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14 Jan 2025, Tue

’12 लोग एक प्लेट में खिचड़ी खाते थे, गरीबी मेरे डीएनए में है, अपमान सहा’, रवि किशन का छलका दर्द

रवि किशन ने हाल ही में अपने बचपन के बारे में बात की और बताया कि वे एक बेहद गरीब घर से आते हैं। रवि ने उन दिनों के बारे में बात की और बताया कि एक समय पर, वे मिट्टी से बनी झोपड़ी में रहते थे, और 12 लोग खिचड़ी की एक प्लेट शेयर करते थे। रवि ने कहा कि गरीबी उनके डीएनए में इस हद तक समा गई है कि अब, जब वे अच्छी तरह से रह रहे हैं, तब भी वे किसी लग्जरी रेस्तरां में खुलकर ऑर्डर नहीं कर सकते क्योंकि उनका मीडिल क्लास स्वभाव उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है।
शुभांकर मिश्रा के साथ पॉडकास्ट में रवि ने बताया, “मैं मिट्टी से बनी झोपड़ी में रहता था। हमारे पास जिम्मेदारियां थीं, हमारी खेती की जमीन गिरवी रखी हुई थी।” उन्होंने आगे कहा, “मैंने बहुत गरीबी देखी है। ऐसी गरीबी जिसमें एक खिचड़ी को 12 लोग खाते हैं, और वह भी पानी डालकर।” रवि ने याद किया कि जब वे मुंबई आए, तो वे वड़ा पाव और चाय पर गुजारा करते थे और बिना कोई अच्छी फीस के 15 साल तक फिल्मों में काम किया।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने बहुत अपमान सहा है। लोग एक-दो बार अपमानित होते हैं, मैंने हजारों बार इसका सामना किया है। इन सबकी वजह से रवि किशन वह बने हैं जो वह हैं।’
महंगा खाना खाने में झिझकते हैं रवि किशन
उन्होंने अपनी स्थिति के बारे में आगे बात की और साझा किया कि आज भी, जब वह 7-सितारा होटल में जाते हैं, तो वह खुद को महंगा खाना ऑर्डर करने की इजाजत नहीं दे सकते, चाहे इसके लिए कोई भी भुगतान कर रहा हो।
होटल में खिचड़ी ऑर्डर करते हैं अभिनेता
अभिनेता ने बताया “मैं अभी भी खिचड़ी ऑर्डर करता हूं । मैं अपने कपड़े धोने के लिए देने में अभी भी झिझकता हूं। मुझे लगता है कि जब मैं वापस आऊंगा तो मैं उन्हें घर पर धुलवा सकता हूं। गरीबी अभी भी मेरा हिस्सा है।’
सरनेम से क्यों हटाया शुक्ला?
रवि से यह भी पूछा गया कि उन्होंने अपने सरनेम से शुक्ला क्यों हटाया और अभिनेता ने कहा, ‘क्योंकि मुझे शुक्ला नाम से काम नहीं मिल रहा था।’ उन्होंने कहा कि उस समय पैसा कमाना सबसे जरूरी था, इसलिए उन्होंने अपने सरनेम के बारे में चिंता नहीं की और कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उस समय अपना सरनेम हटाना एक जरूरी कदम क्यों लगा। उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी इस बारे में अच्छे से नहीं बताया। यह रवि किशन शुक्ला था। अब आपके पास सौरभ शुक्ला, त्रिपाठी और बाजपेयी हैं, लेकिन उस समय ऐसा नहीं था।’

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