ताइवान। चीन ने पिछले कुछ दशकों में हर क्षेत्र में तरक्की की है। चीन आर्थिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में अमेरिका जैसे देशों से टक्कर ले रहा है। यहीं नहीं चीन अपना कूटनीतिक प्रभाव भी तेजी से बढ़ा रहा है, चीन गाजा युद्ध और यूक्रेन युद्ध में ही नहीं, यहां तक कि अफ्रीकी और नॉर्थ अमेरिकन देशों की राजनीति में भी अपना प्रभाव रख रहा है। दुनिया को कई तरह का सामान बेचने वाला चीन खुद में भी एक बड़ी मार्केट है। चीन की बढ़ती ताकत से उसके दुश्मन परेशान है और उसको हर तरफ से घेरने की कोशिश कर रहे हैं।
चीन भी अपने दुश्मनों को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। चीन धीरी-धीरी पूरे साउथ चाइना सी में अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। वहीं अमेरिका का जवाब देने के लिए उसने ईरान और रूस से अपने संबंध मजबूत किए हैं। लेकिन उसके दुश्मनों ने ऐसी चाल चली है कि वह अब चार तरफ से घिर गया है। ऐसे प्रतीत हो रहा है कि चीन को अगला रूस बनाने की कोशिश की जा रही है।
अमेरिका ने ताइवान और टैरिफ से किया वार
चीन का ताइवान के साथ विवाद पुराना है, चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को एक आजाद देश कहता है। अमेरिका ने चीन के खिलाफ ताइवान को हथियार देकर मजबूत किया है और उसकी सैन्य ताकत को यहां बांध दिया है। दूसरी और आर्थिक मोर्चे पर चीन को कमजोर करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ लागू किया है, जिससे चीन की कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं और अमेरिकी मार्केट में उनको अपना सामान बेचने में कई मशक्कत करनी पड़ रही हैं।
जापान और तिब्बत भी बने चुनौती
जापान ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। चीन और जापान की जिस समुद्री क्षेत्र पर विवाद है, उसी के पास जापान नेवी ऑपरेशन चला रहा है। जापान नेवी ने अमेरिकन नेवी के साथ मिलकर सी ऑफ जापान में ड्रिल शुरू की है, जिसके बाद से चीन की टेंशन बढ़ गई है। वहीं तिब्बत से भी विद्रोह की आवाजें उठने लगी हैं। तिब्बत के लोगों ने भी स्वतंत्रता का राग अलापना शुरू कर दिया है। 10 मार्च को तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस की 66वीं वर्षगांठ के अवसर पर दुनिया में रहने वाले हजारों तिब्बतियों ने इस दिन आजादी के लिए प्रदर्शन किए।