अज़रबैजान। अज़रबैजान की राजधानी बाकू में 12 दिवसीय जलवायु सम्मेलन (COP29) जारी है। 11 नवंबर से शुरू हुए इस सम्मेलन में करीब 200 देशों के हजारों प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। बैठक में जलवायु संकट से निपटने के लिए जरूरी प्रयासोंdeveloped countries
पर चर्चा की जा रही है। इस दौरान भारत ने भी क्लाइमेट चेंज से दुनिया को बचाने के लिए अपना प्लान सामने रखा है। भारत ने गुरुवार को COP29 की बैठक में कहा कि विकसित देशों को 2030 तक हर साल कम से कम 1।3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर विकासशील देशों को देने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। भारत ने कहा है कि जिस नए जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) पैकेज पर बातचीत की जा रही है, उसे ‘निवेश लक्ष्य’ नहीं बनाया जा सकता। COP29 में क्लाइमेट फाइनेंस पर समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (LMDC) की ओर से बोलते हुए भारत ने इस बात पर जोर दिया कि विकासशील देशों को गर्म होती दुनिया से निपटने के लिए दिया जाने वाला ग्रांट, रियायती और नॉन-डेब्ट (बिना कर्ज) सहायता के जरिए मिलना चाहिए।
भारत ने कहा कि, ‘नया क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज या नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) इस साल COP29 के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता और विकासशील देशों की उभरती प्राथमिकताओं के अनुसार होना चाहिए। साथ ही यह उन प्रतिबंधात्मक शर्तों से मुक्त होना चाहिए जो डेवलपिंग नेशंस के विकास में बाधा डाल सकती हैं।
‘क्लाइमेट फाइनेंस’ पर 2030 वाला प्लान
COP29 में भारत की ओर से बोलते हुए नरेश पाल गंगवार ने कहा कि, ‘विकसित देशों को 2030 तक हर साल कम से कम 1।3 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर विकासशील देशों के लिए जुटाने की जरूरत है। यह समर्थन ब्राजील के बेलेम में COP30 की ओर बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है, जहां सभी पक्ष जलवायु संकट से निपटने के लिए अपनी राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं और योगदान का ब्यौरा पेश करें।’
भारत ने NCQG को निवेश लक्ष्य में बदलने का विरोध करते हुए कहा कि पेरिस समझौते में यह साफ है कि विकसित देश ही क्लाइमेट फाइनेंस जुटाएंगे। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और उसके पेरिस समझौते के आदेश के बाहर किसी भी नए लक्ष्य को शामिल किया जाना अस्वीकार्य है। गंगवार ने कहा कि ‘हमें पेरिस समझौते और इसके प्रावधानों पर फिर से बातचीत करने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।’
फंड जुटाने के वादे से मुकर रहे विकसित देश?
दरअसल भारत समेत तमाम विकासशील देशों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और पेरिस समझौते के तहत, विकसित देशों की जिम्मेदारी है कि वे उनके लिए क्लाइमेट फाइनेंस जुटाएं, लेकिन अब विकसित देश एक ‘वैश्विक निवेश लक्ष्य’ के लिए जोर दे रहे हैं। जो सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों सहित विभिन्न स्रोतों से फंड जुटाएगा।
संकट से फायदा उठाने में जुटे अमीर देश?
इस मामले में क्लाइमेट एक्टिविस्ट हरजीत सिंह का कहना है कि क्लाइमेट फाइनेंस को ‘निवेश लक्ष्य’ में बदलना उन लोगों के साथ धोखा है जो क्लाइमेट चेंज के चलते संकट का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘भारत समेत तमाम विकासशील देशों के लिए यह साफ है कि उन्हें ग्रांट और नॉन डेब्ट के जरिए यह फंड दिए जाने की आवश्यकता है न कि ऐसी निवेश योजनाओं की, जो अमीर देशों को इस संकट से फायदा उठाने दें, जिसे बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। इससे कम कुछ भी दोहरा अन्याय है।’