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21 Nov 2024, Thu

‘लोग क्या कहेंगे’ की सोच से बचें, परामर्श व उपचार से मानसिक रूप से स्वस्थ बनें

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर विशेष

मुकेश कुमार शर्मा

आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने लोगों की जीवनशैली को सीधे तौर पर प्रभावित किया है। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लोगों के पास न तो समय से खाने और न ही सही से सोने का वक्त है। शारीरिक श्रम से भी नाता टूट चुका है। इस कारण मानसिक विकार लोगों को कम उम्र में ही घेरने लगे हैं। आम जनमानस को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए ही हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है, जिसका मूल मकसद लोगों को यह बताना है कि कुछ जरूरी टिप्स अपनाकर शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ जीवन यापन कर राष्ट्र के विकास में भागीदार बना जा सकता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का इस साल का विषय है-“कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य।“ विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से भी इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है, जो बताती है कि मानसिक विकारों यानि अवसाद और चिंता के कारण विश्व में प्रत्येक वर्ष करीब 12 अरब कार्यदिवसों का नुकसान होता है।

कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कई कारकों के बीच सबसे अहम् होता है सुपरवाइजर, जिसका मुख्य दायित्व होता है कार्यस्थल पर तनावमुक्त वातावरण की स्थापना करना। इसके लिए कर्मचारी को प्रोत्साहन देना, रणनीतिक सहयोग देना, समस्याओं के समाधान के लिए साथ मिलकर काम करना तथा सभी के चेहरे पर मुस्कान लाना अहम् है। सुपरवाइजर में छिपे दो महत्वपूर्ण शब्द “सुपर” और “वाइज” के महत्व को सही से समझना आवश्यक है। यहाँ सुपर का मतलब है अपने अहम् से ऊपर उठकर सहयोग करना और वाइज का मतलब है हर वह प्रयास करना जिससे कार्यस्थल एक खुशियों से भरी जगह के रूप में जाना जाये, जहाँ लोग चेहरे पर मुस्कान के साथ आएं और मुस्कुराते हुए वापस घर जाएँ और यकीन मानिये इस मुस्कान का सीधा और गहरा सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य के साथ है।

मानसिक अस्वस्थतता के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं, जैसे- नींद कम आना, उलझन, घबराहट, हीन भावना से ग्रसित होना, जिन्दगी के प्रति नकारात्मक सोच का विकसित होना, एक ही विचार मन में बार-बार आना, एक ही कार्य को बार-बार करने की इच्छा होना, अनावश्यक डर लगना, शक होना, कानों में आवाज आना, मोबाइल और नशे की लत होना आदि। इस तरह के लक्षण नजर आने पर चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना चाहिए ताकि बीमारी को जल्दी से जल्दी दूर किया जा सके। इसको लेकर कोई भ्रम या भ्रान्ति मन में नहीं पालनी चाहिए। यह भी जानना जरूरी है कि चिंता या तनाव किसी भी समस्या का समाधान कदापि नहीं हो सकता है, उल्टे यह कई अन्य दिक्कतों को जरूर पैदा कर सकता है। चिकित्सकों का स्पष्ट कहना है कि चिंता और तनाव से सिर दर्द, माइग्रेन, उच्च या निम्न ब्लड प्रेशर, ह्रदय से जुड़ी समस्याएं, मोटापा और चिडचिडापन की समस्या पैदा हो सकती है। इसके लिए जरूरी है कि तनाव व चिंता पैदा करने वाले कारणों से दूर रहें। किसी भी प्रकार का नशा भी आपको मानसिक रोगी बना सकता है। लंबे समय तक रहने वाली शारीरिक बीमारियां भी मानसिक रोगों को उत्पन्न करती हैं। ऐसे में मानसिक रूप से अस्वस्थ को तनाव, अवसाद, गहन चिंता आदि को नियंत्रित करना चाहिए और नियमित स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान देना चाहिए और पूरी नींद लेनी चाहिए।

मानसिक परेशानी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। यह समस्या तेजी से युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रही है जिससे बचने के लिए उन्हें खुलकर बात करने की जरूरत है ताकि समय से समस्या का निदान किया जा सके। ऐसी समस्याओं को बताने की जरूरत है न कि छिपाने की। चिकित्सकीय परामर्श व उपचार की जरूरत है। शुरुआती अवस्था में केवल काउंसलिंग से ही अधिकतर मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। सामाजिक भेदभाव के कारण भी मानसिक विकार को लोग छिपाते हैं और मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं क्योंकि वह सोचते हैं कि ‘लोग क्या कहेंगे।‘ आज के दिवस पर यह संकल्प लेने की जरूरत है कि लोग क्या कहेंगे जैसी झिझक को पूरी तरह से हम दूर करेंगे और एक सम्पूर्ण स्वस्थ समाज बनाने में भागीदार बनेंगे।

इसके अलावा किशोरावस्था बदलाव का वह दौर होता है जब शारीरिक के साथ ही मानसिक बदलाव का सामना बच्चों को करना पड़ता है। इस दौरान सही तरीके से परामर्श न मिलने से बच्चे चिड़चिडे स्वभाव के हो जाते हैं, जिससे उनके मानसिक और व्यावहारिक बर्ताव में बदलाव देखने को मिलता है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम का संचालन कर रही है, जिसके तहत बच्चों के समग्र विकास का ध्यान रखा जाता है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों में इस तरह का बदलाव देखें तो उनको सरकारी योजनाओं से जोड़कर आगे बढ़ने के लिए जरूर प्रेरित करें। संपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि किशोरों को संतुलित खानपान, नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ ही उन्हें अकेले न रहने दिया जाए तथा सकारात्मक विचार रखने में उनकी मदद की जाए।

(लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं)

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