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12 Nov 2025, Wed

चिप्स और नमकीन बनाने वाली गुजराती कंपनी का जलवा, 2500 करोड़ रुपए में बेचेगी 7% हिस्सेदारी

भारत के लोकप्रिय स्नैक ब्रांड बालाजी वेफर्स में जल्द ही बड़ा विदेशी निवेश आने वाला है। अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक कंपनी में करीब ₹2,500 करोड़ में 7% हिस्सेदारी खरीदने के अंतिम चरण में है। इस डील से बालाजी वेफर्स की वैल्यू लगभग 35,000 करोड़ रुपए (करीब $4 बिलियन) आंकी जा रही है, जो भारत के स्नैक मार्केट में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
डील अपने आखिरी चरण में, कंपनी की पुष्टि
बालाजी वेफर्स के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर चंदू विरानी ने बताया कि जनरल अटलांटिक के साथ बातचीत लगभग पूरी हो चुकी है और फाइनल एग्रीमेंट की प्रक्रिया चल रही है। विरानी ने कहा कि हमारी तरफ से डील तय है। GA की टीम फिलहाल दस्तावेजों की समीक्षा कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी की नई पीढ़ी रणनीतिक पूंजी लाकर बिजनेस को देशभर में विस्तार देना चाहती है, इसलिए यह हिस्सा बेचने का फैसला लिया गया।
केदारा को पीछे छोड़ आगे बढ़ा जनरल अटलांटिक
इससे पहले बालाजी वेफर्स केदारा कैपिटल, TPG, टेमासेक और जनरल मिल्स जैसे निवेशकों से बातचीत कर रही थी। हालांकि, केदारा इस रेस में सबसे आगे थी, लेकिन जनरल अटलांटिक ने 7-10% ज्यादा वैल्यूएशन ऑफर कर डील को अपने नाम कर लिया। एक रिपोर्ट में बताया गया कि जानकारी के अनुसार, कंपनी इस समय और हिस्सेदारी बेचने का इरादा नहीं रखती, बल्कि आने वाले समय में IPO लाने पर विचार कर रही है, जिससे आम निवेशकों को भी इसमें हिस्सा लेने का मौका मिल सकता है।
गुजरात के थिएटर से शुरू हुई कहानी
बालाजी वेफर्स की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। इसकी शुरुआत 1982 में राजकोट के एक मूवी थिएटर से हुई थी, जहां चंदू विरानी और उनके भाइयों ने सैंडविच और स्नैक्स बेचना शुरू किया था। आज कंपनी सालाना ₹6,500 करोड़ की बिक्री करती है और लगभग ₹1,000 करोड़ का नेट प्रॉफिट कमाती है। गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में बालाजी का जबरदस्त दबदबा है। इन राज्यों में कंपनी के पास स्नैक मार्केट की करीब 65% हिस्सेदारी है। सीमित भौगोलिक मौजूदगी के बावजूद बालाजी, हल्दीराम और पेप्सिको के बादभारत का तीसरा सबसे बड़ा स्नैक ब्रांड है।
कम लागत और हाई क्वालिटी का फॉर्मूला
बालाजी वेफर्स का बिजनेस मॉडल बेहद सटीक और कम खर्च वाला है। कंपनी अपने राजस्व का सिर्फ 4% विज्ञापन पर खर्च करती है, जबकि इंडस्ट्री औसतन 8-12% तक करती है। विज्ञापन पर कम खर्च का फायदा यह हुआ कि कंपनी अपने प्रोडक्शन और क्वालिटी पर ज्यादा निवेश कर पाई, जिससे वह कम कीमत पर बेहतरीन क्वालिटी दे सकी।
कंपनी के पास फिलहाल चार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स हैं और आने वाले समय में वह इन्हें दोगुना करने की योजना बना रही है, ताकि अपने प्रोडक्ट्स को देश के बाकी हिस्सों में भी पहुंचा सके।
रीजनल स्नैक ब्रांड्स में बढ़ रही निवेशकों की दिलचस्पी
जनरल अटलांटिक का यह निवेश भारत के रीजनल स्नैक ब्रांड्स में बढ़ती दिलचस्पी को दिखाता है। इन ब्रांड्स ने अपने लोकल स्वाद, कम दाम और तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स चैनल के जरिए PepsiCo और ITC जैसे दिग्गजों को कड़ी टक्कर दी है।
हाल ही में हल्दीराम ने भी सिंगापुर की टेमासेक, अल्फा वेव ग्लोबल और IHC को अपनी 10% हिस्सेदारी $10 बिलियन से ज्यादा वैल्यूएशन पर बेची थी, जो भारत के फूड सेक्टर की सबसे बड़ी प्राइवेट इक्विटी डील मानी गई।

By Aryavartkranti Bureau

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