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7 Sep 2025, Sun

जिंदा थीं, मदद के लिए पुकारती रहीं फिर भी क्यों नहीं बचाई जा सकीं अफगानी महिलाएं?

काबुल। जंग हो या त्रासदी, सबसे बड़ा खामियाजा हमेशा औरतों को ही भुगतना पड़ता है। ये कोई महज भावनात्मक बयान नहीं बल्कि ठोस आकंड़ा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के मुताबिक, जब कोई आपदा आती है तो महिलाओं और बच्चों के मरने की संभावना पुरुषों से 14 गुना ज्यादा होती है।इसी सच्चाई को एक बार फिर साबित कर दिया है अफगानिस्तान में आए भीषण भूकंप ने।
6।0 तीव्रता वाले इस भूकंप ने हजारों जिंदगियां लील ली हैं। अब तक 2200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं। 3000 से ज्यादा घायल हैं और कई जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। लेकिन इन 2200 मौतों में से कई औरतों की जान बच सकती थी। क्योंकि वे अभी भी जिंदा थीं, उनकी सांसें चल रही थीं, उम्मीद बाकी थी। मलबे के नीचे दबे हाथ मदद के लिए हिल रहे थे, आँखें जिंदगी की भीख मांग रही थीं। मगर इस उम्मीद के बीच आ खड़ी हुईं अफगानिस्तान की रूढ़िवादी परंपराएं। ऐसी परंपराएं, जिनके चलते राहतकर्मी उन्हें हाथ नहीं लगा सके। और नतीजा, जिंदा औरतें भी दम तोड़ गईं।
परंपराएं जो बनीं मौत का कारण
अफगान समाज में लंबे समय से महिलाओं को लेकर सख्त पाबंदियां हैं। किसी गैर मर्द द्वारा छूना या हाथा लगाना गुनाह माना जाता है। भूकंप के बाद जब राहतकर्मी मौके पर पहुंचे तो उन्हें महिलाओं को निकालने से पहले परिवार या समाज की इजाजत लेनी पड़ी। इस देरी में कई जिंदगिया खत्म हो गईं।
शव कपड़े से खींचे गए
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब महिलाएं मलबे में फंसी थीं, तो राहतकर्मियों ने उन्हें सीधे हाथ लगाने की बजाय कपड़ों या चादरों से खींचकर बाहर निकाला। कई बार इस प्रक्रिया में देर हो गई और महिलाएं मौके पर ही दम तोड़ बैठीं। सिर्फ यही नहीं महिलाओं के इलाज में भी भेदभाव देखा गया। कुनार प्रांत में पीड़ितों की मदद के लिए अस्पतालों में पुरुष और महिला मरीजों को अलग-अलग रखा गया। महिला डॉक्टरों की कमी होने की वजह से कई महिलाएं सही इलाज तक नहीं पा सकीं।
महिला डॉक्टर और राहतकर्मियों की कमी
बचाव कार्य के दौरान महिला डॉक्टर और महिला कर्मियों की भारी कमी खली। ऊपर से महिलाओं पर जबसे तालिबान का शासन चल रहा है तब से महिलाओं के बुनियादी अधिकार भी छिन लिए गए हैं। उन पर सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं। मसलन लड़कियों को छठी कक्षा के बाद पढ़ाई की अनुमति नहीं है। बिना पुरुष साथी के महिलाएं यात्रा नहीं कर सकतीं। नौकरी और सरकारी जगहों पर चेहरे ढकना अनिवार्य है। राजनीतति और सार्वजनिक जीवन से महिलाओं की भागीदारी लगभग खत्म हो गई है।

By Aryavartkranti Bureau

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