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12 Jul 2025, Sat

ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का लंबी बीमारी के बाद निधन; अब आगे क्या, नया पोप कैसे चुना जाएगा?

वॉशिंगटन, एजेंसी। दुनियाभर में कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है। वे डबल न्यूमोनिया से पीड़ित थे। उन पर किडनी खराब होने का खतरा भी मंडरा रहा था। 88 वर्षीय पोप को न्यूमोनिया की वजह से लंग्स में इन्फेक्शन भी हुआ था। इसके चलते उन्हें सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। वे एक महीने से ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहे थे।
पोप फ्रांसिस को 14 फरवरी को सांस लेने में समस्या की शिकायत के बाद अस्पता में भर्ती कराया गया था। जांच के दौरान उन्हें बाइलेटरल न्यूमोनिया से पीड़ित बताया गया था। यानी उनके फेफड़ों में दोनों तरफ पानी भर गया था। इसके चलते उन्हें सांस लेने में खासा दिक्कत हो रही थी। इस बीच पोप फ्रांसिस की अगली जांच में उनकी किडनी के हल्के खराब होने की खबरें भी सामने आईं। यानी उनके खून को छानने और शरीर में ऑक्सीजन लाने-ले जाने की क्षमता दोनों ही खत्म हो रही थीं। ऐसे में डॉक्टरों ने उन्हें लगातार ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा। इसके अलावा खून को भी लगातार साफ करने के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया।

ईसाई धर्म में धर्मगुरु के चुनाव से लेकर उनके अधिकारों तक का जिक्र हैं। इन्हें कैनन लॉ कहा जाता है। कैनन 331 के तहत- रोम के बिशप (पोप) और सभी कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु को सर्वोच्च, पूर्ण, तात्कालिक और सार्वभौमिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। इनका वह स्वतंत्र रूप से कभी भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, इसमें पोप के पद छोड़ने का जिक्र नहीं है। दरअसल, पोप का चुनाव अलग-अलग चर्चों के कार्डिनल (मुख्य पादरी) करते हैं और इन्हें भगवान से सीधे तौर पर जुड़ा माना जाता है। ऐसे में पोप का पद छोड़ना भी उपयुक्त कदम नहीं माना जाता। 

By Aryavartkranti Bureau

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