लखनऊ। ‘नो स्मोकिंग डे’ हर साल मार्च माह के दूसरे बुधवार को मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य धूम्रपान से होने वाले गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और लोगों को इसे छोड़ने के लिए प्रेरित करना है। इस बार यह दिवस 12 मार्च को मनाया जाना है। इस बार इस दिवस की थीम – इस नो स्मोकिंग डे पर अपना जीवन वापस पाएं निर्धारित की गई है। इस दिन की शुरुआत 1984 में आयरलैंड में हुई थी और बाद में यह यूनाइटेड किंगडम सहित कई अन्य देशों में लोकप्रिय हो गया।
केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि आज नो स्मोकिंग डे धूम्रपान की लत को रोकने और लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में तंबाकू सेवन के कारण हर साल लगभग 80 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है, जिसमें से 70 लाख से अधिक लोग सीधे धूम्रपान करने की वजह से और बाकी 12 लाख लोग परोक्ष रूप से तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने से प्रभावित होते हैं। भारत में भी तंबाकू सेवन एक गंभीर समस्या है, जहां हर साल लगभग 35 लाख लोग तंबाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं। इसके तहत लोगों को धूम्रपान के नुकसान के बारे में सचेत करते हुए यह बताया जाएगा कि धूम्रपान छोड़ने से किस तरह आप करीब 40 तरह के कैंसर और 25 अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में आने से बच सकते हैं । सेकंड स्मोकिंग का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों और गर्भवती पर पड़ता है, क्योंकि वह शुरुआत से ही धुएं के घेरे में आ जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में लगभग 12 लाख लोगों की मृत्यु की वजह सेकंड हैण्ड स्मोकिंग है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि तंबाकू सेवन और धूम्रपान न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है।
पूर्व सेक्रेटरी, इंडियन सोसाइटी अगेंस्ट स्मोकिंग डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि धूम्रपान से कई घातक बीमारियां होती हैं, जिनमें प्रमुख रूप से फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़, स्ट्रोक, उच्च रक्तचाप और सांस संबंधी अन्य समस्याएं शामिल हैं। तंबाकू में मौजूद निकोटिन अत्यधिक नशे की लत उत्पन्न करने वाला तत्व है, जो मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर बढ़ाकर व्यक्ति को इसकी आदत डाल देता है। यही कारण है कि एक बार धूम्रपान की लत लग जाने के बाद इसे छोड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है। धूम्रपान केवल धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उनके आसपास के लोगों को भी प्रभावित करता है, जिसे ‘पैसिव स्मोकिंग’ कहा जाता है।
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि धूम्रपान छोड़ना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन सही रणनीतियों और समर्थन से इसे सफलतापूर्वक छोड़ा जा सकता है। निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी एक प्रभावी तरीका है, जिसमें निकोटिन गम, पैच या लोज़ेंजेस का उपयोग किया जाता है, जो धूम्रपान छोड़ने की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं। धूम्रपान छोड़ने के लिए मानसिक और भावनात्मक समर्थन भी बहुत जरूरी होता है। कई लोग धूम्रपान छोड़ने के दौरान तनाव, चिड़चिड़ापन और अनिद्रा जैसी समस्याओं का अनुभव करते हैं, इसलिए काउंसलिंग, परामर्श और सहायता समूहों का सहयोग लेना बेहद फायदेमंद हो सकता है। परिवार और दोस्तों का सहयोग भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि जब व्यक्ति को अपने करीबी लोगों से समर्थन मिलता है, तो धूम्रपान छोड़ना आसान हो जाता है।
स्वस्थ जीवन शैली अपनाना भी धूम्रपान छोड़ने में सहायक हो सकता है। नियमित व्यायाम करने से तनाव कम होता है और मस्तिष्क में एंडोर्फिन का स्तर बढ़ता है, जिससे व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इसके अलावा, संतुलित आहार लेना, अधिक पानी पीना और पर्याप्त नींद लेना भी इस प्रक्रिया में मददगार हो सकता है। धूम्रपान छोड़ने के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति उन परिस्थितियों और आदतों से बचें जो उन्हें धूम्रपान के लिए प्रेरित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को कॉफी पीते समय या दोस्तों के साथ समय बिताते हुए धूम्रपान करने की आदत होती है। ऐसे में, जब धूम्रपान छोड़ने का प्रयास कर रहे होते हैं, तो उन्हें इन स्थितियों से बचने या किसी अन्य स्वस्थ आदत को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। इस तरह नो स्मोकिंग डे हमें यह अवसर देता है कि हम इस बुरी आदत को छोड़ने और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के महत्व को समझें। यह न केवल हमें बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी एक स्वस्थ भविष्य देने में मदद कर सकता है।
अगर आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ने का सही समय अब है। आप न केवल अपने स्वास्थ्य को सुधारेंगे, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी एक सकारात्मक उदाहरण बनेंगे।