नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के जज के घर से नकदी बरामदगी पर चर्चा के लिए राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इससे पहले राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही मंगलवार को सदन के सदस्यों की ओर यह मुद्दा उठाया गया। इस पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से मिली नकदी मामले में आज शाम 4:30 बजे एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाए जाने की जानकारी दी।
दरअसल, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी की बरामदगी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सोमवार को जस्टिस वर्मा को अगले आदेश तक के लिए न्यायायिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा तीन सदस्यीय आंतरिक जांच समिति का गठन भी कर दिया गया। संसद के दोनों सदनों में भी नकदी की बरामदगी का मामला उठा था।
कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा?
56 साल के जस्टिस यशवंत वर्मा को अक्तूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। दिल्ली हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, जस्टिस यशवंत वर्मा ने 8 अगस्त 1992 को वकील के रूप में नामांकन कराया था। 13 अक्तूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 1 फरवरी 2016 को जस्टिस वर्मा स्थायी न्यायाधीश बने। 11 अक्तूबर 2021 को जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे। जस्टिस वर्मा वर्तमान में बिक्री कर, जीएसटी व अन्य अपीलों के मामलों से निपटने वाली खंडपीठ का नेतृत्व कर रहे हैं। जस्टिस वर्मा 2006 से अपनी पदोन्नति तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में विशेष वकील रहे। 2012 से अगस्त 2013 तक यूपी सरकार के मुख्य स्थायी वकील रहे।
जस्टिव यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी. कॉम (ऑनर्स) की डिग्री ली। इसके वाद उन्होंने मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में उन्होंने कॉर्पोरेट कानूनों, कराधान और कानून की संबद्ध मामलों के अलावा संवैधानिक, श्रम और औद्योगिक विधानों के मामलों में भी पैरवी की।
जस्टिस वर्मा के चर्चित फैसले कौन से हैं?
जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने शिबू सोरेन के खिलाफ सीबीआई जांच पर रोक लगाई थी। इसके अलावा उन्होंने उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें स्पाइसजेट और उसके प्रमोटर अजय सिंह को सन टीवी के मालिक कलानिधि मारन को 579 करोड़ रुपये और ब्याज वापस करने के लिए दिए गए मध्यस्थता फैसले को बरकरार रखा गया था।
उनके आदेशों में कांग्रेस के आयकर का नए सिरे से मूल्यांकन करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज करना भी शामिल है। जस्टिस वर्मा ने ही नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘ट्रायल बाय फायर’ पर रोक से इनकार किया था। सीरीज पर रोक के लिए रियल एस्टेट कारोबारी सुशील अंसल ने याचिका दाखिल की थी। जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के एक आदेश को भी रद्द कर दिया था। इसके तहत विभिन्न संस्थाओं को दिए गए ऋणों से अपनी ‘आय’ पर नोएडा को कर देयता से छूट देने से इनकार कर दिया गया था।
आरोपों पर सीजेआई ने क्या कदम उठाया है?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले में शनिवार को तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। यह समिति मामले की जांच करेगी। जस्टिस खन्ना ने निर्देश दिया कि जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। इस समिति का गठन दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीके उपाध्याय की रिपोर्ट मिलने के बाद किया गया। सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागु, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टिस वर्मा से सभी न्यायिक जिम्मेदारियां वापस ले लीं।