उम्र बढ़ने के साथ आपमें कई प्रकार की बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जाता है। 50 की उम्र के बाद आमतौर पर हड्डियों-मांसपेशियों में कमजोरी के साथ कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों का जोखिम भी अधिक हो जाता है। हालिया अध्ययन की रिपोर्ट ने 50 की आयु के बाद वाले लोगों में एक और तेजी से बढ़ती बीमारी को लेकर अलर्ट किया है।
अमेरिका स्थित वेक फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया है कि 55 वर्ष और उससे अधिक आयु के 42% से अधिक लोगों में डिमेंशिया होने का जोखिम हो सकता है, जिसको लेकर सभी लोगों को सावधान रहने की आवश्यकता है।
डिमेंशिया, मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों का एक समूह है जो समय के साथ मानसिक क्षमताओं में गिरावट को दर्शाती है। इसके कारण याददाश्त, सोच, व्यवहार और मानसिक स्थितियों पर नियंत्रण में कमी आने लगती है। कई अध्ययनों में डिमेंशिया को गंभीर रोगों का कारण भी बताया जाता रहा है। ये बीमारी दैनिक कार्यों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली हो सकती है।
50 की उम्र के बाद डिमेंशिया का खतरा
50 की उम्र के बाद वाले लोगों में डिमेंशिया के बढ़ते जोखिमों के डेटा ने विशेषज्ञों को अलर्ट कर दिया है। अध्ययनकर्ताओं की टीम ने शोध के दौरान पाया कि जिन लोगों में रक्त वाहिकाओं से संबंधित बीमारियां (वैस्कुलर डिजीज) होती हैं, ऐसे लोगों में डिमेंशिया होने का खतरा भी अधिक हो सकता है। वेक फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी में डिमेंशिया और जेरोन्टोलॉजी विशेषज्ञ मिया यांग कहती हैं कि जिस तरह से इस रोग के बढ़ते आंकड़े देखे जा रहे हैं उसे ध्यान में रखते हुए कम उम्र से ही हृदय रोगों और डिमेंशिया दोनों से बचाव को लेकर सावधान रहने की आवश्यकता है। ये दोनों बीमारियां एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
हृदय रोग और डिमेंशिया का संबंध
शोधकर्ताओं ने कहा, ये कोई नई बात नहीं है, हम पहले से ही जानते हैं कि जिन लोगों में रक्त वाहिका से संबंधित बीमारियों का जोखिम होता है उनमें डिमेंशिया होने की आशंका भी अधिक होती है। जिन लोगों को उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हाइपरलिपिडिमिया जैसी बीमारियां हैं, ऐसे लोगों में डिमेंशिया होने का खतरा उन लोगों की तुलना में अधिक होता है जिनमें ये समस्या नहीं हैं। हालांकि ये कोई पुख्ता पैरामीटर भी नहीं है। रक्त वाहिका से संबंधित बीमारियों के बिना भी बहुत से रोगियों में अल्जाइमर-डिमेंशिया का निदान किया जाता रहा है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस नवीनतम अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि कई स्थानों पर किए गए अध्ययन के डेटा मूल्यांकन से ये भी पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस रोग का खतरा अधिक हो सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डिमेंशिया का कोई इलाज नहीं है, लेकिन अगर कम उम्र से ही कुछ उपाय किए जाएं तो जोखिमों को कम करने में मदद जरूर मिल सकती है। इसके लिए अध्ययनकर्ता मिया यांग ने कुछ उपाय बताए हैं जिसे युवावस्था से ही अगर ध्यान में रखा जाए तो भविष्य में अल्जाइमर-डिमेंशिया से बचाव किया जा सकता है।
कैसे रह सकते हैं सुरक्षित?
मिया यांग कहती हैं, सभी लोगों को युवावस्था से ही अपने ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और फास्टिंग शुगर लेवल की निरंतर जांच करते रहना चाहिए और इसे कंट्रोल में रखने के लिए भी उपाय करना चाहिए। ये सभी स्थितियां डिमेंशिया के जोखिम को प्रभावित कर सकती हैं। दिनचर्या में एरोबिक व्यायाम को शामिल करना सबसे अच्छा हो सकता है, जैसे रनिंग, वॉकिंग, साइकिलिंग या तैराकी आदि। कोई भी चीज जो आपकी हृदय गति को बढ़ाती है और पसीना लाती है, वह आपके लिए लाभकारी है। और अंत में, अपने आहार में सुधार करना भी सबसे जरूरी है। हरी सब्जियां और फल जरूर खाएं। तले हुए और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से दूरी बनाकर भी आप हृदय की बीमारियों और डिमेंशिया दोनों से बचे रह सकते हैं।
युवावस्था में नहीं दिया ध्यान तो 50 की उम्र के बाद हो जाएंगे इस गंभीर बीमारी का शिकार, कैसे करें बचाव?
