नई दिल्ली, एजेंसी। मतदाता सूची में शुद्धीकरण के लिए बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अंजाम दिए गए विशेष पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) में 68।66 लाख नाम वोटर लिस्ट से बाहर किए गए। मसौदा सूची में हटाए गए 65 लाख का ब्यौरा पहले ही आयोग ने दे दिया था। जबकि फाइनल लिस्ट में हटाए गए 3।66 लाख अयोग्य करार दिए गए। यह आंकड़ा मसौदा सूची में शामिल मतदाताओं का था। सर्वोच्च अदालत ने इन्हीं का ब्यौरा आयोग से तलब किया है।
चुनाव आयोग के मुताबिक सिर्फ वैध दस्तावेज के आधार पर ही नागरिक को मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है। दस्तावेजों से नागरिकता की परख आयोग द्वारा की जा सकती है। हालांकि आयोग द्वारा अयोग्य मतदाताओं के विदेशी होने की पुष्टि नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की तरफ से पेश होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी के मुताबिक, सिर्फ भारतीय नागरिक ही देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान का अधिकार रखता है। आयोग दस्तावेजों के आधार पर योग्यता और अयोग्यता की परख करता है। यानी दस्तावेजों में संशय होने की स्थिति में नागरिकता की परख भी की जाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार मतदाता बनने के लिए व्यक्ति का भारत का नागरिक होना आवश्यक है। बिहार में एसआईआर प्रक्रिया की शुरुआत 24 जून को की गई। आयोग ने 30 जून को स्पष्ट किया कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल 4।96 करोड़ मतदाताओं यानी करीब 60 प्रतिशत को कोई दस्तावेज जमा नहीं करना होगा। इसके बाद 1 अगस्त को मसौदा सूची जारी हुई और 65 लाख नाम हटा दिए गए। इसमें 22 लाख मृत, 35 लाख स्थायी रूप से पलायन या फिर उनका पता नहीं चल पाया। 7 लाख एक से ज्यादा स्थानों पर पंजीकृत थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यह सूची राजनीतिक दलों और आम जनता के लिए वेबसाइट पर अपलोड की गई। फाइनल वोटर लिस्ट 30 सितंबर को जारी की गई।
अंतिम मतदाता सूची में कुल 7.42 लाख मतदाता शामिल हैं, जो इस साल 24 जून को 7.89 करोड़ मतदाताओं की संख्या से लगभग 6 प्रतिशत कम है। कुल 68.66 लाख लोगों के नाम बाहर हुए। 65 लाख मसौदा सूची और अंतिम सूची में 3.66 लाख, जिन्हें मसौदा सूची की समीक्षा के दौरान अयोग्य पाया गया। दरअसल 3.66 लाख दावे और आपत्तियों के चरण के दौरान हटाए गए। यह वह समय होता है जब नागरिक नाम हटाने का विरोध कर सकते हैं या ड्राफ्ट सूची में सुधार की मांग कर सकते हैं। साथ ही 21।53 लाख नए मतदाता (फॉर्म-6 के तहत) जोड़े गए। सूत्रों के मुताबिक, अंतिम सूची में 3।66 लाख और हटाए गए नामों में से 2 लाख से ज़्यादा प्रवास के कारण, लगभग 60,000 मृत्यु के कारण और 80,000 डुप्लीकेसी (दो स्थानों पर नामांकित) के कारण हटाए गए।
शेष 1।66 लाख के दस्तावेजों की सघन जांच की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि हटाए गए विदेशियों का प्रतिशत, अगर कोई हो तो ना के बराबर रह जाता है। जब जून में एसआईआर की घोषणा की गई थी तो विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की आलोचना की थी और आरोप लगाया था कि वह परंपरा तोड़ रहा है और नागरिकता जांच का प्रयास कर रहा है।
आयोग के मुताबिक एसआईआर क्यों?
एसआईआर की समाप्ति पर एक बयान में चुनाव आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और चुनाव आयोग के आदर्श वाक्य कोई भी पात्र मतदाता छूटने न पाए और कोई भी अपात्र व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल न हो के अनुरूप की गई थी। आयोग ने आगे कहा था कि इस प्रक्रिया से व्यथित कोई भी व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रथम अपील और मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष द्वितीय अपील दायर कर सकता है।
पूरे देश में होगा एसआईआर
बिहार के अनुभव के आधार पर आयोग द्वारा एसआईआर प्रक्रिया की समीक्षा करने और देश के बाकी हिस्सों में एसआईआर लागू करने की विधि और समय पर निर्णय लेने की उम्मीद है। हालांकि चुनाव आयोग ने 10 सितंबर को सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की एक बैठक आयोजित की थी, जहां बिहार में इस प्रक्रिया पर एक प्रस्तुति दी गई थी और पात्रता प्रमाण के लिए आवश्यक दस्तावेजों की सूची पर प्रतिक्रिया मांगी गई थी। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक देशव्यापी एसआईआर के कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है।
चुनाव आयोग ने 24 जून को पूरे देश के लिए एक एसआईआर को लेकर निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसकी शुरुआत बिहार से हुई क्योंकि राज्य में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। आदेश के अनुसार, सभी मौजूदा 7।89 करोड़ मतदाताओं को गणना फॉर्म भरना अनिवार्य था और 2003 के बाद पंजीकृत सभी मतदाताओं को (जब राज्य में अंतिम गहन पुनरीक्षण हुआ था) नागरिकता सहित अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने आवश्यक थे।