नई दिल्ली, एजेंसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आचार्य विद्यानंद जी महाराज के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। कार्यक्रम में पीएम मोदी को जैन समुदाय की ओर से धर्म चक्रवर्ती की उपाधि से सम्मानित किया गया। इस दौरान पीएम मोदी ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मुझे इस कार्यक्रम आने का अवसर देने के लिए आप सब का आभार व्यक्त करता हूं। हमें विकास और विरासत को एक साथ लेकर आगे बढ़ना है।
पीएम ने कहा कि आज हम सब भारत की अध्यात्म परंपरा के एक महत्वपूर्ण अवसर के साक्षी बन रहे हैं। पूज्य आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज, उनकी जन्म शताब्दी का ये पून्य पर्व उनकी अमर प्रेरणाओं से ओत-प्रोत यह कार्यक्रम एक अभूतपूर्व प्रेरक वातावरण का निर्माण हम सबको प्रेरित कर रहा है।
मैं इस उपाधि के लायक नहीं- पीएम
पीएम ने कहा आज इस अवसर पर आपने मुझे ‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि देने का जो निर्णय लिया है, मैं खुद को इसके योग्य नहीं समझता हूं। लेकिन हमारा संस्कार है कि हमें सतों से जो कुछ मिलता है उसे प्रसाद समझकर स्वीकार किया जाता है। इसलिए मैं आपके इस प्रसाद को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करता हूं और मैं भारती के चरणों में अर्पित करता हूं।
धर्ममय तभी बनेंगे जब स्वयं ही सेवामय बन जाए- पीएम
प्रधानमंत्री ने कहा आचार्य विद्यानंद जी महाराज कहते थे कि जीवन तभी धर्ममय हो सकता है, जब जीवन स्वयं ही सेवामय बन जाए। उनका ये विचार जैन दर्शन की मूल भावना से जुड़ा हुआ है, ये विचार… भारत की चेतना से जुड़ा हुआ है। भारत सेवा प्रधान देश है, मानवता प्रधान देश है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में जब हजारों वर्षों तक हिंसा को हिंसा से शांत करने के प्रयास हो रहे थे। तब भारत ने दुनिया को अहिंसा की शक्ति का बोध कराया। हमने मानवता की सेवा की भावना को सर्वोपरि रखा। सब साथ चलें, हम मिलकर आगे बढ़ें… यही हमारा संकल्प है।
पीएम ने कहा कि प्राकृत भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। ये भगवान महावीर के उपदेशों की भाषा है, लेकिन अपनी संस्कृति की उपेक्षा करने वालों के कारण ये भाषा सामान्य प्रयोग से बाहर होने लगी थी। हमने आचार्य श्री जैसे संतों के प्रयासों को देश का प्रयास बनाया। हमारी सरकार ने प्राकृत को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा दिया। हम भारत की प्राचीन पाण्डुलिपियों को digitize करने का अभियान भी चला रहे हैं।
आचार्य पद सिर्फ उपाधि नहीं बल्कि जैन परंपरा का विचार- पीएम
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का ये दिन एक और वजह से बहुत विशेष है। 28 जून यानी, 1987 में आज की तारीख पर ही आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज को आचार्य पद की उपाधि प्राप्त हुई थी। ये सिर्फ एक सम्मान नहीं था, बल्कि जैन परंपरा को विचार, संयम और करूणा से जोड़ने वाली एक पवित्र धारा प्रवाहित हुई।
उन्होंने आगे कहा कि आज जब हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं तब ये तारीख हमें उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाती है। इस अवसर पर आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज की चरणों में नमन करता हूं। उनका आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, ये प्रार्थना करता हूं।
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