नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) को उप-वर्गीकृत करने का अधिकार देने वाले संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की 7-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्य एससी श्रेणियों के बीच अधिक पिछड़े लोगों की पहचान कर सकते हैं और कोटा के भीतर अलग कोटा देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकते हैं।
इसके बाद फैसले के खिलाफ कई समीक्षा याचिकाएं दायर की गईं। न्यायालय ने यह कहते हुए फैसले की समीक्षा करने से इनकार कर दिया कि इसमें कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं है। बेंच ने आदेश में कहा कि समीक्षा याचिकाओं को पढ़ने के बाद, रिकॉर्ड पर कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 के आदेश XLVII नियम 1 के तहत समीक्षा के लिए कोई मामला स्थापित नहीं किया गया है। इसलिए, समीक्षा याचिकाएं खारिज कर दी जाती हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने फैसला सुनाया। अपनी एकमात्र असहमति में, न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने कहा कि अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।
बहुमत वाले छह न्यायाधीशों में से चार ने अनुसूचित जाति से ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर करने की आवश्यकता के बारे में विस्तृत टिप्पणियाँ कीं और कहा कि सरकार को उनकी पहचान करने के लिए कदम उठाने चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उप-वर्गीकरण की अनुमति देते समय, राज्य किसी उप-वर्ग के लिए 100% आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकता है। साथ ही, राज्य को उप-वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के संबंध में अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण को उचित ठहराना होगा।