नई दिल्ली, एजेंसी। पुणे में आयोजित सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के 22वें दीक्षांत समारोह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बदलती वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर एक स्पष्ट, आत्मविश्वासी और दूरगामी दृष्टि रखी। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया एकध्रुवीय नहीं रही। वैश्विक शक्ति संतुलन में बुनियादी बदलाव आया है और अब कई शक्ति केंद्र उभर चुके हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी देश में, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो, यह क्षमता नहीं रही है कि वह हर मुद्दे पर अपनी इच्छा थोप सके।
जयशंकर ने कहा कि शक्ति की परिभाषा अब केवल सैन्य ताकत तक सीमित नहीं है। व्यापार, ऊर्जा, संसाधन, तकनीक, पूंजी और सबसे बढ़कर प्रतिभा, ये सभी आज शक्ति के निर्णायक तत्व हैं। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण ने दुनिया के सोचने और काम करने के तरीकों को पूरी तरह बदल दिया है। ऐसे में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में भारत के लिए यह जरूरी है कि वह समकालीन और मजबूत विनिर्माण क्षमता विकसित करे, ताकि तकनीक की दौड़ में पीछे न रह जाए। विदेश मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि आज भारत को दुनिया पहले से कहीं अधिक सकारात्मक और गंभीर दृष्टि से देख रही है। उन्होंने कहा कि भारत की “नेशनल ब्रांड वैल्यू” और भारतीयों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। दुनिया भर में भारतीयों को मेहनती, तकनीक सक्षम और पारिवारिक मूल्यों से जुड़े समाज के रूप में देखा जा रहा है।
प्रवासी भारतीयों की भूमिका और भारत में बेहतर होता व्यापारिक एवं सामाजिक माहौल पुराने नकारात्मक स्टीरियोटाइप्स को पीछे छोड़ रहा है। जयशंकर ने कहा कि भारत की ताकत उसकी मानव संसाधन क्षमता में निहित है। वैश्विक कैपेबिलिटी सेंटर्स की बढ़ती संख्या, भारतीय प्रतिभा की अंतरराष्ट्रीय मांग और कौशल आधारित पहचान इस बदलाव के ठोस प्रमाण हैं। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के बीच कृत्रिम विभाजन निरर्थक है और दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि बीते दशक में उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में दोगुनी वृद्धि भारत के भविष्य की तैयारी का संकेत है।
न झुकाव, न दबाव, भारत की आत्मनिर्भर विदेश नीति और Geopolitics के बदलते स्वरूप पर जयशंकर ने दिया जोरदार भाषण

