नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने की घोषणा कर दी है। बुधवार को CCPA की बैठक के बाद मोदी सरकार ने इसके बारे में फैसला लिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि सरकार जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना भी कराएगी। वहीं सरकार ने फिलहाल साफ नहीं किया है कि जनगणना और जातिगत जनगणना कब से शुरू होकर कब तक खत्म होगी।
आपको बता दें इससे पहले देश में 2011 में यूपीए सरकार के टाइम में जनगणना हुई थी, इसमें देश की कुल आबादी 120 करोड़ थी। आपको बता दें इस जनगणना को पूरी करने में करीब 2200 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। अब सवाल उठता है कि सरकार अगर अब जनगणना कराती है तो कुल खर्च कितना होगा। अगर आप भी इसके बारे में जानना चाहते हैं तो यहां हम इसके बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
2011 की जनगणना की खास बातें
2011 में देश में जो जनगणना हुई थी वो देश की 15वीं और स्वतंत्र भारत की 7वीं जनगणना थी। इस जनगणना में में कुल 6,40,867 गांव और 7,935 शहर (कस्बों) शामिल किए गए थे। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या 1,210,854,977 थी। इसमें 623.72 मिलियन (51.54%) पुरुष और 586.46 मिलियन (48.46%) महिलाएं शामिल थीं।
जातिगत जनगणना में आएगा इतना खर्च
2011 में जब देशभर में जनगणना हुई थी तो इसको कराने में 2200 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। तब देश की जनसंख्या 1,210,854,977 करोड़ थी। ऐसे में प्रति व्यक्ति जो खर्च आया था वो तकरीबन 18 रुपए के आसपास आया था। अगर 2025 में जनगणना कराई जाती है तो सरकार का कितना खर्च आएगा, इसे इंफ्लेशन के फॉर्मूले से पता किया जा सकता है।
इंफ्लेशन= करेंट CPI-प्रीवियस CPI/ प्रीवियस CPIx100
(CPI का अर्थ है Consumer Price Index )
इंफ्लेशन = 193.9-183/183×100
इंफ्लेशन= 93.9
यानी अब जो जनगणन होगी उसमें प्रति व्यक्ति खर्च = पुरानी जनगणना का खर्च+ इंफ्लेशन
जनगणन में प्रति व्यक्ति खर्च = 18+93.9
जनगणन में प्रति व्यक्ति खर्च = 111.9 रुपए
मान लीजिए फिलहाल देश की जनसंख्या 140 करोड़ है तब देशभर में जनगणना कराने में जो खर्च आएगा वो तकरीबन 15,666 करोड़ रुपए का खर्च होगा।