क्या आपके बच्चे का सिर या गर्दन सामान्य से छोटा है, मांसपेशियां काफी कमजोर हैं या फिर बोलने-समझने में कठिनाई हो रही है? कहीं उसे डाउन सिंड्रोम की समस्या तो नहीं?
डाउन सिंड्रोम एक गंभीर समस्या है जिसके मामले दुनियाभर में देखे जा रहे हैं। बच्चों में होने वाली ये आनुवांशिक समस्या पूरे जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली हो सकती है। डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति, क्रोमोसोम 21 की एक अतिरिक्त कॉपी के साथ पैदा होता है। इसका मतलब है कि उनके पास 46 के बजाय कुल 47 क्रोमोसोम होते हैं। यह उनके मस्तिष्क और शरीर के विकास को प्रभावित कर सकता है। कई लोगों को इसके कारण चलने-उठने जैसे जीवन के सामान्य कार्यों को करने में भी समस्या हो सकती है।
डाउन सिंड्रोम की समस्या के बारे में लोगों को जागरूक करने और डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को उनके समुदायों में कैसे महत्व दिया जाना चाहिए इस बारे में शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल 21 मार्च को वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे मनाया जाता है।
दुनियाभर में डाउन सिंड्रोम के शिकार लोग
एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका में हर साल लगभग 6,000 बच्चे इस समस्या के साथ पैदा होते हैं, जोकि प्रत्येक 775 शिशुओं में से लगभग एक के बराबर है। अमेरिका में लगभग दो लाख लोग डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं। भारतीय आबादी में भी ये समस्या देखी जा रही है। भारत में 800 से 850 जीवित जन्मे बच्चों में से लगभग एक को ये दिक्कत प्रभावित करती है। अनुमानतः प्रतिवर्ष 30,000 से 35,000 बच्चे इससे प्रभावित होते हैं। सबसे गंभीर बात ये है कि डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है।
कैसे जानें कहीं आपके बच्चे को भी नहीं है ये समस्या?
डाउन सिंड्रोम शारीरिक, संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं का कारण बनता है। डाउन सिंड्रोम के शारीरिक लक्षण आमतौर पर जन्म के समय मौजूद होते हैं और जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है, वे अधिक स्पष्ट हो जाते हैं। इसमें नाक का सपाट होना, झुकी हुई आंखें, छोटी गर्दन, छोटे कान, हाथ और पैर की समस्या हो सकती है। जन्म के समय मांसपेशियां कमजोर होना, औसत से कम लंबाई होना, सुनने और दृष्टि संबंधी समस्याएं होना, जन्मजात हृदय रोग भी डाउन सिंड्रोम का एक लक्षण हो सकता है।
अगर आपके बच्चे में भी इस तरह की कोई समस्या दिख रही है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
डाउन सिंड्रोम की समस्या क्यों होती है?
डाउन सिंड्रोम क्रोमोसोम यानी कि गुणसूत्र से संबंधित समस्या है, इसके अलावा कुछ जोखिम कारकों पर भी ध्यान देना चाहिए।
35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं से जन्मे बच्चों में इस विकार का खतरा अधिक होता है।
यदि परिवार में पहले डाउन सिंड्रोम के मामले रहे हैं, तो जोखिम बढ़ सकता है।
यदि माता-पिता में से किसी में आनुवांशिक विकार रहे हैं तो बच्चों में इसका खतरा अधिक हो सकता है।
डाउन सिंड्रोम हो जाए तो क्या करें?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं डाउन सिंड्रोम का निदान आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान या जन्म के बाद किया जा सकता है। गर्भकालीन स्क्रीनिंग टेस्ट यानी पहले और दूसरे तिमाही में ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड के माध्यम से डाउन सिंड्रोम के खतरे को पता लगाया जा सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डाउन सिंड्रोम का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन उचित देखभाल के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाई जा सकती है। बोलने और संवाद करने की क्षमता में सुधार के लिए बच्चों को टॉक थेरेपी दी जाती है। इसी तरह मांसपेशियों की मजबूती और संतुलन सुधारने के लिए फिजियोथेरेपी से लाभ मिल सकता है। डाउन सिंड्रोम से बचाव के लिए कोई पुख्ता तरीका नहीं है।