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14 Dec 2025, Sun

पराली नहीं, दिल्ली के लोकल स्रोत हैं प्रदूषण के असली दोषी, सीएसई की चौंकाने वाली रिपोर्ट

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों (एनसीआर) में सर्दियों के मौसम में बढ़ते प्रदूषण के लिए हर साल पराली जलाने को आमतौर पर मुख्य दोषी माना जाता है, लेकिन विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की एक नई चौंकाने वाली रिपोर्ट ने इस धारणा को पूरी तरह से बदल दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जब पराली का योगदान काफी कम रहा, तब भी दिल्ली की हवा बहुत खराब से गंभीर श्रेणी में बनी रही। यह साफ पता चलता है कि असली कसूरवार शहर के अपने स्थानीय स्रोत हैं, जिन पर अब तक ज़रूरी ध्यान नहीं दिया गया है।
विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्रों में शुरुआती सर्दियों (अक्टूबर-15 नवंबर) के रुझानों के एक नए आकलन में कहा गया है, दिल्ली-एनसीआर अब खेतों में आग लगने के धुएँ के पीछे छिप नहीं सकता, जबकि इस सर्दी में खेतों की आग ने स्थानीय वायु गुणवत्ता में बहुत कम योगदान दिया है, फिर भी हम जिस हवा को साँस ले रहे हैं उसकी स्थिति बहुत खराब से गंभीर के दायरे में रही है। यह स्थानीय स्रोतों के भारी प्रभाव को उजागर करता है
सीएसई की कार्यकारी निदेशक (अनुसंधान और वकालत), अनुमिता रॉय चौधरी कहती हैं कि,
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि पीएम 2।5 और अन्य विषैली गैसों जैसे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड में रोज़ाना समकालिक वृद्धि हो रही है, जो मुख्य रूप से वाहनों और दहन स्रोतों से निकल रही हैं और एक जहरीले कॉकटेल का निर्माण कर रही हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया है।
उनका मानना है कि दिल्ली में दीर्घकालिक वायु गुणवत्ता का रुख भी स्थिर हो गया है, बिना किसी सुधार के। यह इस बात की तत्काल आवश्यकता की ओर इशारा करता है कि वाहनों, उद्योगों, बिजली संयंत्रों, निर्माण और घरेलू ऊर्जा से उत्सर्जन को कम करने की कार्रवाई को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे और प्रणालियों में गहरे स्तर पर बदलाव किए जाएं।
बता दें कि फसल जलाने का मौसम अब लगभग समाप्त हो चुका है। आधिकारिक डेटा से पता चलता है कि इस साल पंजाब और हरियाणा में फसल जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है।प्रारंभिक सर्दियों के अधिकांश समय के लिए, खेतों की आग का दैनिक योगदान दिन के प्रदूषण स्तर में 5 प्रतिशत से कम रहा, कुछ दिनों में 5 से 15 प्रतिशत के बीच रहा, और केवल 12-13 नवंबर को 22 प्रतिशत तक पहुंच गया।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली के कई इलाके अब हॉटस्पॉट बन चुके हैं, जहां प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से ऊंचा है। 2018 में 13 ऐसे हॉटस्पॉट पहचाने गए थे, जो राष्ट्रीय मानक से ऊपर थे और शहर के औसत स्तर से भी अधिक प्रदूषित थे। इनमें नॉर्थ और ईस्ट दिल्ली सबसे अधिक प्रभावित हैं। जहांगीरपुरी सबसे प्रदूषित है, जहां सालाना पीएम 2।5 औसत 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। बवाना और वजीरपुर में 113 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज हुआ।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 से दिल्ली एनसीआर में पीएम 2।5 स्तर पर लगादार बना हुआ है। जो खतरनाक श्रेणी होती है। जिसमें कोई सुधार नहीं दिखे गया है। अगर बात 2018 और 2020 (जो महामारी का वर्ष भी था) के बीच, दिल्ली में वर्ष-दर-वर्ष पीएम2।5 स्तरों में एक स्थिर गिरावट आई थी, लेकिन 2021-22 से, स्तर लगभग ऊँचे और स्थिर बने हुए हैं, जिसमें थोड़ा बदलाव है।
सीएसई की काय़र्कारी अध्यक्ष रॉय चौधरी का कहना है कि दिल्ली में अब छोटे-छोटे वृद्धिशील कदम अब काम नहीं करेंगे। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का ग्राफ नीचे लाने के लिए गहन अध्यन करके उच्च कार्यवाही करना होगी।सीएसई ने सभी सेगमेंट के लिए समयबद्ध रूप से महत्वाकांक्षी विद्युतीकरण लक्ष्य पूरे करना और पुराने वाहनों को हटाने की सिफारिश की।

By Aryavartkranti Bureau

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