मॉस्को, एजेंसी। यूरोप और अमेरिका दशकों से दोस्ती के रिश्तों में बंधे रहे हैं। फ्रांस तो इस रिश्ते का सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता था। लेकिन बीते कुछ महीनों में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों लगातार ऐसे कदम उठा रहे हैं, जिनसे ये सवाल उठ रहा है कि क्या पेरिस अब वाशिंगटन से दूर हो रहा है?
क्या मैक्रों अपनी नई विदेश नीति से अमेरिका को खुला संदेश देना चाहते हैं? नीचे चार बड़े संकेत हैं, जो दिखाते हैं कि मैक्रों धीरे-धीरे अमेरिका के खेल को चैलेंज करने लगे हैं।
1- चीन दौरे में मैक्रों का साफ एजेंडा
मैक्रों तीन दिन की राजकीय यात्रा पर चीन पहुंचे, और उनके एजेंडे ने सबका ध्यान खींचा। वह चीन के साथ ट्रेड बैलेंस, निवेश, ऊर्जा और एविएशन सेक्टर में कई बड़े समझौतों पर काम कर रहे हैं। लेकिन असली लक्ष्य? बीजिंग को साथ लेकर रूस पर दबाव बनाना ताकि यूक्रेन में सीजफायर की दिशा में चीजें आगे बढ़ सकें। यानी फ्रांस अब यूक्रेन मामले में अमेरिका की लाइन को सीधे फॉलो नहीं कर रहा। मैक्रों यूरोप की स्वतंत्र डिप्लोमैसी की बात कर रहे हैं।
2- मैक्रों का बड़ा दावा- अमेरिका यूक्रेन को धोखा दे सकता है
जर्मन अखबार डेर श्पीगल की लीक रिपोर्ट ने यूरोप में हलचल मचा दी। यूरोपीय नेताओं की सीक्रेट कॉल में मैक्रों ने कहा कि अमेरिका, यूक्रेन को बिना मजबूत सुरक्षा गारंटी दिए, जमीन छोड़ने के लिए मजबूर कर सकता है। इस बयान का मतलब साफ है कि मैक्रों को डर है कि अमेरिका ट्रंप प्रशासन के तहत यूक्रेन के लिए अपनी प्रतिबद्धता कम कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप के करीबी स्टीव विटकॉफ और जेरेड कुशनर जैसे लोगों पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।
3- अमेरिकी दूत का फ्रांस पर हमला- रिश्तों में बढ़ी खटास
अमेरिकी राजदूत चार्ल्स कुशनर ने हाल ही में फ्रांस पर यह आरोप लगाकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था कि देश में यहूदी-विरोध (एंटीसेमिटिज्म) खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है और मैक्रों सरकार इस पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रही। उन्होंने ये आरोप किसी निजी चर्चा में नहीं, बल्कि वॉल स्ट्रीट जर्नल में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को लिखे खुले पत्र में लगाए। उन्होंने मैक्रों से यह भी कहा कि वे इज़राइल की आलोचना पर थोड़ा लगाम लगाएं, क्योंकि इसका असर फ्रांस की घरेलू स्थिति पर पड़ता है। फ्रांस ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की। मामला इतना गरमाया कि पेरिस ने अमेरिकी राजदूत को तलब करने का फैसला कर लिया।
4- फिलिस्तीन को अलग मान्यता
मैक्रों ने हाल ही में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी है। यह कदम अमेरिका की नीति के बिल्कुल उलट है जहां वाशिंगटन इज़राइल के साथ मजबूती से खड़ा है। फ्रांस ने पहली बार खुलकर कहा कि फिलिस्तीन की मान्यता अब केवल समय का सवाल है। यानी पेरिस अब अपनी मिडिल ईस्ट पॉलिसी में भी अमेरिका के इशारों पर नहीं चलना चाहता।
फ्रांस-अमेरिका की सालों पुरानी दोस्ती, फिर वाशिंगटन का खेल करने में लगे हैं इमैनुएल मैक्रों

