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12 Jul 2025, Sat

‘सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व के लिए धर्म, आस्था जैसे मापदंडों को आधार बनाना गलत’, भारत का बयान

न्यूयॉर्क, एजेंसी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में धर्म और आस्था के आधार पर प्रतिनिधित्व देने के प्रयासों की आलोचना की है। भारत ने कहा कि यह क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के स्वीकृत आधार के बिल्कुल विपरीत है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी हरीश ने अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) बैठक में ये बात कही। उन्होंने कहा कि पाठ-आधारित वार्ता का विरोध करने वाले लोग यूएनएससी सुधारों पर प्रगति नहीं चाहते हैं।
भारत ने क्यों कही ये बात
पी। हरीश का यह बयान तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन के बीते महीने दिए गए उस बयान के बाद आया है, जिसमें एर्दोआन ने कहा था कि एक इस्लामिक देश को भी सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए। माना जा रहा है कि तुर्किए राष्ट्रपति के उसी बयान के बाद भारत ने धर्म आधारित व्यवस्था का विरोध किया। ब्राजील, जर्मनी, जापान और भारत की सदस्यता वाले जी4 देशों ने भी धर्म और आस्था के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता देने का विरोध किया है। जी4 देशों का कहना है कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व एक स्वीकृत आधार है, जो समय की कसौटी पर खतरा भी उतरा है।
भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग कर रहा
हरीश ने कहा कि सुरक्षा परिषद की सदस्यता को मौजूदा 15 से बढ़ाकर 25 या 26 करने की जरूरत है, जिसमें 11 स्थायी सदस्य और 14 या 15 अस्थायी सदस्य शामिल होंगे। वर्तमान में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं, जिनमें चीन, फ्रांस, रूस, यूके और अमेरिका शामिल हैं। बाकी 10 सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिए गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में चुना जाता है। भारत पिछली बार 2021-22 में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में परिषद में बैठा था। भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद में बदलाव की मांग कर रहा है।

By Aryavartkranti Bureau

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