडी (ब्लड सीरम का एनालिसिस) से कुछ और दिलचस्प बातें सामने आईं। यह वायरस 1958 से नीदरलैंड में प्रचलन में था। इससे पहले भी इसकी संख्या में वृद्धि हुई थी। वास्तव में, 2023 के पहले महीनों में, अमेरिका ने एचएमपीवी का पता लगाने में तेजी दर्ज की।
अधिकतर मामलों में, सभी वायरस के संक्रमण लक्षणहीन या हल्के होते हैं, लेकिन कुछ व्यक्तियों के लिए वे गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति पैदा कर सकते हैं। यह कोविड-19 के लिए सही था, और यह एचएमपीवी के लिए भी सही है। लेकिन कोविड-19 के विपरीत, एचएमपीवी लंबे समय से मौजूद है। साथ ही इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह भारत में पहले की तुलना में अधिक तेजी से फैल रहा है। एचएमपीवी एक आरएनए वायरस है। यह एक तरह से कोरोना की तरह ही है। ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस एक आम श्वसन यानी सांस संबंधी वायरस है। यह वायरस एक तरह से मौसमी है। इसका असर आमतौर पर सर्दी और वसंत में दिखता है। यह फ्लू की तरह ही है। चीन में यह मेटापन्यूमोवायरस कहर ढा रहा है। यह वायरस अब खतरनाक रूप लेता जा रहा है। इसकी चपेट में लाखों-करोड़ों लोग आ चुके हैं। अस्पातालों में भीड़ बढ़ गई है। हालांकि, चीन अब इससे इनकार कर रहा है। यह वायरस वैसे तो 1958 से धरती पर मौजूद है। मगर 2001 में पहली बार वैज्ञानिकों ने इसे खोजा था। अब तक इसकी वैक्सीन नहीं बन पाई है।
ये बीमारी कैसे आई? आई या लाई गई या भेजी गई? ये वायरस है या कोई विषाणु हथियार? पूरी दुनिया के लिए अचानक ये महामारी कैसे बन गई? फिर कैसे ग़ायब हो गई और दोबारा और पहले से ज़्यादा खतरनाक बनकर वापस आई? विज्ञान के लिए ये सब अब तक पहेली है। लाखों लोगों की मौत हुई, करोड़ों बीमार हुए, अरबों खरबों का नुक़सान हुआ। दुनिया ने अनिश्चितता का दौर देखा। और अब हर व्यक्ति के मन में एचएमपीवी का डर घर किए हुए है।
जैविक हथियारों का इस्तेमाल कब से शुरू हुआ, इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन सबसे पहला रिकॉर्डेड मामला साल 1347 में आया था। तब मंगोल सेना ने यूरोप को तहस-नहस करने के लिए व्यापार के लिए आए जहाजों में प्लेग के जीवाणु और प्लेग-संक्रमित चूहे डाल दिए थे।
इसके बाद भी जैविक हमले की छुटपुट घटनाएं होती रहीं, लेकिन विश्व युद्धों ने इसका सबसे भयंकर चेहरा दिखाया। पहले विश्व युद्ध में जैविक और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को देखते हुए 1925 में अधिकांश देशों को इन पर प्रतिबंध लगाने के लिए जेनेवा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने पड़े। दूसरे विश्व युद्ध में जैविक हथियारों के साक्ष्य नहीं मिलते लेकिन माना जाता है कि बहुत से देशों ने शोध और विकास कार्यक्रम शुरू कर दिए। शीत युद्ध के दौर में अमेरिका और सोवियत संघ के साथ उनके सहयोगियों ने बड़े स्तर पर ऐसे कार्यक्रम शुरू किए। ऐसे कार्यक्रमों को रोकने के लिए 1972 में बायोलॉजिकल वेपंस कन्वेंशन हुआ जो 1975 में लागू हो गया। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के 190 सदस्य देशों में से कुछ देशों पर संदेह है कि वे अब भी जैविक हथियारों के कार्यक्रम चला रहे हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण के समय में दुनिया भर के ज़्यादातर प्रभावित देशों में स्वास्थ्य सेक्टर की पोल खुली। कहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर कमज़ोर है तो कहीं आपदा प्रबंधन की नीतियां, कहीं स्वास्थ्य संबंधी मूलभूत सुविधाओं की कमी है और कहीं दूरदृष्टि व नेतृत्व कमज़ोर। ऐसे में, दुनिया का कोई भी देश जैविक हमलों या युद्ध के लिए तैयार नहीं कहा जा सकता।
जैविक युद्ध की स्थिति कितनी भयानक होगी, इसका अंदाज़ा आप मेडिकल न्यूज़ टुडे के लेख में निकाले गए इस निष्कर्ष से लगा सकते हैं – ‘एक भारी लेख के अंत में हल्का मूड करने के लिए बस ये याद रखिए कि यूएस में जो भी रह रहा है, वह आतंकी हमले के बजाय किसी जानवर के हमले में मारा जाएगा, इसकी आशंका ज़्यादा है, फिर वह हमला जैविक हो या किसी और तरह का।’
भारत और अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देश स्वयं को इसके शिकंजे से बचाने के लिए पूरे प्रयास में जुटे हैं। यह भी देखा जा रहा है कि चीन अपने वायरस को निरंतर अपडेट कर रहा है और अपने दुश्मन देशों को हेल्थ सिस्टम में उलझाकर रखना चाहता है। पूरी आशंका है कि नए वैरिएंट अपडेट वायरस ही हो सकते हैं। अब तक के तमाम तथ्य इस बात को ही इंगित करते हैं कि इस समस्या की असली जड़ चीन ही है। ऐसे में पूरी विश्व बिरादरी को चीन के विरुद्ध एकजुट होना होगा। साथ ही, भविष्य में जैविक हथियारों या किसी भी तरह के जैविक युद्ध से निपटने के लिए भी बड़ी तैयारी करनी होगी।

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