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2 Aug 2025, Sat

इंसानों ने विज्ञान जैसे वरदान को बना दिया अभिशाप

प्रभात पांडेय

मंगलवार, 18 सितंबर को लेबनान और सीरिया के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में सिलसिलेवार धमाके हुए। सड़कों, बाजारों और घरों में लोगों की जेब और हाथ में रखे पेजर में एकाएक विस्फोट होने लगे। लेबनान से लेकर सीरिया तक इन धमाकों का सिलसिला लगभग 1 घंटे तक चला। धमाकों में अब तक 9 लोगों की मौत और 2000 से ज्यादा के जख्मी होने की खबर है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो ये धमाके हिजबुल्लाह को निशाना बनाकर पेजर के जरिये किये गए थे, और इनमें आम लोगों को भी नुकसान हुआ। हिजबुल्लाह ने इजराइल पर इन धमाकों का आरोप लगाया है।

दरअसल, लेबनान के अधिकांश क्षेत्रों पर हिजबुल्लाह का कब्जा है। इस संगठन ने अपने सैनिकों को हैकिंग और हमलों के खतरे से बचने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करने को कहा है। इसी वजह से इन क्षेत्रों में लोग पेजर का इस्तेमाल करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें पेजर एक वायरलेस डिवाइस होता है, जिसे बीपर के नाम से भी जानते हैं। 1950 में पहली बार पेजर का इस्तेमाल न्यूयॉर्क सिटी में हुआ। तब 40 किलोमीटर की रेंज में इसके जरिए मैसेज भेजना संभव था। 1980 के दशक में इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में होने लगा। 2000 के बाद वॉकीटॉकी और मोबाइल फोन ने इसकी जगह ले ली। पेजर की स्क्रीन आमतौर पर छोटी होती है, जिसमें लिमिटेड कीपैड होते हैं। इसका इस्तेमाल दो तरह से मैसेज भेजने के लिए होता है- 1। वॉयस मैसेज 2। अल्फान्यूमेरिक मैसेज। यह बातचीत का बेहद सिक्योर मीडियम होता है, जिसे आसानी से कोई सुरक्षा एजेंसी ट्रेस नहीं कर सकती है। इस तरह के डिवाइस को ट्रेस करने के लिए उसकी रेंज में होना जरूरी है। लेबनान में रेडियो वेव से चलने वाले कई पेजर्स में एक साथ विस्फोट हुए। इस बात की संभावना जताई जा रही है कि इजराइल ने अपने दुश्मनों को मारने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो वेव का इस्तेमाल कर पेजर्स पर एक कोडेड मैसेज भेजा जिससे ब्लास्ट हुए। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक सेंकेड वर्ल्ड वॉर के समय से ही दुश्मनों के खात्मे के लिए इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर का तरीका अपनाया जा रहा है। इस टेक्नोलॉजी के जरिए दुश्मन देशों के ड्रोन, जैमर या फाइटर जेट को धोखा देकर उलझाया जा सकता है।

विज्ञान की दोहरी प्रकृति के बारे में हम सब जानते हैं। विज्ञान मानव जीवन के लिए वरदान भी है और अभिशाप भी। जब तक इसका मानव जीवन के लिए सदुपयोग किया जाएगा तब तब यह एक वरदान की भूमिका निभाएगा लेकिन जब इसी विज्ञान का दुरुपयोग करके मानव जीवन को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाएंगे तो यह मानव जीवन के लिए अभिशाप बन जाएगा।
वरदान के रूप में विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं, बहरों को सुनने की ताकत। लाइलाज रोगों की रोकथाम की है तथा अकाल मृत्यु पर विजय पाई है । विज्ञान की सहायता से यह युग बटन-युग बन गया है। बटन दबाते ही वायु-देवता हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र-देवता वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कहीं शीत-उष्ण वायु के झोंके सुख पहुँचाने लगते हैं। बस, गाड़ी, वायुयान आदि ने स्थान की दूरी को बाँध दिया है । टेलीफोन द्वारा तो हम सारी वसुधा से बातचीत करके उसे वास्तव में कुटुंब बना लेते हैं। हमने समुद्र की गहराइयाँ भी नाप डाली हैं और आकाश की ऊँचाइयाँ भी। हमारे टी।वी।, रेडियो, वीडियो में मनोरंजन के सभी साधन कैद हैं। सचमुच विज्ञान ‘वरदान’ ही तो है।

अभिशाप के रूप में मनुष्य ने जहाँ विज्ञान से सुख के साधन जुटाए हैं, वहाँ दुख के अंबार भी खड़े कर लिये हैं। विज्ञान के द्वारा हमने अणु बम, परमाणु बम तथा अन्य ध्वंसकारी शस्त्र-अस्त्रों का निर्माण कर लिया है। अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री इकट्ठी हो चुकी है कि उससे सारी पृथ्वी को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्या बहुत बुरी तरह फैल गई है । आए दिन नए असाध्य रोग पैदा होते जा रहे हैं, जो वैज्ञानिक उपकरणों के अंधाधुंध प्रयोग करने के दुष्परिणाम हैं। वैज्ञानिक प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव-मन पर हुआ है। पहले जो मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था, मस्त और बेपरवाह था, वह अब छली, स्वार्थी, चालाक, भौतिकतावादी तथा तनावग्रस्त हो गया है। उसके जीवन में से संगीत गायब हो गया है, धन की प्यास जाग गई है। नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं।

लेबनान में एक साथ हजारों पेजर में हुए विस्फोट ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। पेजर डिवाइस में हुए ब्लास्ट के बाद, हिजबुल्लाह के सदस्यों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रेडियो वॉकी-टॉकी में भी ब्लास्ट हुए हैं। अब सवाल उठता है कि क्या पेजर की तरह मोबाइल को भी हैक किया जा सकता है? आज सभी के हाथों में मोबाइल है। मोबाइल के जरिए किसी की लोकेशन का पता करने या मोबाइल हैक करके सारा डेटा चुराने में वक्त नहीं लगता। मोबाइल में विस्फोटक डालकर हत्या भी हो चुकी है। 1996 में हमास नेता याहया अयाश के फोन में 15 ग्राम आरडीएक्स विस्फोटक भरा गया था और जब याहया ने अपने पिता को फोन किया, उसी समय उसमें विस्फोट हो गया था। इस हत्या के पीछे इजरायल का हाथ था। अब एक बार फिर पेजर के जरिए हुए धमाकों के लिए भी इजरायल को ही जिम्मेदार माना जा रहा है, क्योंकि हिज्बुल्लाह लगातार इजरायल की उत्तरी सीमा पर रॉकेट और मिसाइल के हमले कर रहा है। हिज्बुल्लाह ईरान का सहयोगी है और ईरान की इजरायल के साथ दुश्मनी जाहिर है। हालांकि इज़रायल ने अब तक इन हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली है। लेकिन पेजर के जरिए विस्फोट करने का काम मोसाद जैसी अत्याधुनिक तकनीकी से लैस एजेंसी ही कर सकती है, ऐसा माना जा रहा है।

तमाम हमलों में बंदूक, बम, बारुद का इस्तेमाल हुआ है, लेकिन बेरूत में हुआ हमला इन सबसे भयानक इसलिए कहा जा सकता है कि क्योंकि रोजमर्रा में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए बनाए गए पेजर को हैक करके लोगों को मारा गया, घायल किया गया। कुछ बरस पहले स्कूलों में निबंध का एक अहम विषय हुआ करता था, विज्ञान अभिशाप है या वरदान। जिसमें विद्यार्थी अक्सर हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए अणु बम का उल्लेख करके इस निष्कर्ष पर पहुंचते थे कि अगर हिंसा के लिए विज्ञान का इस्तेमाल किया जाए तो वह अभिशाप बन जाता है। मेरा ख्याल है विज्ञान को अभिशाप बताने की जगह इंसान की नीयत पर विचार करने पर जोर दिया जाना चाहिए। ज्ञान और इंसानियत के विकास का गहरा संबंध है। जब मनुष्य गुफाओं और जंगलों में रहता था, तब दो पत्थरों को रगड़कर उसने आग जलाना सीखा और उन्हीं पत्थरों को नुकीला बनाकर शिकार करने के लिए भी इस्तेमाल किया। लेकिन तब यह सवाल करना बेमानी था कि पत्थर वरदान या है अभिशाप। क्योंकि पत्थर ने आग जलाकर या शिकार करके, दोनों तरीकों से इंसान की मदद ही की। अब अगर इंसान उसी पत्थर का इस्तेमाल दूसरे इंसान को मारने के लिए करे, तो इसमें पत्थर पर नहीं, नीयत पर सवाल उठने चाहिए। आदिम काल में जो उपयोगिता पत्थर की थी, अब विज्ञान की है। हकीकत में विज्ञान को वरदान या अभिशाप बनाने वाला इंसान है। उसे वरदान या अभिशाप बनाना हमारे हाथ में है । इस संदर्भ में एक उक्ति याद रखनी चाहिए– ‘विज्ञान अच्छा सेवक है लेकिन बुरा हथियार भी।’

By Aryavartkranti Bureau

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