लेटेस्ट न्यूज़
23 Dec 2024, Mon

दक्षिण भारत में भारी बारिश का कहर, पर्यावरण की बिगड़ती सेहत चिंता का विषय

प्रभात पांडेय

चक्रवाती गतिविधि के चलते दक्षिण भारत के कई राज्यों में भयंकर बारिश रिकॉर्ड की गई, तमिलनाडु में जारी तूफानी हवाओं के साथ भारी बारिश की वजह से लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, राज्य के कई हिस्सों में जलभराव व बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारी बारिश को देखते हुए राज्य के कई जिलों में स्कूल-कॉलेजों में अवकाश घोषित कर दिया गया हैं। कई हिस्सों में बस सेवाओं पर असर पड़ा है। जलभराव की वजह से चेन्नई सेंट्रल-मैसूर कावेरी एक्सप्रेस समेत चार एक्सप्रेस ट्रेनों को रद्द किए जाने की खबर है। इसके अलावा कई घरेलू उड़ानें भी स्थगित की गई हैं।
मॉनसून 2024 ने देशभर में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और असामान्य तापमान के साथ भारत को झकझोर कर रख दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के चलते मौसम का यह अस्थिर रूप देखने को मिला है। भारी वर्षा और बढ़ते न्यूनतम तापमान ने कई क्षेत्रों को प्रभावित किया और भविष्य में इस स्थिति के और गंभीर होने की आशंका जताई जा रही है। हाल के वर्षों की तरह ही 2024 के माॅनसून में पिछले पांच सालों में सबसे अधिक बहुत ज्यादा बारिश और अचानक बाढ़ आ जाने की घटनाएं हुईं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष देशभर में सामान्य से अधिक बारिश हुई। भारत ने 1 जून से 30 सितंबर तक कुल 934.8 मिमी बारिश दर्ज की, जो मौसमी औसत 868.6 मिमी से अधिक है। माॅनसून का यह प्रदर्शन, विशेष रूप से जुलाई से सितंबर के महीनों में, अप्रत्याशित रहा, जबकि जून में अल-नीनो के प्रभाव के कारण 11 प्रतिशत की बारिश की कमी देखी गई थी। हाल के वर्षों में माॅनसून के प्रदर्शन में वार्षिक परिवर्तनशीलता में वृद्धि देखी गई है। वैज्ञानिक माॅनसून परिवर्तनशीलता में वृद्धि जैसी चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का श्रेय ग्लोबल वार्मिंग को देते हैं।
क्लाइमेट चेंज होने के कारण धरती की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ, दुनिया के कई हिस्सों में सूखा, बाढ़, पानी की कमी, भंयकर आग, समंदर का लेवल बढ़ना, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना, विनाशकारी तूफान और घटती जैव विविधता आदि शामिल हैं।
पिछले कई सालों से हम सुन रहे हैं कि दुनिया का क्लाईमेंट बदल रहा है। दुनिया में गर्मी बढ़ रही है। ओज़ोन की परत में कुछ हो गया है. आने वाले सालों में किसी भी जगह का मौसम जैसा है वैसा नहीं रहेगा. सुनने में यह भी आता है कि इसको लेकर सेमिनार हो रहे हैं, बच्चों को स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है इसके बारे में, सरकारें इससे निपटने के लिए पैसा खर्च कर रही है, इसके लिए मंत्रालय बन गए हैं. भारत सरकार का ही एक मंत्रलाय है – पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय. राज्य स्तर पर भी विभाग हैं, मंत्री हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ है, अर्थ सम्मिट हैं, और इसके लिए आवाज़ उठाते हज़ारों प्रदर्शनकारी हैं. लेकिन इसके बावजूद हम में से कई यह नहीं जानते कि दरअसल यह ठीक ठीक है क्या? क्या सच में दुनिया इसके वजह से एक दिन नष्ट हो जायेगी?
क्लाइमेट चेंज की बात करें तो इसका तात्पर्य धरती की पर्यावरणीय स्थितियों में परिवर्तन से है। ये कई आंतरिक और बाहरी कारकों के कारण होता है। पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चिंता बन गया है। इसके अलावा, ये क्लाइमेट चेंज धरती पर जीवन को कई तरीकों से प्रभावित करते हैं। लेकिन मुख्य कारण तापमान और मौसम के पैटर्न में लम्बे समय से बदलाव है। ऐसे बदलाव सूरज के तापमान में बदलाव या बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण प्राकृतिक रूप में हो सकते हैं। लेकिन 18वीं दशक से, इंसानी गतिविधियां क्लाइमेट चेंज का मुख्य कारण बनी हैं, जिसमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना है।
मनुष्यों द्वारा बिठाई गयीं फैकटरियों से निकलते हुए धुंए से, और हमारी गाड़ियों, घरों, वाहनों में गैस, तेल, कोयले की खपत के कारण होता है। जब फॉसिल फ्युएल जलने पर ग्रीनहाउस गैसेस एमिट करते हैं, मुख्यतः कार्बन डाईऑक्साइड (CO2)। ग्रीनहाउस गैस खतरनाक होती हैं क्योंकि ये सूरज की गर्मी को ट्रैप करती हैं जिसकी वजह से धरती का तापमान बढ़ता है। 19वीं सदी के मुकाबले आज पृथ्वी का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा है और हवा में तब के मुक़ाबले डेढ़ गुणा कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हमें पृथ्वी बचानी है तो किसी भी सूरत में वैश्विक तापमान को इससे ज्यादा नहीं बढ़ने देना होगा जबकि हाल ही में प्रकाशित हुए एक रिपोर्ट के मताबिक, इस सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 2.4 डिग्री तक बढ़ जाने का अनुमान है।
क्लाइमेट साइंटिस्ट्स के मुताबिक पिछले 200 सालों में लगभग सभी ग्लोबल हीटिंग के लिए हम इंसान जिम्मेदार हैं। लगभग साढ़े चार दशक से दुनिया में इस बात को लेकर बहस चल रही है कि समय रहते हम नहीं चेते तो पर्यावरण का सत्यानाश हो जाएगा। आज हम इस संकट से प्रतिदिन जूझ रहे हैं। सुविधा हमारे लिए सर्वोपरि हो गया है और पर्यावरण दूसरे पायदान पर चला गया है।
ईश्वर ने नदी, झरने, सागर, पर्वत, सूर्य, आकाश जैसे अनूठे तत्वों की रचना हमारे अस्तित्व के विकास के लिए की है। इन सभी अवयवों में के बीच एक संतुलन है, लेकिन विकास की होड़ में इंसानों ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया है। पर्यावरण को लेकर सरकार और कम्पनियों की ज़िम्मेदारी के अलावा हमारी भी जवाबदेही बनती है। हमारे छोटे लेकिन सोच-समझ कर लिए निर्णय से भी बहुत फ़र्क पड़ता है। जैसे इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल करें। जितनी जरुरत हो उतनी ही लाइट्स को यूज में लायें। एनर्जी सेव करने वाली प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करें। इस संतुलन को सुधारने के लिए पौधारोपण किया जाना जरूरी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *