वॉशिंगटन । 2025 में भारत-अमेरिका के संबंध दशकों में सबसे मुश्किल दौर में से एक रहे हैं। दोनों देशों के संबंध सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। दक्षिण एशिया के एक टॉप विशेषज्ञ ने कहा कि ट्रंप सरकार इसे रणनीतिक नजरिए से देखने के बजाय लेन-देन के नजरिए से देख रही है। हडसन इंस्टीट्यूट थिंक-टैंक में कार्यरत सीनियर कर्मी अपर्णा पांडे ने आईएएनएस को एक इंटरव्यू में बताया, यह साल, मान लीजिए, सबसे मुश्किल सालों में से एक रहा है। एक स्तर पर, यह एक ऐसा साल रहा है जिसमें भारत-अमेरिका के संबंध लगभग सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। इसे ठीक होने में समय लग सकता है। इसमें कुछ महीने और कुछ साल भी लग सकते हैं। अपर्णा पांडे ने कहा कि इसके ठीक होने की रफ्तार और दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि वॉशिंगटन नई दिल्ली के साथ अपने जुड़ाव को कैसे देखता है। यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिकी सरकार भारत के साथ साझेदारी को एक रणनीतिक संबंध के तौर पर देखती है या इसे सिर्फ लेन-देन या सामरिक नजरिए से देखती है।
जब उनसे पूछा गया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी सरकार अभी भारत को कैसे देखती है, तो अपर्णा पांडे ने कहा, अभी तक ऐसा लगता है कि ट्रंप प्रशासन लगभग सभी देशों के साथ अपने संबंधों को लेनदेन और सामरिक नजरिए से देख रहा है। इस समय दोनों देशों के बीच इसी पर आधारित संबंध हैं। इनके बीच कोई रणनीतिक साझेदारी नहीं है।
उन्होंने कहा कि साल 2025 की शुरुआत बहुत अच्छी रही थी। फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच बैठक हुई। उन्होंने याद दिलाया कि दोनों नेताओं ने पिछले 35 सालों में जो हुआ था, उस पर आधारित पहल की घोषणा की थी। दुर्भाग्य से उसके बाद चीजें आगे नहीं बढ़ीं।
भारत और अमेरिका के बीच यह एक बड़ा कूटनीतिक ठहराव है, लेकिन ऑपरेशन स्तर का संबंध जारी है। व्यापार को लेकर अपर्णा पांडे ने जोर दिया कि मौजूदा झगड़े नए नहीं हैं। इन सभी मुद्दों पर हम 35 साल से बात कर रहे हैं। पिछली अमेरिकी सरकारों ने माना था कि भारत के साथ व्यापार में थोड़ी दिक्कत होगी और उसी हिसाब से बदलाव किए थे।
उन्होंने कहा कि सिर्फ व्यापार और टैरिफ पर ट्रंप सरकार के फोकस की वजह से हम व्यापार समझौते पर आगे नहीं बढ़ पाए हैं। पांडे ने आगे कहा कि भारत ने अमेरिकी सरकार के सामने एक बहुत अच्छे व्यापार समझौते का ड्राफ्ट पेश किया था, लेकिन आखिरी नतीजा राष्ट्रपति ट्रंप के इस फैसले पर निर्भर कर सकता है।
पांडे ने यह भी कहा कि रूस के साथ-साथ अमेरिका-भारत रिश्तों में खिंचाव का एक फैक्टर पाकिस्तान भी है। उन्होंने कहा, एक स्तर पर पाकिस्तान हमेशा से जानता है कि अमेरिकी सरकार को कैसे खुश या संतुष्ट करना है। हालांकि पिछली अमेरिकी सरकारों ने पाकिस्तान को ज्यादातर नजरअंदाज किया, लेकिन मौजूदा सरकार को लगता है कि पाकिस्तान से उन्हें कुछ फायदा मिल सकता है।
एक सवाल के जवाब में, उन्होंने मध्यपूर्व से लेकर जरूरी मिनरल्स के क्षेत्र तक के इलाकों में पाकिस्तान की मानी जाने वाली उपयोगिता की ओर इशारा करते हुए कहा, अमेरिका-पाकिस्तान का संबंध कितना बढ़ सकता है, इसकी एक अंदरूनी सीमा है। यह आतंकवाद के विरुद्ध, घरेलू स्थिरता और सीमित आर्थिक जुड़ाव तक ही सीमित रहेगा। मुझे नहीं लगता कि हम कोल्ड वॉर के दौर में वापस जा रहे हैं।
2026 को लेकर पांडे ने कहा, हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। व्यापार समझौते, कोर लीडर्स समिट और आगे के भारतीय आर्थिक सुधार, जिसमें लेबर रिफॉर्म, इंश्योरेंस में बदलाव और शायद न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल शामिल हैं।

